Politalks.News/PunjabChunav. पंजाब (Punjab) के फिरोजपुर (Firozpur) में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) की सुरक्षा में चूक (PM Security Lapse) के मामले को लेकर सियासत बदस्तूर जारी है. वहीं मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में नई जांच कमेटी बनाने के आदेश जारी कर दिए हैं. उम्मीद बनी है कि अब घटना की जांच होगी और पता चलेगा चूक कहां हुई? लेकिन इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सियासी गलियारों में एक सवाल पर जबरदस्त चर्चा है कि, ‘अपने सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं जिंदा लौट आया, कहने के बजाय क्या पीएम मोदी को आंदोलकारियों को बुलाकर बात नहीं करनी चाहिए थी? क्या पीएम मोदी किसानों को ‘मरहम’ लगाने के एक बड़े मौके को चूक गए? आंदोलनकारियों को बुलाकर उनसे बात करते और किसानों का दिल जीतने की कोशिश करते तो भाजपा को पंजाब ही नहीं बाकी राज्यों में भी फायदा जरूर होता. इसके बजाय पीएम मोदी ने एक तो पंजाब के मुख्यमंत्री के खिलाफ बयान दिया और रैली को भी रद्द कर लौट आए.’
इसी बीच देश के सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा फिरोजपुर से डर कर लौट आने को लेकर बहस छिड़ी हुई है. वहीं, इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि किसानों से बात कर मरहम लगाने का मौका तो पीएम मोदी ने खोया है. आपको बता दें, ये वही किसान थे जो करीब 13 महीने तक दिल्ली की सरहदों पर डटे हुए थे और उस समय भी पीएम मोदी ने उनसे बात नहीं की थी. ऐसे में सियासी चर्चाएं ये भी हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को इन दिनों राय कौन दे रहा है?
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वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर कई ऐसे पत्रकारों के विश्लेषण भी आए हैं जो काफ़ी समय से गृह मंत्रालय को कवर करते आए हैं. ऐसे में उनका गृह मंत्रालय के उच्च अधिकारियों से अच्छा संपर्क होता है. उसी संपर्क के चलते कुछ पत्रकारों ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए गठित स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप ‘एसपीजी’ की कार्यप्रणाली से संबंधित सवाल भी उठाए हैं. दूसरी ओर कुछ पंजाब सरकार को ही दोषी बता रहे हैं. वहीं भाजपा ने इस घटना की निंदा करते हुए पंजाब की चरणजीत सिंह चन्नी सरकार को घेरने की कोशिश की है. माना जा रहा है कि यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि इस घटना को लेकर अभी तक किसी भी तरह की कोई औपचारिक जानकारी नहीं दी गई है.
इधर अपने आप को घिरता देख पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी ने अपनी सफ़ाई में आनन-फ़ानन में फ़िरोज़पुर के एसएसपी को सस्पेंड कर दिया गया है. तो उधर सोशल मीडिया पर कई तरह के वीडियो सामने आ रहे हैं, जिनमें भाजपा का झंडा लिए हुए कुछ लोग ‘मोदी ज़िंदाबाद‘ के नारे लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं और एसपीजी वाले चुपचाप खड़े हैं. कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी जब बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के पाकिस्तान के लाहौर चले गए, तब उनकी जान कोई ख़तरा नहीं था और वहीं जब भारत में अचानक उनके रास्ते में एक किलोमीटर आगे किसान आ गए तो उनकी जान को ख़तरा कैसे हो गया? औपचारिक ब्यौरा न होने से अटकलों का बाज़ार गर्म होता जा रहा है. ऐसे में एक गम्भीर घटना भी मज़ाक़ बन कर रह गई और चूक कहां हुई इसकी जानकारी नहीं मिल पा रही?
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इसके साथ ही सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी जानकारी भी साझा की जा रही है जिनमें पूर्व प्रधानमंत्रियों पर हुए ‘हमले‘ के वीडियो भी सामने आए हैं. फिर वो चाहे इंदिरा गांधी के साथ हुई भुवनेश्वर की घटना हो या राजीव गांधी पर राजघाट पर हुए हमले की हो या फिर मनमोहन सिंह पर अहमदाबाद में जूता फेंके जाने की घटना हुई हो. सबसे बड़ी बात, इनमें से किसी भी घटना में किसी भी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यक्रम रद्द नहीं किया. बल्कि उनकी सुरक्षा में तैनात कमांडोज ने बहुत फुर्ती दिखाई. फ़िरोज़पुर की घटना के बाद एक न्यूज़ एजेंसी के हवाले से ऐसा पता चला है कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक अधिकारी से कहा कि ‘अपने सीएम को थैंक्स कहना कि मैं ज़िंदा लौट पाया‘, ये अधिकारी कौन है इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हुई है, क्योंकि उस अधिकारी द्वारा ऐसा संदेश औपचारिक रूप से नहीं भिजवाया गया. लेकिन घटना के बाद से ही यह वाक्य काफ़ी प्राथमिकता से मीडिया में घूम रहा है. इससे आम जनता में एक अलग ही तरह का संदेश गया है.
