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देश में सत्ता की चौसर पर लोकसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है. मुहरे भी खड़े हो गए हैं बस इंतजार है तो पासे फेंकने का. इस समय पूरे देश में केवल एक ही चर्चा है कि आखिर देश किसे चुनेगा, नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी लेकिन राजनीति की पारखी नजरें रखने वालों का यह कहना भी गलत नहीं है कि देश में दो नहीं बल्कि 5 ऐसे गठबंधन दल चुनावी मैदान में हैं जिनके नेता खिचड़ी सरकार बनने पर प्रधानमंत्री बनने की मनोकांक्षा रखते हैं.

इस लिस्ट में पहला गठबंधन दल है बीजेपी का एनडीए जिसके नेता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं. दूसरा गठबंधन दल यूपीए है जिसके मुखिया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हैं. तीसरा गठबंधन मायावती-अखिलेश यादव का सपा-बसपा महागठबंधन है जिसे अब महापरिवर्तन के नाम से बुलाने लगे हैं. चौथा गठबंधन पं.बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल नेता ममता बनर्जी ने बनाया है जिसे वे फेडरल फ्रंट के नाम से बुलाना पसंद करती हैं. पांचवां गठबंधन तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर का है. इन सभी के मुखियाओं की केवल एक ही इच्छा है, प्रधानमंत्री बन सत्ता की कुर्सी हथियाना.

शुरूआत करें एनडीए दल से तो प्रधानमंत्री मोदी इस गठबंधन के मुखिया हैं. पिछले साल देश में चली मोदी लहर में अधिकांश राज्य तो तिनके की भांति उड़ गए. राजस्थान, यूपी इसके उदाहरण हैं. हालांकि दक्षिण भारत में मोदी लहर इतना प्रभाव न दिखा सकी लेकिन सरकार बनने के बाद यहां भी बीजेपी अपने पैर जमाने में कामयाब हो पाई है. इस बार भी मोदी सरकार की लहर का असर कायम है. देश की आबोहवा को समझ अब बीजेपी नेताओं ने पिछले दो महीने में पार्टी ने अपनी रणनीति पूरी तरह बदल दी है.

मिशन 400 पर काम कर रहे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पुराने सहयोगियों को किसी भी कीमत पर रोकने और नए सहयोगियों को ढूंढने का काम करीब-करीब पूरा कर लिया है. ऐसा सीधे प्रधानमंत्री के निर्देश पर हुआ है. इसी का नतीजा है कि भाजपा ने अपने सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना की करीब करीब सभी मांगें मांन लीं और नई एवं छोटी सहयोगी पार्टी अपना दल को भी दो सीटें दे दीं.’

बात करें कांग्रेस की यूपीए दल की तो यहां पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी अपने आपको प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित कर चुके हैं. पिछली बार मोदी लहर में कांग्रेस की नैया ढूबते-ढूबते बची. यहां तक की केवल 3 राज्यों तक सिमट कर रह गई. हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में 3 बड़े राज्य जीतने के बाद फिर से इस पार्टी ने हुंकार भरी है. नए और युवा नेताओं के दम पर यूपीए देश की सत्ता फिर से हासिल करने का सपना लेकर चुनावी मैदान में है. यही वजह रही कि बिहार में तेजस्वी यादव से कांग्रेस ने जमकर मोलभाव किया और एक-एक सीट के लिए पूरी ताकत लगाई.

देश का तीसरा बड़ा दल है सपा-बसपा दल जिसकी मजबूत जड़े अब उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रह गई हैं. राजस्थान, मध्यप्रदेश राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसकी छवि सभी ने देखी है. इसी पार्टी के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ने दो राज्यों में अपनी सरकार बनाई है. हालांकि बसपा पहले सभी राज्यों में कांग्रेस से हाथ मिलाने को तैयार थी लेकिन मायावती खुद प्रधानमंत्री भी बनने का इरादा रखती हैं. वह खुद को अब एक प्रदेश नेता नहीं बल्कि राष्ट्रीय नेता मानकर चल रही हैं. कांग्रेस राहुल को प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित कर चुकी है.

ऐसे में बसपा सुप्रीमो को कांग्रेस के साये में यह सपना पूरा होते नहीं दिख रहा. ऐसे में उन्होंने भतीजे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ पूरे देश में गठबंधन बनाया है जिसे वे अब महापरिवर्तन के नाम से बुलाने लगे हैं. दोनों ने यूपी में कुल 80 में से 70 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है. देश में दलित वोट बैंक के चलते अब खिचड़ी सरकार भी बनती है तो मायावती सत्ता में एक अहम रोल अदा करेंगी.

चौथा गठबंधन ममता बनर्जी ने बनाया है जिसे वे फेडरल फ्रंट के नाम से बुलाना पसंद करती हैं. पं.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ‘दीदी’ ने पिछले कुछ समय में अपनी छवि एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर कायम की है. यहां तक की कई मौकों पर केन्द्र सरकार भी उनके फैसलों के खिलाफ जाने का साहस नहीं जुटा पाई. इससे ममता की छवि एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभर कर सामने आई है. ममता की पार्टी को भी लगता है कि मोदी के बाद अगर किसी नेता का सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री बनने का चांस है तो वह हैं ममता बनर्जी. तृणमूल कांग्रेस पार्टी (TMC) ने पं. बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 40 सीटें जीतने का टारगेट उन्होंने रखा है. बाकी देश से दस सीटें जीतने का पुखता प्लान भी ममता ने बनाया है.

तृणमूल मानती है कि अगर उसकी 50 सीटें अकेले दम पर आ गई तो खिचड़ी सरकार का नेतृत्व ममता कर सकती हैं. यही वजह रही ​जब राहुल गांधी ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का न्योता ममता बनर्जी को दिया तो उन्होंने अपने अंदाज़ में कहा कि उन्हें अपने गठबंधन का नाम बदलना होगा. यह बात सच में एक बेहद चुभने वाली बात थी क्योंकि फेडरल फ्रंट में जाने का मतलब था राहुल गांधी खुद ही ममता बनर्जी को नेता मान लें जो नामुमकिन है. ममता को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी सहयोग प्राप्त है.

पांचवां गठबंधन तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव (केसीआर) का है जिसका अभी सिर्फ नेता तय हुआ है. नाम और पार्टनर नहीं मिल रहे हैं. यहां केसीआर और उनकी पार्टी टीआरएस का एकछत्र राज लंबे समय से कायम है. हाल ही में विधानसभा चुनावों में केसीआर की पार्टी ने 119 में से 88 सीटों पर कब्जा किया है. कांग्रेस को 21, बीजेपी को एक और अन्य को 9 सीटों पर जीत हासिल हुई है. क्षेत्र में अपनी एक खास छवि रखने वाले राव के साथ बीजेपी गठबंधन कर सकती है. तेलंगाना में 17 लोकसभा सीटें हैं. अगर यहां सभी सीटों पर टीआरएस जीत दर्ज करती है तो केन्द्र की सत्ता पर इस राज्य का असर पड़ना निश्चित है.

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