विशेष: मोदी मैजिक के बीच कमजोर कांग्रेस और बिखरे विपक्ष के साथ क्या BJP को हराना है मुमकिन?

पांच राज्यों के रिजल्ट के बाद अब आम चुनाव को लेकर सियासी चर्चा, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का दावा- 'भाजपा को हराना नामुमकिन नहीं', इसके लिए पीके ने दिए कई तर्क, पीके के दावे के बाद अब सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर हुआ शुरू, मोदी मैजिक, हिंदु वोटर्स का विश्वास और कमजोर कांग्रेस भाजपा की ताकत है तो बिखरा विपक्ष सोने पे सुहागा

भाजपा को हराना नहीं नामुमकिन
भाजपा को हराना नहीं नामुमकिन

Politalks.News/Modi. राज्यों के नतीजों के बाद देश के सियासी गलियारों (Political Corridors) में इस बात की चर्चा है कि भाजपा (BJP) को कैसे हराया जा सकता है. हालही में आए नतीजों के बाद दो अलग-अलग इंटरव्यू में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Election Strategist Prashant Kishor) ने कहा कि, ‘भाजपा को हराना नामुमकिन नहीं है‘ (It is not impossible to defeat BJP). पीके ने इसके लिए कई तरह के आंकड़े भी दिए. साथ ही पीके ने यह भी ट्विट किया कि राज्यों के चुनाव नतीजों से लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के नतीजे तय नहीं होते हैं और 2024 का चुनाव 2024 में ही लड़ा जाएगा. वह देश का चुनाव होगा’. अब सियासी गलियारों में पीके के दावों का पोस्टमार्टम हो रहा है. कुछ जानकार इन दावों को बचकाना तो कुछ बे-सिर पैर का बता रहे हैं. इनका कहना है कि बिखरे विपक्ष के पास मोदी मैजिक (Modi magic) का तोड़ मिलता नहीं दिख रहा है साथ ही विपक्षी एकता को लेकर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं. फिर विपक्ष द्वारा कांग्रेस (Congress) को कमजोर करने की कोशिश भाजपा के लिए सोने पे सुहागे का काम कर रहा है.

हालांकि प्रशांत किशोर का दावा है की राज्यों और लोकसभा के चुनाव अलग हैं तो ये बचकाना लगता है. जैसे 2018 के अंत में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में भाजपा हार गई लेकिन पांच महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में इन तीन राज्यों की 65 में से 63 लोकसभा सीटें भाजपा जीत गई. इसी तरह 2016 में पश्चिम बंगाल में भाजपा को विधानसभा की तीन सीटें मिली थीं लेकिन 2019 में लोकसभा की 18 सीटें जीत गई. ऐसे ही झारखंड में लोकसभा की 14 में से 12 सीटें जीतीं पर उसी साल विधानसभा का चुनाव हार गई. ऐसे कई राज्यों की मिसालें दी जा सकती हैं. लेकिन इस तर्क से तो यही प्रमाणित होता है कि राज्य में भले भाजपा हार जाए पर लोकसभा चुनाव में नहीं हारती है. कुछ सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा राज्य में जीत गई और लोकसभा हार गई. ऐसा किसी राज्य में अब तक नहीं हुआ है. अपवाद के तौर पर भी किसी राज्य में ऐसा नहीं हुआ है. लेकिन कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भाजपा जरूर हारी लेकिन उन राज्यों में भी लोकसभा में बड़ी जीत हासिल की.

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अगर राज्यों में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी भाजपा लोकसभा जीत जाती है तो जिन राज्यों में विधानसभा में भी जीत रही है वहां लोकसभा का चुनाव कैसे हारेगी? विधानसभा में हारने के बाद भी लोकसभा में भाजपा के जीतने का अर्थ यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से लोगों का मोहभंग नहीं हुआ है. अभी जिन चार राज्यों में भाजपा जीती है उनमें भी चुनाव से पहले यह सर्वेक्षण सामने आया था कि राज्यों की सरकारों के मुकाबले केंद्र सरकार के कामकाज के प्रति इन राज्यों के लोगों में दो से छह गुना तक ज्यादा संतुष्टि का भाव था. यानी राज्य सरकार से नाराज लोग भी केंद्र के कामकाज से खुश और संतुष्ट थे.

पीके का दूसरा तर्क है कि आधे हिंदू अब भी भाजपा के खिलाफ वोट डाल रहे हैं. इसका मतलब है कि आधे हिंदू भाजपा के समर्थन में वोट कर रहे हैं. अगर देश में 80 फीसदी हिंदू मतदाता हैं और उसका 50 फीसदी भाजपा को वोट करता है तो इसका मतलब है कि कुल मतदान का 40 फीसदी भाजपा को मिलेगा. पूर्ण बहुमत से चुनाव जीतने के लिए इससे ज्यादा वोट की जरूरत ही नहीं है.