आपको बता दें, फ़रवरी 1967 में जब चुनावी रैली के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी भुवनेश्वर पहुंचीं तो वहां की उग्र भीड़ में से एक ईंट आ कर उनकी नाक पर लगी और खून बहने लगा. इंदिरा गांधी ने अपनी नाक से बहते हुए खून को अपनी साड़ी से रोका और अपनी चुनावी सभा पूर्ण की. उस सभा में गांधी ने उपद्रवियों से कहा कि, ‘ये मेरा अपमान नहीं है बल्कि देश का अपमान है, क्योंकि प्रधानमंत्री के नाते मैं देश का प्रतिनिधित्व करती हूं’. इस घटना ने भी उनके चुनावी दौरे में परिवर्तन नहीं होने दिया और वे भुवनेश्वर के बाद कलकत्ता भी गयीं. इंदिरा गांधी ने अपने पर हुए हमले के बाद ऐसा कोई भी बयान नहीं दिया कि ‘मैं ज़िंदा लौट पाई!’ बल्कि एक समझदार राजनीतिज्ञ के नाते उन्होंने इस घटना को एक ‘मामूली घटना’ बताते हुए कहा कि चुनावी सभाओं में ऐसा होता रहता है.
वहीं अब फ़िरोज़पुर की घटना पर नजर डालें तो पता चलता है कि प्रधानमंत्री मोदी के क़ाफ़िले से काफ़ी आगे लगभग एक किलोमीटर दूर किसानों का एक शांतिपूर्ण धरना था. प्रधानमंत्री मोदी अपनी गाड़ी में बैठे हुए थे और क़रीब 20 मिनट तक उन्हें रुकना पड़ा. इस दौरान न तो कोई प्रदर्शनकारी उनकी गाड़ी तक पहुंचा और न ही उन पर किसी भी प्रकार का हमला हुआ. इतनी देर तक प्रधानमंत्री को एक फ़्लाईओवर पर खड़े रहना पड़ा इसकी जवाबदेही तो एसपीजी की है. क्योंकि सुरक्षा के जानकारों के मुताबिक़ प्रधानमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी एसपीजी की है न कि किसी भी राज्य पुलिस की. बता दें, प्रधानमंत्री मोदी के क़ाफ़िले में कई गाड़ियाँ उनकी गाड़ी से आगे भी चलती हैं. अगर एसपीजी को प्रदर्शन की जानकारी लग गई थी तो प्रधानमंत्री की गाड़ी को आगे तक आने क्यों दिया गया? दिल्ली में जब भी प्रधानमंत्री का क़ाफ़िला किसी जगह से गुजरता है तो जनता को काफ़ी दूर तक और देर तक रोका जाता है. इसका मतलब एसपीजी इससे सुनिश्चित कर लेती है कि कोई भी प्रधानमंत्री के क़ाफ़िले के मार्ग में नहीं आएगा.
ऐसे में सियासी गलियारों में चर्चा उठना लाजमी है कि अच्छा तो यह होता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी एसपीजी से कह कर प्रदर्शन करने वालों के एक प्रतिनिधि को अपने पास बुलवाते और उससे बात करते. इससे किसानों के बीच न सिर्फ एक अच्छा संदेश जाता और आने वाले चुनावों में भी शायद इसका बड़ा फ़ायदा मिलता. दिल्ली की सरहदों पर एक साल तक प्रदर्शन करते किसानों से तो आप मिले नहीं, मगर एक छोटे से समूह के प्रतिनिधि से मिल लेते तो सोशल मीडिया पर चल रहे मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मालिक द्वारा आपके ‘मेरे लिए थोड़ी मरे‘ वाले बयान पर थोड़ी मरहम जरूर लग जाती. इसके उलट देश के प्रधानमंत्री के मुंह से ‘मैं ज़िंदा बच कर लौट आया‘ जैसा बयान किसी के भी गले नहीं उतर रहा. वहीं विपक्ष इसे जबरदस्त नौटंकी और सत्ता पक्ष जानलेवा साज़िश बता रहा है, ऐसे में पॉलिटॉक्स का मानना है कि ‘ये बातें, ऐसा विवाद’ प्रधानमंत्री के पद की गरिमा के अनुरूप नहीं है.