बिहार में गुजरते वक्त के साथ चुनावी सरगर्मियां तेज होती जा रही हैं. राज्य की सभी राजनीतिक पार्टियों ने सियासी बिसात बिछाना भी शुरू कर दिया है. एक ओर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव प्रदेशभर में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकाल रहे हैं. वहीं चुनावी समीकरणों को पक्ष में करने के लिए एनडीए भी जमकर पसीना बहा रहा है. इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के गयाजी में विभिन्न क्षेत्रों के लिए बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, शहरी विकास और जल आपूर्ति संबंधी लगभग 13 हजार करोड़ रुपए की लागत वाली कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया. इसके साथ ही दो ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई. ऐसा करते हुए उन्होंने न केवल कई चुनावी समीकरण को साधा, बल्कि बीजेपी-एनडीए का सबसे कमजोर ‘मगध का किला’ साधने के साथ प्रदेश की 48 विधानसभा सीटों को भी साधने की कोशिश की.
2020 में जेडीयू का नहीं खुला था खाता
दरअसल पीएम मोदी की नजर पूरी तरह से मगध पर बनी हुई है, क्योंकि मगध बीजेपी ही नहीं बल्कि पूरे एनडीए कुनबे के लिए सबसे कमजोर कड़ी मानी जाती है. साल 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव की बात करें तो एनडीए को जरूर पूर्ण बहुमत मिला हो, लेकिन मगध के इलाके में बीजेपी या फिर जेडीयू सबका हाल एक जैसा ही रहा था.
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इस दौरान राज्य के मगध इलाके में आने वाली 26 विधानसभा सीटों में से महागठबंधन के खाते में 20 सीटें आई थीं जबकि एनडीए को महज 6 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. इस दौरान नीतीश कुमार की पार्टी का खाता तक नहीं खुला था. बीजेपी, जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ दोनों को तीन तीन सीटों से संतोष करना पड़ा. मगध के नवादा, औरंगाबाद, अरवल और जहानाबाद में महागठबंधन का पलड़ा भारी रहा.
वहीं साल 2015 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो मगध की 26 सीटों में से 21 सीटें महागठबंधन के खाते में आई थी. एनडीए को महज 5 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. हालांकि 2010 में एनडीए को 26 में से 24 सीटों पर विजयश्री मिली लेकिन उसके बाद एनडीए का प्रदर्शन फीका ही रहा.
सीएम कुर्सी पर 20 सालों से विराजमान नीतीश
2005 से लेकर अब तक जनता दल यूनाइटेड के मुखिया नीतीश कुमार बीते 20 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर विराजमान हैं. 2005 में पहली बार एनडीए के समर्थन से नीतीश ने सीएम पद संभाला और बिहार को लालू राज से मुक्त कराया. 2010 में काफी कम समय के लिए आरोपों से घिरे ‘सुशासन बाबू’ के नाम से जाने जाने वाले नीतीश ने जीतनराम माझी को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया लेकिन जब उन्होंने कुर्सी छोड़ने के लिए कहा तो माझी के मना करने के बाद नीतीश ने समर्थन वापिस ले लिया. सरकार गिरी और फिर से हुए चुनावों में नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बन बैठे. इसके बाद नीतीश कभी एनडीए तो कभी राजद, दोनों के साथ बारी बारी से गठबंधन में चुनाव लड़ते रहे और मौका परस्त्ती देखकर कभी इधर तो कभी उधर पासा पटलते गए लेकिन सीएम की कुर्सी पर बरकरार रहे.
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आगामी चुनाव नीतीश का आखिरी चुनाव बताया जा रहा है. ऐसे में नीतीश के साथ एनडीए भी पूरा जोर लगा रही है. वहीं पिछले चुनावों में 12 सीटों के अंतर से चुनाव गंवाने वाला महागठबंधन एक बार फिर से नीतीश को टक्कर देता दिख रहा है. अब देखना होगा कि पीएम मोदी की रैली के सहारे एनडीए किस तरह से मगल का किला और बिहार दोनों फतेह कर पाते हैं या फिर नहीं.



























