Politalks Postmortem: राहुल को लेकर PK की इस सोच से भड़के दिग्गज और बिगड़ा सारा खेल!

अगले माह उदयपुर में होने वाले चिंतन शिविर से पहले ही कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच तलाक के कागज पर दस्तखत हो गए और वो भी दोनों की रजामंदी से, कांग्रेस को समझ आ गया कि इतनी बड़ी पार्टी किसी को ठेके पर नहीं दी जा सकती और पीके को यह कि कांग्रेस किसी के चलाए चलने वाली पार्टी नहीं, जैसी चलेगी अपने आप ही चलेगी, कांग्रेस की एक शर्त यह भी थी कि उनकी कंपनी यानी इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी यानी आई-पैक बाकी सभी पार्टियों से संबंध तोड़े, इसके अलवर कांग्रेस के कुछ बिना आधार वाले नेताओं को हुआ असुरक्षा का बोध, उनको लगा पीके अगर कांग्रेस की कमान संभालते हैं तो उनकी हो जाएगी छुट्टी

PK की इस एक गलती ने बिगाड़ा सारा खेल
PK की इस एक गलती ने बिगाड़ा सारा खेल

Politalks.News/Congress/PK. कुछ दिनों पहले तक कांग्रेस में प्रमुख रणनीतिकार प्रशांत किशोर की एंट्री के माहौल से न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं में बल्कि आम आदमी में भी यह संभावना जाग गई थी कि अब शायद कांग्रेस के अच्छे दिन जरूर आ जाएंगे. अगले माह उदयपुर में होने वाले कांग्रेस के चिंतन शिविर में पीके की बड़ी भूमिका होने वाली थी. मगर उससे पहले ही कांग्रेस पार्टी से एक बार फिर प्रशांत किशोर की बात बिगड़ गई, या यूं कहें कि दोनों के बीच तलाक के कागज पर दस्तखत हो गए और वो भी दोनों की रजामंदी से. इससे पहले कांग्रेस ने पीके से कहा आइए, संभालिए! पीके ने कहा नौ थैंक्यू वैरी मच! दोनों के समझ में आ गया कि वे एक दूसरे के लिए नहीं बने हैं. कांग्रेस को समझ आ गया कि इतनी बड़ी पार्टी किसी को ठेके पर नहीं दी जा सकती और पीके को यह कि कांग्रेस किसी के चलाए चलने वाली पार्टी नहीं है, जैसी चलेगी अपने आप ही चलेगी.

हां, इस बार दोनों के बीच बात बिगड़ने में बड़ा फर्क यह है कि पीके ने इस बार कांग्रेस को निशाना नहीं बनाया है. पिछली बार बात बिगड़ी थी तो पीके बहुत नाराज हुए थे और उन्होंने कांग्रेस पर हमला किया था. प्रशांत किशोर ने कहा था कि कांग्रेस नेहरू-गांधी परिवार की पार्टी नहीं है, बल्कि वे उसके कस्टोडियन हैं. पीके ने यह भी कहा था कि कांग्रेस का नेतृत्व संभालना किसी का दैविक अधिकार नहीं है. लेकिन इस बार पीके ने एक ट्विट किया है, जिसमें कहा कि कांग्रेस ने उनको इम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का सदस्य बनने और कांग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव दिया, जिसे वे स्वीकार नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कांग्रेस का प्रस्ताव ठुकराते हुए आगे लिखा कि कांग्रेस को उनकी जरूरत नहीं है, बल्कि नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ताकि उसकी गहरी संरचनागत खामियों को दुरुस्त किया जा सके.

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खैर, यह तो वो है जो सभी को पता है, लेकिन सवाल तो यह है कि इतनी लंबी बातचीत और कम से कम तीन से चार बार दिग्गजों के सामने प्रेजेंटेशन देने के बावजूद ऐसा क्या हुआ कि दोनों के बीच बात नहीं बनी? जानकार सूत्रों के मुताबिक दोनों को एक-दूसरे के प्रस्ताव कबूल नहीं थे. प्रशांत किशोर ने सब कुछ अपने हाथ में लेने का प्रस्ताव दिया था. बताया जा रहा है कि पीके अकेले सब संभालना चाह रहे थे और उन्होंने यह भी कहा था कि पार्टी के नेताओं की ओर से किसी तरह के दखल नहीं होना चाहिए. वे सीधे सोनिया या राहुल गांधी को रिपोर्ट करना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस के नेता इसके लिए तैयार नहीं हुए.

