Politalks.News/UttrakhandPolitics. भाजपा हाईकमान पिछले कुछ समय से अपने ही मुख्यमंत्रियों से कुछ ज्यादा ही ‘मुश्किलों’ में घिरा हुआ है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की वजह से भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ‘पशोपेश‘ में है. बीते दिन मंगलवार को हाईकमान का योगी सरकार में उठा सियासी घमासान भले ही थमने का दावा किया जा रहा हो लेकिन कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के खिलाफ वहां के भाजपा नेता, विधायकों और मंत्रियों में नाराजगी बरकरार है. इन सबके बीच अब उत्तराखंड ने एक बार फिर से भाजपा आलाकमान का ‘सिरदर्द‘ बढ़ा दिया है.
इसी साल मार्च के महीने में पीएम मोदी और अमित शाह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अचानक हटाकर तीरथ सिंह रावत को राज्य की कमान सौंप दी थी. उसके बाद पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने संदेश दिया था कि अब साल 2022 के राज्य में होने वाले विधान सभा चुनाव तीरथ सिंह रावत के नेतृत्व में ही लड़े जाएंगे. लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल तीरथ के लिए यह रही कि वह विधानसभा के किसी भी सदन के ‘सदस्य‘ नहीं थे. तब उम्मीद जताई जा रही थी कि आने वाले उपचुनाव में राज्य की किसी भी सीट से तीरथ सिंह को लड़ा कर जिता दिया जाएगा, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है.
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यहां हम आपको बता दें कि 10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. साढ़े तीन महीने बीत जाने के बाद भी तीरथ और आलाकमान अभी यह नहीं तय कर पाया है कि आखिर तीरथ सिंह रावत उप चुनाव कहां से लड़ेंगे. उल्लेखनीय है कि अप्रैल महीने में राज्य की एक विधानसभा अल्मोड़ा की ‘सल्ट’ में उपचुनाव जरूर हुए थे. लेकिन यहां से तीरथ सिंह रावत नहीं लड़े. इस सीट से भाजपा के प्रत्याशी महेश जीना ने जीत हासिल की थी. ‘आखिरकार सियासी पंडितों की भविष्यवाणी सच साबित होती दिख रही है‘. अभी भी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत लोकसभा सांसद हैं.
संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के ठीक छह महीने के अंदर सदन के दोनों सदनों विधानसभा या विधान परिषद (एमएलसी) में से एक का सदस्य होना अनिवार्य है’. आपको यह भी बता दें कि उत्तराखंड राज्य में विधान परिषद नहीं है. ऐसे में उत्तराखंड में संवैधानिक संकट भी खड़ा हो गया है. वजह है मुख्यमंत्री तीरथ का विधानसभा का सदस्य न होना और विधानसभा चुनाव होने में एक साल से कम समय का होना. ऐसे में अब पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का राज्य में मुख्यमंत्री के नेतृत्व परिवर्तन का दांव उल्टा दिखाई पड़ रहा है.
एक बार फिर उत्तराखंड में खड़ा हुआ संवैधानिक संकट
अब फिर से पूरे उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के बदलने के कयास शुरू हो गए हैं. 2019 में बीजेपी से पौढ़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर सांसद बने तीरथ सिंह रावत ने अब तक अपने सांसद पद से ‘इस्तीफा‘ नहीं दिया है. बता दें कि चुनाव आयोग के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 151ए के तहत ऐसे राज्य में जहां चुनाव होने में एक साल का समय बचा हो और उपचुनाव के लिए रिक्त हुई सीट अगर एक साल से कम समय में रिक्त हुई है तो चुनाव नहीं होगा. लिहाजा उत्तराखंड में अभी मौजूदा वक्त में दो विधानसभा सीट रिक्त हैं. पहली गंगोत्री सीट जो कि अप्रैल में गोपाल सिंह रावत के निधन की वजह से रिक्त हुई और दूसरी सीट है हल्द्वानी जो कि इसी माह में कांग्रेस की कद्दावर नेता इंदिरा हृदयेश के निधन की वजह से खाली हुई हैं.
मौजूदा नियम के मुताबिक दोनों सीट उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में एक साल से कम समय होने के बाद रिक्त हुई है. लिहाजा इन पर चुनाव नहीं हो सकता है. ऐसे में संवैधानिक नियम के मुताबिक मौजूदा सीएम तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देना होगा, क्योंकि उन्होंने 10 मार्च 2021 को सीएम पद की शपथ ली थी और उन्हें 9 सितंबर 2021 तक उत्तराखंड में विधानसभा का सदस्य बनना है, जो कि सम्भव नहीं हो सकता.
आपको बता दें, ‘उत्तराखंड में दिवंगत एनडी तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री अपना पांच साल पूरा कार्यकाल नहीं कर पाया है’. उसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जरूर चार साल पूरे किए थे लेकिन वह भी अपना पूरा कार्यकाल नहीं कर पाए. दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस ने तीरथ सरकार पर हमला बोला है. राज्य की कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि अब प्रदेश में फिर राजनीतिक और संवैधानिक संकट आ चुका है. अब भाजपा या तो विधायक दल से कोई मुख्यमंत्री घोषित करे या फिर राष्ट्रपति शासन लगे. फिलहाल उत्तराखंड को लेकर भाजपा केंद्रीय नेतृत्व फिर दुविधा में फंसा हुआ है. अगर अब आलाकमान तीरथ सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाता है तो उसका राज्य की जनता में सीधा गलत संदेश जाएगा. दूसरी ओर विपक्षी पार्टी कांग्रेस और उत्तराखंड की सियासत में पहली बार जमीन तलाशने उतरी आम आदमी पार्टी ने राज्य में भाजपा सरकार की किरकिरी करने की तैयारी कर ली है.