Politalks.News/UttraPradeshChunav. उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) में छः चरणों का मतदान सम्पन्न होने के बाद चुनावी घमासान थमने की ओर है. अब बचे आखिरी सातवें चरण में काशी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. यही वजह है कि पीएम मोदी काशी के चुनाव की कमान संभालने खुद वाराणसी पहुंचे हैं. इसके साथ ही बीजेपी के चाणक्य और देश के गृहमंत्री अमित शाह और सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने भी यहीं डेरा डाल लिया है. दिग्गजों ने काशी को सनसनाया हुआ है. सियासी गलियारे इस सवाल से गूंज रहे हैं कि, यूक्रेन-रूस युद्ध (Russia-Ukraine crisis) और वैश्विक संकट के बीच में भला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे दो दिन क्यों वाराणसी में रहेंगे? क्या काशी कॉरिडोर वाली शहर दक्षिण सीट भाजपा हार रही है? क्या नरेंद्र मोदी का लोकसभा क्षेत्र भी सुरक्षित नहीं है? क्यों वाराणसी दक्षिण सीट (Varanasi South seat) के भाजपा विधायक ने जनता से माफ करने की विनती का वीडियो जारी कर एक और मौका देने की सार्वजनिक विनती की? सियासी जानकारों का कहना है कि कम से कम 2017 वाला रिकॉर्ड कायम रखना तो भाजपा की मजबूरी है. ये सब पीएम मोदी की प्रतिष्ठा से जुड़ा है. अगर एक भी सीट वाराणसी में भाजपा हारती है तो सवाल उठेंगे….
आपको बता दें, यूपी विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण में काशी का चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा व साख का प्रश्न बन गया है. कुछ भी हो वाराणसी की सभी सीटों पर सन् 2017 जैसी जीत होनी चाहिए और खासकर दक्षिण की उस सीट पर जिसमें काशी कॉरिडोर है. इसलिए नरेंद्र मोदी खुद काशी में डेरा डाल बैठे है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा का पूरा तंत्र तमाम संसाधनों के साथ मिशन बनाए हुए है कि वाराणसी की एक भी सीट हारी तो वह प्रधानमंत्री की हार होगी. वाराणसी में हार से पूरे देश में प्रतिष्ठा को नुकसान होगा.
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आपको बता दें, वाराणसी दक्षिण की सीट पर मौजूदा मंत्री-विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी को भाजपा ने फिर से उम्मीदवार बनाया है. पीएम मोदी के काशी पहुंचने से पहले एक वीडियो वायरल किया गया है जिसमें तिवारी हाथ जोड कर अपनी गलतियों के लिए लोगों से माफी मांगते नजर आ रहे हैं. इसको लेकर सियासी गलियारों में सवाल उठ रहे हैं आखिर क्यों? क्या सचमुच हर तरफ भाजपा के मौजूदा विधायकों के खिलाफ लोगों में एंटी-इनकंबेसी, नाराजगी कम-ज्यादा अनुपात में है. प्रधानमंत्री मोदी का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र अपवाद नहीं है. सभी आठ विधानसभा सीटों पर वैसी गूंज कतई नहीं है जैसी पिछली बार 2017 में नरेंद्र मोदी के एक दौरे से बन जाया करती थी. मामूली बात नहीं जो प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव घोषणा से पहले और बाद में वाराणसी के एक के बाद एक चक्कर लगाए और काशी में रात गुजारी और अब वापस मतदान से पहले भी रात गुजारेंगे.
वहीं इस बार समाजवादी पार्टी ने यहां नीलकंठ तिवारी के खिलाफ एक ब्राह्मण किशन दीक्षित को उम्मीदवार बनाया है. मोदी-भाजपा की प्रतिष्ठा की नंबर एक सीट काशी कॉरिडोर वाली शहर दक्षिणी सीट है. दोनों तरफ ब्राह्मण उम्मीदवार होने से ब्राह्मणों में यदि 25-30 प्रतिशत भी समाजवादी पार्टी के दीक्षित को मिले तो मुसलमान, यादव से लेकर बंगाली और पिछडी जातियों के कम-ज्यादा वोटों की पलटी काशी कॉरिडोर में मोदी के जादू को खत्म करते हुए होगी. इसके बाद शहर उत्तरी, शिवपुर, वाराणसी कैंट में कांटे की लडाई का हल्ला जातिय समीकरण और एकमुश्त मुस्लिम वोटों के चलते है. शहर की कोर सीटों में जब ये हाल है तो इर्दगिर्द की राजभर, कुर्मी, दलित, पिछडी जातियों, मुस्लिम के वोट लिए रोहनिया, सेवापुरी, पिंडरा, अजगरा (सुरक्षित) सीटों पर भी भाजपा को मेहनत करनी पड़ रही है.
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दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी डॉ नीलकंठ तिवारी लोगों की नाराजगी के मारे है. कुछ लोग सन् 2017 में भाजपा हाईकमान द्वारा श्यामदेव राय चौधरी का टिकट काटने की नाराजगी अभी भी पाले हुए हैं. सीट के एक मतदाता हरीश पांडे ने कहां- ‘तिवारीजी तो कभी इस तरफ दिखे ही नहीं, जबकि चौधरीजी हमेशा लोगों के साथ होते थे’. ऑटोरिक्शा चलाने वाले नौजवान समाजवादी पार्टी के समर्थक है तो सभी मुसलमानों से सुनाई देता है कि हमारा वोट नहीं बंटेगा. हमें पता है किसे वोट देना है. वहीं मल्लाह, मांझी जैसी जातियों में ये डॉयलॉग मिले कि सबने सन् 2017 में भाजपा को वोट किया लेकिन इस दफा अखिलेश यादव को वोट मिलेंगे.