दिल्ली में हुई जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक में जब से तय हुआ है कि ललन सिंह की जगह नीतीश कुमार पार्टी की कमान संभालेंगे, बिहारी बाबू के नाम से मशहूर बिहार सीएम पूरे एक्शन में आ गए हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि नीतीश पहली बार पार्टी के अध्यक्ष बने हैं. इससे पहले 2016 से 2020 तक नीतीश राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर रह चुके हैं. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही नीतीश कुमार अलग-अलग राज्यों के पार्टी नेताओं के साथ बैठक कर हैं. अब तक वे छत्तीसगढ़, मणिपुर और हरियाणा के नेताओं ने मुलाकात कर चुके हैं. उनकी सक्रियता के राजनीतिक हलकों में कई मायने निकाले जा रहे हैं. यह सवाल भी सभी के मन में कोंध रहा है कि नीतीश कुमार क्या फिर से बीजेपी के साथ जाने की सोच रहे हैं.
इस बीच दिल्ली में लगे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के होर्डिंग भी सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं.इन होर्डिंग्स में नीतीश की फोटो के साथ लिखा है ‘प्रदेश ने पहचाना, अब देश भी पहचानेगा.’ कहीं न कहीं ये नीतीश के ये होर्डिंग्स संकेत देते रहे हैं कि नीतीश विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दौड़ में हैं. वहीं नीतीश खुद तो अपने आपको इस दौड़ से अलग मान रहे हैं लेकिन पीएम बनने की उनकी मंशा एक दशक पुरानी है. अपना यही सपना पूरा न होने देख उन्होंने बीजेपी से किनारा किया था. अब भी कुछ ऐसी ही दास्तां को दोहराया जा रहा है. विपक्षी गठबंधन से जब से ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे को ‘पीएम फेस’ घोषित करने की सलाह दी है, तभी से हमारे बिहारी बाबू कुछ खिंचे खिंचे से हैं. ऐसे में लगने लगा है कि आगामी बिहार विधानसभा और लोकसभा चुनाव में नीतीश भारतीय जनता पार्टी की नांव में सवार हो सकते हैं.
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बिहार में जदयू 2005 से लगातार सरकार के रूप में प्रतिनिधित्व कर रही है. वर्तमान में बिहार में जदयू के 45 विधायक हैं. कम विधायकों के बावजूद राजद ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया है. वजह है कि नीतीश बीजेपी से रिश्ता तोड़ फिर से अपने पुराने सहयोगी राजद और कांग्रेस के साथ आए हैं और यह त्रिगुट बीजेपी को बिहार में शिख्स्त देने में हमेशा कामयाब रहा है. नीतीश को अच्छी तरह से पता है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में अगर यह त्रिगुट फिर से कामयाब हो जाता है तो भी नीतीश को सीएम बनाने पर सहमति नहीं बनने वाली है. ऐसे में नीतीश पीएम फेस लेकर नेशनल राजनीति में सक्रिय होना चाह रहे हैं लेकिन गठबंधन में ऐसा न होता देख पार्टी नीतीश का चेहरा लेकर आगामी लोकसभा चुनाव में जाना चाहती है.
इसकी भी एक प्रमुख वजह है. जानकार कहते हैं कि विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए इसी शर्त पर सहमति बन सकती है कि जिसके पास ज्यादा पार्टियों का समर्थन होगा, उसे ही चेहरा बना दिया जाएगा. कांग्रेस अकेले मोदी जैसे बड़े भंवर का सामने नहीं कर पा रही है. ऐसे में उसे बड़े राजनीतिक दलों का साथ चाहिए. जदयू, राजद और सपा उत्तर भारत के तीन बड़े विपक्षी दल हैं. बगैर इनकी सफलता के विपक्ष की सफलता मुश्किल होगी. वहीं देश में इस वक्त पिछड़े वर्ग की राजनीति को काफी हवा मिल रही है. ऐसे में नीतीश कुमार एक उपयुक्त चेहरा हो सकते हैं. यही वजह थी कि पिछले कुछ महीनों से नीतीश ने गठबंधन को अपना जी जान दिया था. अपनी पकड़ कमजोर पड़ते देख अभी भी नीतीश ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है और पार्टी को लोकसभा से पहले मजबूत करने में जुटे हैं.
बिहार के अलावा जदयू झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर ही ऐसे राज्य हैं जहां जदयू को कुछ सफलता मिलती रही है. झारखंड में 2005 में जदयू को छह सीटें मिली थीं. जो 2009 में घटकर दो रह गईं. 2014 और फिर 2019 में जदयू ने यहां 11 और 45 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक पर भी जीत नहीं मिली. अरुणाचल प्रदेश में 2019 विधानसभा चुनाव के दौरान 14 सीटों पर जदयू के प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था. इनमें सात पर पार्टी को जीत मिली. हालांकि, अब ये सभी भाजपा में शामिल हो चुके हैं. इसी तरह मणिपुर में इस साल हुए चुनाव में 38 सीटों पर जदयू के प्रत्याशी मैदान में थे. इनमें से छह पर नीतीश कुमार की पार्टी को जीत मिली. बाद में इनमें से पांच विधायक बीजेपी में शामिल हो गए.
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नीतीश कुमार सात बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं. पहली बार मार्च 2000 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद संभाला था. उनके प्रशासन की वजह से उन्हें ‘सुशासन बाबू’ का नाम भी मिला. हालांकि पिछले कुछ सालों में लगातार जदयू की स्थिति खराब हुई है. 2010 में जिस जदयू ने बिहार में 144 में से 115 सीटों पर जीत हासिल की थी, वो 2015 में 71 और फिर 2020 में 43 पर आकर सिमट गई है. बार-बार गठबंधन बदलने के चलते भी नीतीश कुमार की छवि को भी नुकसान हुआ है. ऐसे में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद नीतीश को पार्टी को मजबूत बनाने के साथ साथ अपनी खुद की छवि को सुधारने जैसी चुनौतियां भी होंगी.
जदयू की मौजूदा ताकत आंके तो वर्तमान में लोकसभा में पार्टी सदस्यों की संख्या 16 है. 5 सदस्य राज्यसभा में जदयू का प्रतिनिधित्व करते हैं. आगामी लोकसभा चुनाव में जदयू को अपनी सदस्य संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है. इसके बाद भी उनकी इच्छा को सर्वोपरि नहीं किया जाता तो निश्चित तौर पर नीतीश भारतीय जनता पार्टी की गोदी में बैठे हुए दिखाई देंगे. तब तक बिहार के सुशासन बाबू साइलेंट मोड पर पार्टी को मजबूती देने की अपनी गतिविधियों पर काम करते हुए दिखाई देंगे.