Politalks.News/Nagpur. ‘हमें हर जिम्मेदारी सरकार पर ही डालने की बजाय खुद भी समाज के तौर पर जागरूक होना होगा, समाज में सभी के लिए मंदिर, पानी और श्मशान एक होने चाहिए, कौन घोड़ी चढ़ सकता है और कौन नहीं, इस तरह की बातें अब समाज से विदा हो जानी चाहिए, ऐसे प्रयास संघ के स्वयंसेवक करेंगे तो समाज में विषमता को दूर किया जा सकेगा,’ ये कहना है कि RSS प्रमुख मोहन भागवत का. आज पूरा देश बड़ी ही धूमधाम से विजयादशमी मना रहा है. ऐसे में नागपुर में बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विजयादशमी पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया. इस आयोजन में शस्त्र पूजा के दौरान मुख्य अतिथि संतोष यादव मौजूद रही. इस दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या वृद्धि के साथ साथ अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की. साथ ही संघ प्रमुख ने अपने भाषण में समाज में एकता की अपील की है.
बुधवार को नागपुर में विजयदशमी के मौके पर संघ कार्यालय में शस्त्र पूजा का आयोजन किया गया. शस्त्र पूजा के इस मौके पर पहली बार किसी महिला मुख्य अतिथि को बुलाया गया. दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला संतोष यादव को कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया. संघ के दशहरा समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सहित कई गणमान्य मौजूद रहे. मोहन भागवत ने अपनी स्पीच में एक बार फिर जनसंख्या नियंत्रण, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा नीति जैसे मुद्दों का जिक्र किया. मोहन भागवत ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए महिला सशक्तिकरण का जिक्र करते हुए कहा कि, ‘देश जिस तरह आगे बढ़ रहा है उस हिसाब से यह जरूरी है कि महिलाओं को सभी क्षेत्रों में बराबरी का अधिकार और काम करने की आजादी दी जाए.’
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मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि, ‘हम इस बदलाव को अपने परिवार से ही शुरू कर रहे हैं. हम अपने संगठन के जरिए समाज में ले जाएंगे. जब तक महिलाओं की बराबरी की भागीदारी निश्चित नहीं की जाएगी, तब तक देश की जिस तरक्की को हासिल करने की हम कोशिशें कर रहे हैं, उसे हासिल नहीं किया जा सकता. कुछ हासिल करने वाली महिलाओं की उपस्थिति सुशिक्षित समाज का हिस्सा रहा है. समाज महिला और पुरुष दोनों से बनता है. हम इस पर बहस नहीं कर रहे कि बेहतर कौन है, क्योंकि हम जानते हैं कि इन दोनों में से एक भी मौजूद न हो तो कोई समाज अस्तित्व में नहीं आ सकता है. कुछ भी सृजित नहीं किया जा सकता है. अगर किसी समाज को व्यवस्थित रहना है तो महिला और उसकी मातृ शक्ति को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है.’
विजयादशमी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि, ‘हमें हर जिम्मेदारी सरकार पर ही डालने की बजाय खुद भी समाज के तौर पर जागरूक होना होगा. हम भाषा, संस्कृति और संस्कार को बचाने की बात करते हैं, लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि उसके लिए अपनी ओर से क्या करते हैं. क्या हमने अपने घर की नेम प्लेट अपनी मातृभाषा में लिखी है? क्या हम निमंत्रण पत्र मातृभाषा में छपवाते हैं? हम बात करते हैं कि बच्चों को संस्कार मिलें, लेकिन हम उन्हें पढ़ने इस लिहाज से भेजते हैं कि कुछ भी करो और ज्यादा कमाने की डिग्री लो. जब हम यह सोचकर बच्चों को भेजें कि उन्हें अच्छा नागरिक बनाना है तो वह बेहतर व्यक्ति और संस्कार युक्त बनेंगे. ऐसा नहीं करेंगे तो बच्चे पैसा कमाने की मशीन बनेंगे.’
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रोजगार का जिक्र करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि, ‘सिर्फ सरकारी नौकरी करना ही रोजगार नहीं है. आर्थिक उन्नति के लिए रोजगार की बात आती है और स्किल ट्रेनिंग हो रही है. हम सब लोग चाहते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था रोजगार उन्मुख हो और पर्यावरण फ्रेंडली हो. लेकिन इसके लिए हमें उपभोग त्यागना होगा. किसी भी समाज में 20 से 30 फीसदी नौकरियां ही होती हैं. अन्य लोगों को अपनी आजीविका के लिए कोई और उद्यम करना होता है. यदि हम लोग खुद रोजगार के सृजन के प्रयास नहीं करेंगे तो अकेले सरकार कितनी नौकरियां दे सकती है.’ मोहन भागवत ने आगे कहा कि, ‘समाज में सभी के लिए मंदिर, पानी और श्मशान एक होने चाहिए. कौन घोड़ी चढ़ सकता है और कौन नहीं, इस तरह की बातें अब समाज से विदा हो जानी चाहिए. ऐसे प्रयास संघ के स्वयंसेवक करेंगे तो समाज में विषमता को दूर किया जा सकेगा. जाति के आधार पर विभेद करना अधर्म है.’
जनसंख्या वृद्धि पर चिंता जताते हुए मोहन भागवत ने कहा कि, ‘आज देश को एक व्यापक जनसंख्या नियंत्रण नीति की जरूरत है. जो सभी पर बराबरी से लागू होती हो. कुछ साल पहले फर्टिलिटी रेट 2.1 था. दुनिया की आशंकाओं से उलट हमने बेहतर किया और इसे 2 तक लेकर आए लेकिन और नीचे आना खतरनाक हो सकता है. जनसंख्या में असमानता भौगोलिक सीमाओं में बदलाव लाती है. जनसंख्या नियंत्रण और धर्म आधारित जनसंख्या संतुलन ऐसे अहम मुद्दे हैं, जिन्हें लंबे समय तक नजंरदाज नहीं किया जा सकता है. एक संपूर्ण जनसंख्या पॉलिसी लाई जानी चाहिए और ये सभी पर बराबरी से लागू हो. धर्म आधारित असंतुलन और जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन देश को तोड़ देते हैं. ईस्ट टिमोर, कोसोवो और साउथ सूडान जैसे नए देश धार्मिक आधार पर हुए असंतुलन का उदाहरण हैं.’