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लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद राज्यसभा सांसद स्वप्न दास गुप्ता ने ट्वीट किया, ‘पश्चिम बंगाल में 40 फीसदी वोटों के साथ बीजेपी बंगाली हिंदुओं की पसंदीदा पार्टी बन गई है. टीएमएसी दूसरे समुदायों की पसंदीदा पार्टी है. इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा.’ तो क्या मोदी की अगुवाई में बीजेपी की यह अभूतपूर्व जीत हिंदुत्व की जीत है? दिल्ली यूनिवर्सिटी के राजनीतिशास्त्र विभाग के प्रोफेसर सुनील कुमार चौधरी कहते हैं, ‘इतने बड़े नतीजों की बुनियाद किसी एक वजह पर नहीं बनती है. लेकिन, जनता का संदेश साफ है या तो आप परफॉर्म करिए या हाशिए पर जाइए! आपकी जो भी भूमिका जनता ने चुनी है, उसे निभाना पड़ेगा. विपक्ष ने विपक्ष की भूमिका नहीं निभाई.’

नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने पहली बार 300 सीटों का आंकड़ा पार किया है. 1984 के बाद यह पहला मौका है जब किसी पार्टी को लोकसभा में 300 से अधिक सीटें मिली हैं. जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी तीसरे और पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री है जिन्होंने लगातार चुनावों में अपनी सत्ता बचा रखी है. यह नतीजे तब हैं जब इस बार मुखर धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति की धार कुंद करने के लिए विपक्ष ने पूरा जोर लगा दिया था. यूपी में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की लिटमस टेस्ट मानी जाने वाली सहारनपुर सीट से दो मुस्लिम उम्मीदवारों के लड़ने और वोटों का बंटवारा होने के बाद भी बसपा का जीतना इसकी एक नजीर है.

विपक्ष न सेक्युलर बन पाया और न ही ‘कम्यूनल’
नरेंद्र मोदी ने जीत के बाद पार्टी कार्यालय पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए दो अहम बातें कहीं. पहली, ‘भारत की जनता ने एक नया नैरेटिव सामने रख दिया है. वो नैरेटिव ये है कि देश में अब सिर्फ दो जाति बचेगी. पहली — गरीब और दूसरी जाति है- देश को गरीबी से मुक्त करने के लिए अपना योगदान देने वालों की.’ मोदी ने यह भी कहा, ‘एक टैग था, जिसका नाम था सेक्युलरिज्म. जिसका चोला ओढ़ते ही सारे पाप दूर हो जाते थे. आपने देखा होगा कि 2014 से 2019 आते आते उस पूरी जमात ने बोलना ही बंद कर दिया. इस चुनाव में एक भी राजनीतिक दल सेक्युलरिज़्म का नकाब पहनकर देश को गुमराह करने की हिम्मत नहीं कर पाया.’

मोदी के यह बयान बीजेपी की रणनीति का आईना हैं. जातीय चुनौती को गरीबी बनाम कर मोदी ने यूपी-बिहार जैसे राज्यों में जाति की दीवारें ढहा दीं. वहीं, हिंदुत्व की स्थाई राजनीति करने वाले बीजेपी की इस काट को तोड़ने के लिए विपक्ष भी ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ पर उतर आया. इसके जरिए मोदी ने विपक्ष को उस पिच पर लाकर खड़ा कर दिया जिसके वे मॉस्टर ब्लॉस्टर थे और विपक्ष नौसखिया. बीजेपी को हिंदुत्व पर बोलने में कभी परहेज नहीं रहा. वहीं सकुचाया विपक्ष न हिंदू बन पाया और न ही सेकुलरिज्म की गठरी संभाल पाया.

विकास के चेहरे पर हिंदुत्व का ‘तिलक’?
2014 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद हुए ध्रुवीकरण में बीजेपी ने विपक्ष को ध्वस्त कर दिया था. लेकिन, मोदी ने तब भी अपना चेहरा विकास का रखा. 1990 के बाद का यह पहला लोकसभा चुनाव है जिसमें बीजेपी मैदान में थी, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर मुद्दा नहीं था. तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के पहले अयोध्या में धर्मसभा व दूसरी गतिविधियों से इसका ट्रायल किया जा चुका था और बीजेपी के लिए नतीजे बहुत अनुकूल नहीं थे. मोदी ने अयोध्या जिले में जनसभा करने के बाद भी इस मुद्दे को छुआ तक नहीं. क्योंकि, बालाकोट की एयर स्ट्राइक से उपजी राष्ट्रवाद की लहर मिडिल क्लॉस से लेकर सुदुर गांव तक वोटों की जमीन को उर्वरा बनाने के लिए पर्याप्त थी. पूरे उत्तर भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा व ‘पाकिस्तान में घुसकर मारा’ की धारणा से बीजेपी ने विपक्ष के कोर वोटर्स की भी ‘लॉइन ऑफ कंट्रोल’ तोड़ डाली. राष्ट्रवाद की यह जमीन करीने से हिंदुत्व की आंच से भी पकाई गई. विकास के चेहरे पर हिंदुत्व का तिलक ही एजेंडा साधने के लिए पर्याप्त था. वाराणसी में नामांकन के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने खास तौर पर वाराणसी, अयोध्या और अक्षरधाम में हुए आंतकी हमलों की याद दिलाई. यह भी बताया कि उनके कार्यकाल में किसी धार्मिक स्थल पर हमला नहीं हुआ. पुणे यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के विजिटंग प्रोफेसर राजेश मिश्र कहते हैं, ‘मॉचो नैशनलिज्म’, मोदी का करिज्मा व हिंदुत्व तीनों का ही पैकेज बीजेपी ने तैयार कर जनता के सामने रख दिया. उनकी ब्रैंडिंग के आगे विपक्ष कहीं टिक नहीं सका.

जैसी जमीन, वैसी खाद
12 से अधिक राज्यों में बीजेपी का वोट शेयर 50 फीसदी है. तो क्या यह आंकड़े धर्म व जाति में सेंध लगाए बिना संभव थे? प्रो.सुनील कुमार चौधरी कहते हैं कि इस चुनाव में जाति, संप्रदाय, भाषाई, सामुदायिक व क्षेत्रीय समीकरण ध्वस्त हो गए. कर्नाटक से तेलगांना और नार्थ ईस्ट तक हिंदी भाषी नेताओं की अपार सफलता इसका इशारा है. विपक्ष के ‘पापुलिज्म’ की तरकीब काम नहीं आई. क्योंकि, मोदी पहले से ही उन पर काम करके भरोसा पैदा कर चुके थे और विपक्ष ‘मोदी हटाओ’ के नारे की वजह वोटर्स को समझा नहीं सका.

जानकारों का कहना है कि हमेशा इलेक्शन मोड में रहने वाली बीजेपी ने जमीन के हिसाब से रणनीति की ‘खाद’ डाली. 115 पिछड़े जिले चिन्हित कर योजनाओं के जरिए वहां मोदी पहुंच चुके थे. गरीब केंद्रित योजनाओं से जातीय दीवार ढहाने की भूमिका तैयार की गई. आसाम से पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अवैध प्रवासियों व अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के मुद्दे पर करारा हमला बोला गया. मोदी, शाह व यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसकी कमान संभाली. ‘जय श्री राम’ का नारा बंगाल में मुद्दा बना. नतीजा यह हुआ कि यहां भी राष्ट्रवाद व हिंदुत्व की जुगलबंदी ने ममता का गढ़ तोड़ दिया.

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