जैसे होता है शराब का नशा, उसी प्रकार सत्ता के नशे में डूब गए हैं ‘आप’- अन्ना के निशाने पर आए केजरीवाल

जब आपने पुस्तक लिखी थी तब थी आप से बड़ी उम्मीद लेकिन राजनीति में जा कर मुख्यमंत्री बनने के बाद आप आदर्श विचारधारा को भूल गए हैं, इसलिए आप लेकर आए हैं नई शराब नीति- अन्ना हजारे

गुरु की चेले को खरी खरी
गुरु की चेले को खरी खरी

Politalks.News/Delhi. दिल्ली सरकार की आबकारी नीति को लेकर घमासान अपने चरम पर है. भारतीय जनता पार्टी ने जहां केजरीवाल सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, तो वहीं कभी UPA सरकार के खिलाफ 5 अप्रैल 2011 को एक सशक्त लोकपाल विधेयक के निर्माण की माँग के लिए अरविंद केजरीवाल के साथ सड़कों पर उतरे अन्ना हजारे ने भी अब दिल्ली सरकार की आबकारी नीति पर सवाल उठाए हैं. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सियासी गुरु माने जाने वाले अन्ना हजारे ने उन्हें पत्र लिख नई शराब नीति पर सवाल उठाए हैं. अन्ना हजारे ने पत्र लिखते हुए शराब से जुड़ी समस्याओं और उसके निवारण के सुझाव दिए हैं. अन्ना हजारे ने अपने पत्र में लिखा कि, ‘जिस प्रकार शराब का नशा होता है, उस प्रकार सत्ता का भी नशा होता है. आप भी ऐसी सत्ता की नशा में डूब गये हो, ऐसा लग रहा है.’ यही नहीं अन्ना हजारे ने हजारे ने 2011 के आंदोलन का जिक्र करते हुए भी केजरीवाल पर निशाना साधा.

दिल्ली में आबकारी नीति में कथित घोटाले के आरोपों का सामना कर रही आम आदमी पार्टी के नेता और सीएम अरविंद केजरीवाल को अन्ना हजारे ने चिट्ठी लिखी है. अन्ना हजारे ने इस पत्र में केजरीवाल को जमकर खरी-खरी सुनाई. अन्ना हजारे ने अपने इस पत्र के जरिये कहा कि, ‘आप मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार में आपको खत लिख रहा हूँ. पिछले कई दिनों से दिल्ली राज्य सरकार की शराब नीति के बारें में जो खबरे आ रही हैं, वह पढ़कर बड़ा दुख होता हैं. राजनीति में जाने से पहले आपने ‘स्वराज’ नाम से एक किताब लिखी थी. इस किताब की प्रस्तावना आपने मुझसे लिखवाई थी. इस ‘स्वराज’ नाम की किताब में आपने ग्रामसभा, शराब नीति के बारे में बड़ी बड़ी बाते लिखी थी. किताब में आपने जो लिखा हैं, वह मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं.

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अन्ना हजारे ने पत्र में लिखा कि, ‘स्वराज नाम की किताब में आपने समस्याओं को लेकर लिखा था कि, वर्तमान समय में शराब की दुकानों के लिए राजनेताओं की सिफारिश पर अधिकारियों द्वारा लाइसेंस दे दिया जाता है. वे प्रायः रिश्वत ले कर लाइसेंस देते हैं. शराब की दुकानों की कारण भारी समस्याएं पैदा होती हैं. लोगों का पारिवारिक जीवन तबाह हो जाता हैं. आपने अपनी पुस्तक में सुझाव दिया था कि, ‘शराब की दुकान खोलने का कोई लाइसेंस तभी दिया जाना चाहिए जब ग्राम सभा इसकी मंजूरी दे दे और ग्राम सभा की सम्बन्धित बैठक में, वहाँ उपस्थित 90 प्रतिशत महिलाएं इसके पक्ष में मतदान करें. आपने ‘स्वराज’ नाम की इस किताब में कितनी आदर्श बातें लिखी थी.’

केजरीवाल पर निशाना साधते हुए अन्ना हजारे ने कहा कि, ‘जब आपने पुस्तक लिखी थी तब आप से बड़ी उम्मीद थी. लेकिन राजनीति में जा कर मुख्यमंत्री बनने के बाद आप आदर्श विचारधारा को भूल गए हैं ऐसा लगता है. इसलिए दिल्ली राज्य में आपकी सरकार ने नई शराब नीति बनाई. ऐसा लगता है की, जिससे शराब की बिक्री और शराब पिने को बढ़ावा मिल सकता है. गली गली में शराब की दुकानें खुलवाई जा सकती हैं. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है. यह बात जनता के हित में नहीं है. फिर भी आपने ऐसी शराब नीति लाने का निर्णय लिया है. इससे ऐसा लगता है कि, जिस प्रकार शराब की नशा होती है, उस प्रकार सत्ता की भी नशा होती हैं. आप भी ऐसी सत्ता की नशा में डुब गये हो, ऐसा लग रहा हैं.’

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अन्ना हजारे ने आपने पत्र में लिखा कि, ’10 साल पहले 18 सितंबर 2012 को दिल्ली में टिम अन्ना के सभी सदस्यों की मिटिंग हुई थी. उस वक्त आप ने राजनीतिक रास्ता अपनाने की बात रखी थी. लेकिन आप भूल गए की, राजनीतिक पार्टी बनाना यह हमारे आंदोलन का उद्देश्य नहीं था. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया. उसके बाद आप, मनिष सिसोदिया और आपके अन्य साथियों ने मिलकर पार्टी बनाई और राजनीति में कदम रखा. दिल्ली सरकार की नई शराब नीति को देखकर अब पता चल रहा हैं कि, एक ऐतिहासिक आंदोलन का नुकसान कर के जो पार्टी बन गयी, वह भी बाकी पार्टीयों के रास्ते पर ही चलने लगी. यह बहुत ही दुख की बात हैं.’

अन्ना हजारे ने आगे लिखा कि, ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए ऐतिहासिक लोकपाल और लोकायुक्त आंदोलन हुआ. लाखों की संख्या में लोग रास्ते पर उतर आये. लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद आप लोकपाल और लोकायुक्त कानून को भुल गए. इतनाही नहीं, दिल्ली विधानसभा में आपने एक सशक्त लोकायुक्त कानून बनाने की कोशिश तक नहीं की और अब तो आप की सरकारने लोगों का जीवन बरबाद करनेवाली, महिलाओं को प्रभावित करनेवाली शराब नीति बनाई हैं. इससे स्पष्ट होता है की, आपकी कथनी और करनी में फर्क हैं. एक बड़े आंदोलन से पैदा हुई राजनीतिक पार्टी को यह बात शोभा नहीं देती.’

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