इमरजेंसी के समय सिक्ख वेश में भूमिगत हुए थे PM मोदी! सिक्ख नेताओं के बीच किए दावे में कितना दम?

सिक्ख नेताओं के बीच पीएम मोदी के दावे को लेकर शुरू हुई सियासी चर्चा, पीएम मोदी ने आपातकाल के दौरान अंडरग्राउंड होने की कही बात, बोले- 'मैं छिपने के लिए एक सिक्ख का धरता था भेष और पहनता था पगड़ी', पीएम के दावे को लेकर चर्चा का दौर हुआ शुरू, पीएम मोदी के अंडरग्राउंड होने के नहीं हैं कोई भी प्रमाण, क्या पंजाब में चुनाव को देखते हुए पीएम मोदी ने कही ये बात!

इमरजेंसी के समय सिक्ख वेश में भूमिगत हुए थे PM मोदी!
इमरजेंसी के समय सिक्ख वेश में भूमिगत हुए थे PM मोदी!

Politalks.News/PmModi. बीती 20 फरवरी को पंजाब में विधानसभा चुनाव (Assembly elections in Punjab) के लिए हुए मतदान (Punjab Election) से ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने दिल्ली में अपने आवास पर वरिष्ठ सिख नेताओं से मुलाकात की. प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक वीडियो में वो कहते दिख रहे हैं कि, ‘यह देश कोई 1947 में पैदा थोड़े ही हुआ है जी….हमारे गुरुओं ने कितनी तपस्या की है…हमने इमरजेंसी ऑपरेशन के समय बहुत पीड़ाएं सहीं. उस दौरान पंजाब में इमरजेंसी के खिलाफ सत्याग्रह (Satyagraha against Emergency) हुआ करते थे. मैं उस समय अंडरग्राउंड था. मैं छिपने के लिए एक सिख का भेष बना कर रखता था. मैं पगड़ी पहना करता था.’ अब सियासी गलियारों में चर्चा है कि क्या सच में पीएम मोदी आपातकाल के समय अंडरग्राउंड हुए थे? क्या सच में पंजाबी युवक का भेष धरा था? मात्र 24 साल के एक सामान्य स्वयं सेवक युवक को क्या भूमिगत होने की जरुरत भी पड़ी थी? कुछ सियासी जानकार पीएम मोदी के इस बयान को पंजाब चुनाव को देखते हुए फेंका गया सियासी पासा मान रहे हैं.

आपको बता दें, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पंजाब विधानसभा चुनाव से एक दिन पहले शनिवार को दिल्ली में सिक्खों को अपने सरकारी निवास पर बुलाकर उनसे शॉल और सिरोपा ग्रहण किया. इस दौरान पीएम मोदी ने पंजाब और सिक्खों से अपना पुराना नाता बताते हुए कहा कि, ‘आपातकाल के दौरान वे गिरफ्तारी से बचने के लिए जब भूमिगत हो गए थे तो पुलिस से बचने के लिए अक्सर सिक्ख का वेश धारण कर लिया करते थे’. यहां आपको याद दिला दें कि किसान आंदोलन के दौरान जिन सिक्खों को केंद्र सरकार के मंत्रियों और भाजपा नेताओं ने खालिस्तानी और गुंडा-मवाली कहा था, उसी समुदाय के कुछ कथित धर्मगुरुओं और नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब में मतदान से दो दिन पहले घर बुलाया और बात की.
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सियासी गलियारों में पीएम मोदी के बयान को लेकर चर्चा है कि जून 1975 में जब आपातकाल लागू हुआ था तब पीएम नरेंद्र मोदी महज 24 साल के नौजवान थे और आरएसएस के एक सामान्य स्वयंसेवक हुआ करते थे. यानी राजनीति में उनका उदय ही नहीं हुआ था. चर्चा है कि उस वक्त नरेंद्र मोदी की कोई राजनीतिक पहचान नहीं थी इसलिए उनके भूमिगत हो जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता. सियासी जानकारों का कहना है पीएम मोदी भाजपा के उन नेताओं में से हैं जो अपने जीवन में किसी राजनीतिक आंदोलन के दौरान जेल तो दूर, पुलिस थाने तक भी नहीं गए हैं और न ही उन्होंने किसी तरह की पुलिस प्रताड़ना झेली है.

