Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में ऑपरेशन लोटस के फैल होने के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों में नई स्थिति बननी शुरू हो गई है. इधर गहलोत सरकार एक के बाद एक बडे निर्णय करके जनहित के कामों मेें तेजी ला रही है तो वहीं भाजपा सरकार के खिलाफ हल्ला बोल प्रदर्शनों की तैयारी में जुट गई है.
इन सबके बीच वर्चस्व को लेकर चल रही नेताओं की सियासत भी तेज हो गई है. भाजपा खेमे में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को तीन नेताओं की तिकडी द्वारा साइड लाइन करने की चर्चाओं के बाद से प्रदेश में वसुंधरा राजे की सियासी सक्रियता काफी बढ़ चुकी है. राजस्थान के सियासी घमासान के दौरान एक महीने तक चुप्पी साधने वाली वसुंधरा राजे ने अपने विरोधी खेमे को केवल दिल्ली पहुंचकर एक ही दिन में आइना दिखा दिया.
अब समाचार आ रहे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के सिविल लाइन स्थित बंगला नंबर 13 पर राजस्थान भर से नेताओं के आने का सिलसिला तेज हो गया है. प्रतिदिन प्रदेश भर से सैकड़ों बीजेपी नेता-कार्यकर्ता मैडम राजे से मिलने जयपुर पहुंचे रहे हैं. बीते बुधवार वसुंधरा राजे से मुलाकात करने वालों में कई नाम खास चर्चा में बने हुए हैं. इनमें नरपतसिंह राजवी, सुरेद्र गोयल, प्रतापसिंह सिंघवी सहित विश्व हिंदू परिषद से जुडे नरपतसिंह शेखावत, भाजपा नेता वीरेंद्र मीणा प्रमुख नाम है.
पहले बात कर लेते हैं पूर्व मंत्री सुरेंद्र गोयल (Surendra Goyal) की, सुरेंद्र गोयल पिछली वसुंधरा सरकार में मंत्री थे. पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. गोयल को वसुंधरा राजे का समर्थक माना जाता है. अब गोयल की मैडम राजे से मुलाकात के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. दूसरे प्रमुख नेता हैं नरपतसिंह राजवी, राजवी की भले ही वसुंधरा राजे के पिछले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उनसे नहीं बनती हो, लेकिन अब पिछले दिनों में राजवी की मैडम राजे से यह तीसरी मुलाकात थी. वहीं छबड़ा विधायक प्रताप सिंह सिंघवी भी लगातार मैडम राजे के सम्पर्क में हैं.
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ऐसे में जहां एक और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे विरोधी खेमे के कुछ नेता श्रीमती राजे के घुर विरोधी रहे घनश्याम तिवाडी और मानवेंद्रसिंह की भाजपा में वापसी के लिए चर्चा चला रहे हैं, वहीं घनश्याम तिवाडी के साथ कांग्रेस में गए पूर्व मंत्री सुरेंद्र गोयल का वसुंधरा राजे से मिलना भी नया सियासी संकेत दे रहा है. जिसके तहत माना जा रहा है कि सुरेंद्र गोयल की बीजेपी में वापसी तय है.
असल में कांग्रेस की तरह भाजपा में भी वर्चस्व को लेकर घमासान मचा हुआ है. जानकार सूत्रों के अनुसार वसुंधरा राजे विरोधी खेमे द्वारा आलाकमान को विश्वास में लेकर गहलोत सरकार को अस्थिर करने के लिए पिछले दिनों चलाए गए आॅपरेशन लोटस को बुरी तरह मुह की खानी पडी थी. इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, प्रतिपक्ष नेता गुलाब चंद कटारिया और उपनेता राजेंद्र राठौड ही भाजपा का चेहरा बने हुए थे. अगर कोई गायब था तो वो थीं वसुंधरा राजे. इन सबके अलावा कोई इन नेताओं के साथ लगातार जुड़ा हुआ था तो वो रालोपा मुखिया हनुमान बेनीवाल, जो कि मैडम राजे का घुर विरोधी माने जाते हैं और उस दौरान बेनीवाल ने राजे और गहलोत के बीच मिलीभगत के आरोप भी लगाए.
इन नेताओं ने मैडम वसुंधरा राजे को बिना विश्वास में लिए गहलोत सरकार को अस्थिर करने जैसा इतना बडा कदम उठा लिया था. भाजपा के सूत्र बताते हैं कि वसुंधरा राजे ने दिल्ली जाकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और राजनाथ सिंह के सामने इसी बात को जोरदार तरीके से उठाया था. बताया जाता है कि वसुंधरा राजे ने ना सिर्फ अपनी नाराजगी जताई बल्कि इसे अपने सम्मान से जोडते हुए गुस्से का इजहार भी किया.
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अब जब निकाय और पंचायत चुनाव नजदीक आ चुके हैं तो प्रदेश प्रभारी वी सतीश का भाजपा कार्यलय में वसुंधरा राजे को बुलाकर सतीश पूनिया के सामने बातचीत करना इस बात का संकेत देता है कि भाजपा की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे को दरकिनार कर कोई निर्णय नहीं करना चाहते हैं.
गौरतलब है कि विधानसभा में भाजपा के नेता गहलोत सरकार को जनहित के मुददों पर मजबूती से घेर नहीं पाए. अब हल्ना बोल प्रदर्शनों की शुरूआत होने जा रही है, ऐसे में अगर वसुंधरा राजे को दरकिनार किया जाता है तो इन प्रदर्शनों की भी हालत ठीक वैसे हो सकती है, जैसे विश्वास मत के ठीके पहले भाजपा के 4 विधायक उठकर विधानसभा से चले गए थे और भाजपा नेता कटारिया और सतीश पूनियां केवल उनका इंटरव्यू लेकर खामोशी थाम कर बैठ गए.