यहां आपको बता दें कि कांग्रेस के यह कहने से कि हमने प्रशांत किशोर को पार्टी में आने का और एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 को हेड करने का ऑफर दिया था, इससे साबित हो गया कि कांग्रेस को पीके की जरूरत थी. नहीं होती तो सर्वोच्च स्तर पर इतने दिनों तक बातचीत, प्रजन्टेशन का सिलसिला नहीं चलता. कांग्रेस की हालत चाहे जितनी बुरी हो, मगर सोनिया गांधी, सोनिया गांधी हैं. उनसे मिलने के लिए अभी भी बड़े बड़े लोगों की रिक्वेस्ट हफ्तों पेंडिग पड़ी रहती है, वहीं पीके से सोनिया गांधी ने लगातार 4 से 5 दिन मुलाकात की, तो जरूरत कांग्रेस को थी यह तय है.

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सियासी जानकारों की मानें तो यहां प्रशांत किशोर से गलती यह हो गई कि उन्होंने समझा कि कांग्रेस बिल्कुल खत्म हो गई है और उसको संजीवनी वे ही सुंघाएंगे. इसी चक्कर में वे राहुल गांधी को साइड लाइन करने की बात करने लगे. उन्हें लगा कि कांग्रेस में सबसे ताकतवर राहुल गांधी ही हैं. अगर पार्टी में आना है और अपनी जगह बनाना है तो इन्हें हटाना होगा. बस यहीं वे धोखा खा गए. राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष पद से अलग हटाने की बात करके, राहुल गांधी आज चाहे खुद अध्यक्ष बनने से मना करें, लेकिन अगर कोई और यह बात करे तो कांग्रेस इसे अपनी तौहीन समझती है. राहुल आज भी उनके लिए सबसे मूल्यवान हैं चाहे वे अध्यक्ष बने या न बनें. मगर कोई दूसरा कहे कि राहुल को अध्यक्ष नहीं होना चाहिए तो कांग्रेस के लिए यह स्वीकार करने योग्य बात नहीं है.

इसके अलावा कांग्रेस की दूसरी शर्त यह थी कि उनकी कंपनी यानी इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी यानी आई-पैक बाकी सभी पार्टियों से संबंध तोड़े. कांग्रेस प्रशांत किशोर और आई-पैक को एक मान रही है. लेकिन प्रशांत का कहना था कि आई-पैक अलग कंपनी है, जिससे अब उनका कोई संबंध नहीं हैं. पीके ने बताया कि वे चुनाव रणनीति बनाने और चुनाव प्रबंधन के काम से अलग हो चुके हैं और कंपनी स्वतंत्र रूप से काम कर रही है. लेकिन, पश्चिम बंगाल में ममता की TMC से 2025 तक का करार और हाल ही में तेलंगाना में टीआरएस के साथ हुआ आई-पैक का करार, यही नहीं इस दौरान प्रशांत किशोर का लगातार दो दिन तक हैदराबाद में मौजूद रहने से कांग्रेस को दिक्कत हुई.

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इन सबके आलावा एक तीसरा कारण यह कि कांग्रेस के कुछ बिना आधार वाले और परजीवी नेताओं का असुरक्षा बोध है, जिनको लग रहा था कि पीके अगर कांग्रेस की कमान संभालते हैं तो उनकी छुट्टी हो जाएगी. इसलिए उन्होंने झूठे-सच्चे प्रचार के जरिए संदेह पैदा किया है. सही है कि प्रशांत ने पहली बार बात बिगड़ने पर कांग्रेस तोड़ने का प्रयास किया था. कई नेताओं को भड़काया था. लेकिन इस बार वे ईमानदारी से कांग्रेस को 2024 का चुनाव लड़ाना चाहते थे क्योंकि उनको इसी में एकमात्र संभावना दिख रही थी. लेकिन नरेंद्र मोदी से पुराने संबंधों और कांग्रेस विरोध के नाम पर कांग्रेस के नेताओं ने ही उनके रास्ते में बाधा डाल दी.

दरअसल, ये ही कांग्रेस है! देसी भाषा में कहते हैं कि या तो इयां ही चालेली! जो भी हो. मगर कांग्रेस को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी और अभी भी है जो सबकी सुन सके. जो सबसे मिल सके. प्रशांत किशोर का जो समर्थन कांग्रेस नेता कर रहे थे वह इसी वजह से था. एक ऐसे व्यक्ति की तलाश जो कांग्रेस नेतृत्व और बाकी पार्टी के बीच कड़ी का काम कर सके.

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