सियासी जानकार बताते हैं कि पीएम मोदी भले ही यह दावा करें कि वे आपातकाल के दौरान भूमिगत रह कर काम कर रहे थे, लेकिन इस दावे की पुष्टि के लिए कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती. वैसे भी जब आपातकाल लगा था तब गुजरात में कांग्रेस विरोधी जनता मोर्चा की सरकार थी, जिसके मुख्यमंत्री बाबूभाई पटेल थे. इस वजह से गुजरात में विपक्षी कार्यकर्ताओ की वैसी गिरफ्तारियां नहीं हुई थीं, जैसी देश के अन्य राज्यों में हुई थीं. बल्कि इसी वजह से आपातकाल के खिलाफ भूमिगत संघर्ष में जुटे कई नेताओं और कार्यकर्ताओं ने गुजरात में शरण ली थी. मोरारजी देसाई और पीलू मोदी जैसे गुजरात के वे ही दिग्गज नेता गिरफ्तार किए गए थे, जो गुजरात से बाहर दिल्ली में रहते थे.

आपातकाल के दौरान गुजरात में विपक्षी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का दौर तभी शुरू हुआ था जब 1976 में बाबूभाई पटेल की सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था. गुजरात में कई नेता और कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए थे. जो लोग भूमिगत होने की वजह से गिरफ्तार नहीं किए जा सके थे उनके वारंट जारी हुए थे और उनमें से कई लोगों के परिवारजनों को पुलिस प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा था. लेकिन न तो गुजरात के पुलिस, जेल और खुफिया विभाग के आपातकाल से संबंधित तत्कालीन सरकारी अभिलेखों में मोदी के नाम का कहीं उल्लेख मिलता और न ही इस बात का कोई प्रमाण मिलता है कि कथित तौर पर भूमिगत हुए मोदी के परिवारजनों को पुलिस ने किसी तरह से परेशान किया हो. पीएम मोदी खुद भी ऐसा दावा नहीं करते हैं.

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सैंतालीस साल यानी करीब साढ़े चार दशक पुराने आपातकाल के कालखंड को हर साल 25-26 जून को याद किया जाता है, लेकिन पिछले सात-आठ साल से उस दौर को सत्ता के शीर्ष से कुछ ज्यादा ही याद किया जा रहा है. सिर्फ आपातकाल की सालगिरह पर ही नहीं बल्कि हर मौके-बेमौके याद किया जाता है. आपातकाल के बाद से अब तक देश में सात गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हुए हैं, जिनमें से दो-तीन के अलावा शेष सभी आपातकाल के दौरान पूरे समय जेल में रहे थे (जेल में रहने वालों में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी शामिल किया जा सकता है, हालांकि उन्हें कुछ ही दिन जेल में रहना पड़ा था. बाकी समय उन्होंने पैरोल पर रहते हुए बिताया था) लेकिन उनमें से किसी ने भी कभी आपातकाल को इतना ज्यादा और इतने कर्कश तरीके से याद नहीं किया जितना कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते रहते हैं.

आपको बता दें, कांग्रेस पर वार करते समय ‘आपातकाल’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रिय विषय रहता है. पीएम मोदी कांग्रेस को निशाने पर लेने के लिए जब-तब आपातकाल का जिक्र करते रहते हैं- देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी, खासकर किसी भी चुनाव के मौके पर वे अपने भाषणों में लोगों को आपातकाल की याद दिलाना नहीं भूलते. इस समय पांच राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान भी वे अपने लगभग हर भाषण में आपातकाल का जिक्र कर रहे हैं.

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