आम चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी की लहर को देखते हुए सत्ता की मलाई चाटने के लिए जदयू प्रमुख नीतीश कुमार और टीडीपी चीफ चंद्रबाबू बाबू एनडीए में शामिल हुए थे. बहुमत से दूर रही बीजेपी की सरकार बनाने के लिए दोनों का अहम योगदान रहा. अब लगने लगा है कि सरकार बनते ही दोनों को निराशा हाथ लगने लगी है. पहले दोनों पार्टियों की लोकसभा अध्यक्ष पद पाने की चाहत को दबा दिया गया. सभी बड़े मंत्री पद से भी नीतीश और चंद्रबाबू को दूर रखा गया. अब दोनों की एक बड़ी मांग को भी दरकिनार किया जा रहा है. ऐसे में दोनों ही पार्टियों को एक गहरा आघात लगा है.
हाल में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बिहार के मुख्यमंत्री एवं जदयू प्रमुख नीतीश कुमार की एक मांग को बीच सदन में ठुकरा दिया. बिहार को विशेष राज्य को दर्जा दिए जाने की मांग लंबे समय से उठती रही है. यह मांग LJP (रामविलास) और RJD की ओर से भी उठाई जा चुकी है. नीतीश भी प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे की मांग अरसे से कर रहे हैं. एनडीए सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले नीतीश को पूरा भरोसा था कि वे इस बार बिहार को स्पेशल स्टेटस दिलवा ही देंगे.
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इस मांग पर केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता है. उन्होंने लोकसभा में कहा कि विशेष राज्य का दर्जा के लिए नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल की तरफ से कुछ पैमाने तय किए गए हैं, जिनके तहत पहाड़, दुर्गम क्षेत्र, कम जनसंख्या, आदिवासी इलाका, अंतराष्ट्रीय बॉर्डर, प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व के आधार पर ही किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है. ऐसे में नीतीश को एक बड़ा झटका लगा है.
नीतीश जैसी मांग आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी लंबे समय से कर रहे हैं. उन्होंने भी आंध्रा को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की थी. हालांकि नीतीश की मांग दरकिनार होते ही उन्होंने इस विषय पर चुप्पी साध ली. उन्होंने ऑल पार्टी मीटिंग में इस मुद्दे पर चुप होना ही बेहतर समझा. ऐसे में आंध्रा को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए. कांग्रेस ने टीडीपी की चुप्पी पर हैरानी जताते हुए कहा कि बड़ी अजीब बात है कि TDP इस मसले पर चुप है.
ये है बिहार-आंध्र की मांग का आधार
बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य की मांग का आधार बंटवारा है. 2000 में बिहार का बंटवारा कर झारखंड बना था. नीतीश कई मौकों पर कह चुके हैं कि झारखंड के अलग होने से बिहार की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है. बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है और प्रदेश की बड़ी आबादी तक हेल्थ, ऐजूकेशन, और बुनियादी ढांचे की पहुंच नहीं है. वहीं 2014 में आंध्र से अलग होकर तेलंगाना बना दिया गया था. आंध्र प्रदेश को लेकर कहा जाता है कि बंटवारा करते समय उसके साथ नाइंसाफी की गई. तेलंगाना को सबकुछ दे दिया गया, जबकि आंध्र प्रदेश को कुछ नहीं मिला.
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नीतीश की मांग खारिज होते देख चंद्रबाबू की चुप्पी इसलिए भी जरूरी थी क्योंकि हाल ही में आंध्र प्रदेश के उद्योग मंत्री टीजी भरत ने बताया था कि बीपीसीएल राज्य में एक लाख करोड़ रुपये निवेश करने के लिए तैयार है, जिसमें संभावित रूप से एक तेल रिफाइनरी की स्थापना भी शामिल है. कंपनी शुरुआत फेज में 50 हजार करोड़ रुपए से 75 हजार करोड़ रुपए के बीच निवेश करेगी. इसी बीच खबर भी आयी थी कि केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश प्रदेश में 60,000 करोड़ रुपये के निवेश से एक ऑयल रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल हब बनाने के लिए सहमति दे दी है. रिफाइनरी खोलने के लिए प्रदेश के तीन स्थानों श्रीकाकुलम, मछलीपट्टनम और रामायापत्तनम के नामों पर विचार किया गया है. ऐसे में टीडीपी का ऑल पार्टी मीटिंग में आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा की मांग को नहीं उठाना समझ में आता है.
देश के पिछड़े और गरीब राज्यों में से एक है बिहार
वहीं बिहार की बात करें तो वह देश के पिछड़े और गरीब राज्यों में से एक है. NFHS-5 के सर्वे के अनुसार बिहार में गरीबी का स्तर सबसे ज्यादा है. यहां की 33% से ज्यादा आबादी गरीब है. आंध्र प्रदेश की आर्थिक स्थिति बिहार की तुलना में काफी मजबूत है. राज्य में कई बड़ी कंपनी काम कर रही हैं. आंध्र प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 2.70 लाख रुपये से ज्यादा है, जो 2022-23 में 2.45 लाख रुपये थी. ऐसे में आंध्र प्रदेश को तो कम से कम विशेष राज्य का दर्जा मिलने से रहा. हालांकि स्पेशल पैकेज जरूर मिल सकता है. यही स्थिति बिहार के लिए भी हो सकती है. हालांकि अपनी मांगों को बेदर्दी से ठुकराने के चलते सीएम नीतीश कुमार पीएम मोदी के लिए ‘दोस्त दोस्त न रहा..’ गा रहे हैं तो चंद्रबाबू नायडू ‘दुश्मन न करें..’ गाकर अपने मन को बहला रहे हैं.