Politalks.News/Congress. क्या एक बार फिर सोनिया गांधी ही संभालेंगी और चलाएंगी कांग्रेस पार्टी को? पांच राज्यों में मिली ऐतिहासिक हार के बाद सोनिया गांधी के कामकाज के तरीके ने ऐसी सियासी चर्चाओं को जोर दिया है. लेकिन ज्यादातर कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि ऐसा नहीं है. फिर सवाल है की क्यों कांग्रेस के नाराज नेताओं से लेकर चुनाव वाले राज्यों के नेताओं से सोनिया मिल रही हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि इन मुलाकातों में राहुल गांधी शामिल नहीं हो रहे हैं? किसी से छिपा नहीं है कि पांच राज्यों के चुनावों से पहले तक को राहुल कांग्रेस के ‘अध्यक्ष‘ की तरह काम कर रहे थे और अब अचानक घर बैठ गए! क्या इससे उनके ऊपर से निशाना हट जाएगा? क्या अगले पांच-छह महीने में होने वाले अध्यक्ष के चुनाव में वे दावेदार नहीं होंगे?
सियासी गलियारों में कांग्रेस की हालत को लेकर चर्चा है कि असल में कांग्रेस नेतृत्व को कुछ समझ नहीं आ रहा है इसलिए एक पेंडूलम से दूसरे पेंडूलम की ओर पार्टी की राजनीति झूल रही है. पांच राज्यों के चुनाव से पहले सारे फैसले राहुल कर रहे थे, हर जगह राहुल दिखाई देते थे, यहां तक कि माना जाने लगा था कि उन्होंने पार्टी संभाल ली है और सोनिया गांधी अब संन्यास की अवस्था में हैं. और हो भी क्यों ना आखिर सोनिया इस साल 75 वर्ष की होने वाली हैं और सेहत भी ठीक नहीं रहती है. लेकिन पांच राज्यों में कांग्रेस हारी तो राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा दोनों परदे के पीछे चले गए हैं और सोनिया ने कमान संभाल ली. सोनिया गांधी पांच राज्यों में हार के बाद एक के बाद एक मुलाकातें कर रही हैं. सोनिया गांधी इस हार के बाद संसद में तीन बार बयान भी दे चुकी हैं.
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आपको बता दें, हार से सबक लेते हुए सोनिया गांधी एक्शन में हैं और उन्होंने कांग्रेस के नाराज नेताओं के समूह जी-23 के नेताओं से मुलाकात भी की है. पहले गुलाम नबी आजाद से मिलीं, जिसके बाद आजाद ने कहा कि, ‘कांग्रेस के नेतृत्व पर कभी सवाल ही नहीं उठाया‘. उसके बाद सोनिया ने आनंद शर्मा और मनीष तिवारी सहित कुछ और नेताओं से भी मुलाकात की. सोनिया हिमाचल प्रदेश के नेताओं से भी मिलीं और इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर बातचीत की. क्या कांग्रेस के पूर्व और भावी अध्यक्ष के नाते राहुल गांधी इन बैठकों में नहीं शामिल हो सकते थे?
कांग्रेस आलाकमान की इस कार्यशैली को लेकर सियासी जानकारों का कहना है कि, राहुल गांधी को नजरों से दूर रख कर सोनिया गांधी कोई रणनीतिक कमाल नहीं कर रही हैं. अगर कांग्रेस के कुछ नेता खास कर पुराने नेता राहुल से नाराज हैं तो उनकी नाराजगी सिर्फ इस बात से दूर नहीं हो जाएगी कि राहुल सामने नहीं हैं और सोनिया ने कमान संभाल ली है, उलटे इससे तो उनका हौसला बढ़ेगा कि वे दबाव डाल कर सोनिया को मजबूर कर सकते हैं कि वे अपने बेटे को दूर रखें.
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वहीं कुछ सियासी जानकारों का यह भी कहना है कि, देर-सबेर राहुल गांधी को ही पार्टी की कमान संभालनी है इसलिए यह बचकाना लग रहा है कि उनको अचानक परदे के पीछे कर दिया गया है. जब राहुल ने नतीजों के बाद आगे आकर जिम्मेदारी स्वीकार की तो इसे ठीक करने की जवाबदेही भी उनको अपने ऊपर लेनी चाहिए. सोनिया गांधी को भी नाराज नेताओं को दो टूक संदेश देना चाहिए कि राहुल ही पार्टी का भविष्य हैं, उन्हें स्वीकार करें या अपना भविष्य कहीं और देखें.