Politalks.News/Congress/Pilot. एक समय था जब कांग्रेस पार्टी (Congress Party) का पूरे देश में राज होता था, लेकिन आज उसकी सत्ता बस दो राज्यों में सिमटकर रह गई है. पंजाब में अंदरूनी कलह की वजह से कांग्रेस का किला बिखर गया. तो वहीं उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) में 400 से अधिक सीटों पर लड़ने के बावजूद महज 2 सीटों पर ही जीत मिल पाई है, जो कांग्रेस के इतिहास (history of congress) में अब तक का सबसे बुरा प्रदर्शन है. कांग्रेस के लिए यूपी से अच्छा तो मणिपुर रहा, जहां 5 सीटें उसके खाते में आईं. चुनावी नतीजों में कांग्रेस की बदहाली देखने के बाद अब ये सवाल फिर से उठ गया है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी को आखिर ये लकवा कैसे मार गया? इसके लिए दिशाहीन नेतृत्व जिम्मेदार (directionless leadership responsible) है या पार्टी के अंदर नेताओं के आपसी मतभेद? ठंडे पड़ चुके जोश को दोष दिया जाए या उम्मीद की बुझ चुकी लौ को? रसातल में पहुंची कांग्रेस की इस हालत के लिए किसी एक चीज को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को अब एक नए युवा ‘पायलट‘ (Young ‘Pilot’) की जरूरत है, जो उसके ‘खटारा‘ (‘Khatara’) हो चुके विमान को फिर से रनवे पर दौड़ने लायक बना सके और जिससे पार्टी एक बार फिर सियासी उड़ान भर सके.
दरअसल, हाल ही में हुए देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जबरदस्त हार के बाद पार्टी में पहले से नाराज चल रहा G-23 नेताओं का ग्रुप एक बार फिर एक्टिव हो गया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के दिल्ली स्थित आवास पर इन नेताओं की शुक्रवार की शाम को एक बैठक हुई है. बैठक में कांग्रेस के हार के कारणों पर चर्चा हुई. कहा जा रहा है कि बैठक में शामिल नेताओं ने अपनी पुरानी मांगों को फिर से पार्टी नेतृत्व के सामने रखने की बात कही, ये नेता लंबे समय से स्थायी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं. यही कारण है कि चारों ओर से घिरता देख कांग्रेस आलाकमान ने रविवार को CWC की बैठक बुला ली है. इस बैठक में कांग्रेस दिग्गज बैठकर हार की समीक्षा करेंगे. सूत्रों की माने तो बैठक में हार के कारणों के पोस्टमार्टम के बीच नए अध्यक्ष की मांग पर भी विचार होना तय है. हालांकि, आपको बता दें कि कांग्रेस ने अध्यक्ष चुनाव के लिए कार्यक्रम जारी कर रखा है और चुनाव प्रक्रिया जारी है.
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आपको बता दें, पार्टी से नाराज G-23 ग्रुप के नेताओं की मांग है कि पार्टी में ऊपर से लेकर नीचे तक हर स्तर पर बदलाव हो. सूत्रों की मानें तो शुक्रवार को गुलाम नबी आजाद के घर हुई बैठक में G-23 के नेताओं ने अगले अध्यक्ष के रूप में सचिन पायलट जैसे किसी युवा और अनुभवी चेहरे को आगे बढ़ाने की बात कही है. अब देखना होगा कि पार्टी में हाशिए पर चल रहे इन नेताओं की कितनी सुनी जाती है? वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस से जुड़े सियासी जानकार मानते हैं कि किसी युवा चेहरे को पार्टी की कमान सौंपी जानी चाहिए. राहुल गांधी के मना करने पर जिन नेताओं की दावेदारी सबसे मजबूत होगी उनमें सचिन पायलट एक हो सकते हैं. हालांकि, कांग्रेस के ज्यादातर नेता राहुल गांधी को ही फिर से अध्यक्ष बनाने की मांग करते रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार से इतर होगा या फिर पायलट को ये जिम्मेदारी मिलती है देखने वाली बात होगी.
कौन हैं सचिन पायलट?
कहते हैं कि व्यक्ति अपने अनुभवों से ही कुछ सीख पाता है. ये बात सचिन पायलट पर भी लागू होती हैं. कान्वेन्ट की पढ़ाई और अंग्रेजी दा दोस्तों के बीच दिन रात चर्चा में मशगूल रहने वाले सचिन पायलट को समय ने सब कुछ सीखा दिया. अपने पिता और दिग्गज कांग्रेसी राजेश पायलट के असामयिक निधन के बाद पायलट ने 2004 में जब पहला लोकसभा चुनाव दौसा से लड़ा था तो उनकी उम्र मात्र 26 वर्ष की थी. पायलट ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाला और सहेजा भी. पायलट ने राजनीति में अपनी पहली लैंडिंग ही दौसा में ऐसी की कि उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. दौसा जब सुरक्षित सीट हो गई तो अजमेर से भाग्य आजमाया और उसमें वे विजयी हुए. 2012 में यूपीए-2 में मनमोहनसिंह सरकार में सचिन पायलट को संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के साथ कॉरपरेट मामलों के मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया. आपको बता दें, उस समय सचिन पायलट मनमोहन मंत्रिमंडल में सबसे कम उम्र के सदस्य थे.
सचिन पायलट की काबिलियत को देखकर ही उन्हें राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर भेजा गया था. पायलट ने जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभाली तब कांग्रेस 2013 के विधानसभा चुनावों में मात्र 21 सीटों पर सिमटकर रह गई थी. सचिन पायलट को राजस्थान आते ही तेज झटके लगे. मोदी की आंधी के कारण 2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटें गंवानी पड़ी. पायलट स्वयं भी अजमेर से हार गए, लेकिन पायलट ने इस निराशाजनक वातावरण भी पांव नहीं छोड़े और राजस्थान में रहकर ही मुकाबले की ठानी. पायलट इस मिशन में जुट गए कि राजस्थान में कांग्रेस कैसे फिर से सत्ता में लौटे. इसके लिए पायलट ने तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलनों का मोर्चा खोल दिया. न जाने कितनी ही बार पायलट ने सड़कों पर संघर्ष करते हुए कार्यकर्ताओं के साथ लाठियां भी खाईं. लगातार जनता के बीच बने रहने की साधना का असर यह हुआ कि फरवरी 2018 में अजमेर सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रघु शर्मा को भारी मतों से विजयी करवा कर पायलट ने अपनी हार का बदला चुका दिया. यही नहीं इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में प्रदेश कांग्रेस को 21 से 99 सीटों तक पहुंचा कर प्रदेश में फिर से कांग्रेस का परचम लहराया.
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आज भी न केवल राजस्थान बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी सचिन पायलट के प्रति दीवानगी देखने को मिलती है. केवल विधायक होने के बावजूद पायलट जहां भी जाते हैं उनको देखने सुनने और मिलने वालों का जनसैलाब उमड़ा रहता है.
आपको याद दिला दें कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया. सोनिया गांधी को इस साल अगस्त तक चुनाव होने तक अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई थी. बता दें, हाल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सभी राज्यों में बुरी तरह हारी है. पंजाब में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह अपने दोनों सीटों पर हार गए. वहीं, नवजोत सिंह सिद्दू और हरीश रावत को भी करारी हार मिली है. यूपी में तो 399 में से 387 सीटों पर जमानत जब्त हुई है. ऐसे में खटारा हो चुके कांग्रेस के इस विमान को अब सचिन जैसे ‘पायलट’ की जरूरत है.