अब सवाल है कि 50 फीसदी हिंदू भाजपा को वोट न करे वह किन परिस्थितियों में संभव होगा? ऐसी क्या स्थिति बनेगी कि 50 फीसदी हिंदू भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को वोट न करे? सो, एक स्थिति यह है कि अगर 50 फीसदी हिंदू भाजपा को वोट न करे तो वह हार सकती है. दूसरी स्थिति यह है कि भाजपा को मिलने वाले 40 फीसदी वोट के मुकाबले बाकी 60 फीसदी वोट एकमुश्त किसी एक पार्टी या गठबंधन को मिले. लेकिन क्या ऐसी कोई स्थिति अगले दो साल में बन सकती है? इतिहास में विपक्ष दो बार एकजुट होकर लड़ा है और दोनों बार वांछित नतीजे निकले हैं. लेकिन अभी के हालात में क्या ऐसा हो पाएगा? ऐसी कोई भी परस्थिति अभी बनती नहीं दिख रही है.

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तीसरा तर्क देश के बड़े क्षेत्र में भाजपा का आधार नहीं होने का है. यह तर्क भी अपनी जगह सही है. पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल यानी पूर्वी और दक्षिण भारत के सात राज्यों की 206 लोकसभा सीटों में से भाजपा के पास 50 सीटें नहीं हैं. यानी उसका कुल चुनाव बचे हुए भारत की करीब 340 सीटों में होता है. इन 340 सीटों में से वह ढाई सौ यानी करीब 75 फीसदी सीटें जीतती है. अगर इन राज्यों में भाजपा को अपनी जीती हुई ढाई सौ सीटों में से 25 फीसदी सीटों का भी नुकसान हो जाए तो वह बहुमत से काफी नीचे आ जाएगी. लेकिन ऐसा कैसे होगा? पूर्वी और दक्षिणी भारत में भाजपा का आधार कमजोर है और उन राज्यों में उसे और भी नुकसान हो सकता है. लेकिन बचे हुए भारत के ज्यादातर राज्यों में उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से है. ऐसे में कांग्रेस के मजबूत हुए बगैर या कांग्रेस के प्रति लोगों की धारणा बदले बगैर भाजपा को कैसे हराया जा सकेगा? विपक्षी पार्टियां कांग्रेस को लेकर जिस तरह का रुख दिखा रही हैं उससे तो लग नहीं रहा है कि वे कांग्रेस को मजबूत देखना चाहती हैं. आखिर तृणमूल कांग्रेस ने गोवा में चुनाव लड़ कर कांग्रेस की जीत की संभावना खत्म की. असम से लेकर समूचे पूर्वोत्तर में वह कांग्रेस को खत्म करने में लगी है.

अब सवाल यहा है कि कांग्रेस कैसे मजबूत होगी? कांग्रेस कमजोर रही तो हिंदी पट्टी के बड़े हिस्से में भाजपा को रोकना मुश्किल होगा. ऐसा नहीं हो सकता है कि ममता बनर्जी या चंद्रशेखर राव, जगन मोहन, स्टालिन या यहां तक कि शरद पवार और नीतीश कुमार की पार्टी भी मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल आदि राज्यों में आकर चुनाव लड़ें और भाजपा को टक्कर दे. तो विपक्ष के लिए कांग्रेस का मजबूत होना जरुरी है.

दूसरा फैक्टर है कि मोदी मैजिक कैसे कम होगा कम से कम अभी इसका कोई कारण नहीं दिख रहा है. भयंकर महंगाई, बेरोजगारी और कोरोना कुप्रबंधन के कारण राज्य सरकारों से नाराजगी के बावजूद जब लोगों ने मोदी के नाम पर राज्यों में वोट किया है तो इसका क्या कारण है कि वे दो साल बाद खुद मोदी को वोट नहीं करेंगे? मुफ्त अनाज का सदावर्त आगे भी चलता रहेगा और हिंदू-मुस्लिम की राजनीति चलती रहेगी फिर विपक्ष कौन सा जादू चलाएगा कि लोगों का मोदी से मोहभंग हो जाए? यह यक्ष प्रश्न है.

सियासी जानकार इन सवालों के जवाब तो दे रहे हैं लेकिन कई अगर और मगर इसमें शामिल हो जाते हैं. जैसे महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी साथ लड़े और भाजपा को हरा दे, बंगाली अस्मिता के नाम पर ममता बनर्जी बंगाल में भाजपा को हरा दें, नीतीश कुमार साथ छोड़ दें और राजद के साथ मिल कर भाजपा को हरा दें, कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस और झारखंड में कांग्रेस-जेएमएम मिल कर भाजपा को हरा दें, कांग्रेस और आप साथ लड़ें जो हाल फिलहाल में संभव नहीं नहीं आ रहा है.

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