पंचायत चुनाव में वंशवाद से सींची जाएगी सियासत की ‘बेल’, माननीयों ने किया अपनों को ‘ऑब्लाइज’

पंचायत चुनाव में 'वंशवाद' की बढ़ती 'बेल', अपनों की 'विरासत' संभालने उतरे 'वंशज', 6 जिलों में एक मंत्री सहित 5 विधायकों के परिजन चुनावी समर में, टिकट नहीं दिलवा पाने पर कुछ ने निर्दलीय भी भरा पर्चा, लोकतंत्र में वंशवाद कब तक रहेगा हावी और इससे कब मिलेगी निजात?

पंचायत चुनाव में वंशवाद से सींची जाएगी सियासत की 'बेल'
पंचायत चुनाव में वंशवाद से सींची जाएगी सियासत की 'बेल'

Politalks.News/Rajasthan. जब-जब हमारे देश और प्रदेश में चुनाव होते हैं, वंशवाद रूपी बोतल में बंद जिन्न बाहर निकल ही आता है. इसी कड़ी में अब राजस्थान में जारी पंचायती राज चुनाव में वंशवाद का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है. जयपुर सहित प्रदेश के 6 जिलों में होने जा रहे पंचायत चुनाव में वंशवाद की ‘बेल‘ को बढ़ाने के लिए विधायकों ने अपने परिवार के सदस्यों में से किसी ना किसी को चुनावी मैदान में उतार दिया है. प्रदेश में हो रहे पंचायती राज चुनावों में परिवारवाद का मुद्दा इस बार भी हावी हो रहा है. विधायकों के बेटे-बेटी से लेकर बहुओं तक को टिकट बांटे गए हैं.

प्रदेश के 6 जिलों में हो रहे इन चुनावों में कांग्रेस के 39 विधायक हैं इनमें से एक मंत्री सहित 5 विधायकों के परिवार वालों को सत्ताधारी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा गया है. कुछ विधायकों ने टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय या RLP के टिकट पर परिजनों को मैदान में उतारा है. बात करें पिछले चुनावों की तो सोलह नेताओं के परिजन चुनावी रण में उतरे थे. इससे पहले भी दिसंबर-जनवरी में हुए जिला प्रमुख चुनावों में 10 प्रधान 6 जिला प्रमुख नेताओं के रिश्तेदार चुनाव लड़े थे.
सूर्यनगरी में मदेरणा-जाखड़ परिवार के वंशज संभालेंगे कुर्सी!
जोधपुर में परिवारवाद पूरी तरह से हावी है. एक ओर मदेरणा परिवार की बहू मैदान में है तो दूसरी तरफ दिग्गज कांग्रेस नेता बद्रीजाखड़ का परिवार, कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा की मां लीला मदेरणा और दिग्गज नेता बद्री जाखड़ की बेटी मुन्नी ने ताल ठोक रखी है. कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा की मां और दिग्गज कांग्रेस नेता रहे परसराम मदेरणा की पुत्रवधु लीला मदेरणा जिला प्रमुख चुनाव में दावेदार माना जा रहा है, उधर पूर्व सांसद बद्री जाखड़ की बेटी मुन्नी देवी जाखड़ भी जिला प्रमुख चुनाव के टिकट की दावेदार हैं. जिला प्रमुख चुनाव में बद्री जाखड़ और मदेरणा परिवार के बीच ‘सियासी जंग’ तय मानी जा है. पूर्व सांसद बद्री जाखड़ की बेटी मुन्नी देवी जाखड़ वार्ड 18 से जिला परिषद और उनकी पोती सोनिया पीपाड़सिटी के वार्ड 16 से समिति सदस्य चुनाव समर में उतरीं हैं.

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गृह रक्षा मंत्री भजनलाल जाटव की बेटी-बहू मैदान में
बात करें भरतपुर की तो वैर विधायक और गहलोत सरकार में गृह रक्षा राज्य मंत्री भजनलाल जाटव की बेटी सुमन और बहू साक्षी कांग्रेस टिकट पर पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़ रहे हैं. जाटव की बेटी सुमन वैर पंचायत समित के वार्ड 12 से और बहू साक्षी वार्ड 5 से चुनाव मैदान में ताल ठोक रही हैं. जाटव की बेटी और बहू में से किसी एक को वैर पंचायत समिति प्रधान का उम्मीदवार बनाया जा सकता है, क्योंकि यहां प्रधान की सीट एससी के लिए रिजर्व है.

गहलोत समर्थक बाबूलाल नागर के बेटे-बहू को टिकट

दूदू में नागर परिवार चुनावी मैदान में उतरा है. पूर्व मंत्री और गहलोत समर्थक निर्दलीय विधायक बाबूलाल नागर के बेटे और बहू को टिकट दिए गए हैं. बाबूलाल नागर के बेटे विकास नागर जयपुर जिला परिषद के वार्ड 12 से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. विकास नागर ने चुनाव जीता तो जिला प्रमुख के पद पर दावेदारी तय मानी जा रही है. नागर की पुत्रवधु रूपाली नागर मोजमाबाद पंचायत समिति के वार्ड 13 से उम्मीदवार हैं.

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विधायकों की गारंटी पर परिजनों को टिकट!

विधायक जाहिदा के घर में 3 टिकट दिए गए हैं. कामां से कांग्रेस विधायक जाहिदा के परिवार को कांग्रेस ने 3 टिकट दिए हैं. जाहिदा की बेटी डॉ. शहनाज, बेटा साजिद खान और देवरानी साहिरा को टिकट मिला है. बसपा से कांग्रेस में आए विधायक जोगिंदर अवाना के बेटे को टिकट दिया गया है. नदबई विधायक जोगिन्दर सिंह अवाना के बेटे हिमांशु उच्चैन पंचायत समिति के वार्ड 13 से कांग्रेस टिकट पर पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़ रहे हैं. खंडार विधायक अशोक बैरवा के बेटे संजय बैरवा खंडार पंचायत समिति के वार्ड 3 से मैदान में उतरे हैं. वहीं अशोक बैरवा अपने भाई की पत्नी भूमेश के लिए टिकट की व्यवस्था नहीं कर पाए तो वो अब बरवाड़ा पंचायत समिति से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं. गहलोत समर्थक और गंगापुर सिटी से विधायक रामकेश की बहू चुनावी मैदान में हैं. गंगापुर से विधायक रामकेश मीणा की पुत्रवधु वजीरपुर पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़ रही हैं. वह पहले भी प्रधान रह चुकी हैं.

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कांग्रेस विधायक राजकुमार शर्मा की पत्नी RLP के टिकट पर चुनावी मैदान
में

जयपुर जिला परिषद के वार्ड नम्बर 35 से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के बैनर पर निशा शर्मा ने अपनी उम्मीदवारी ठोकी है. यहां आपको बता दें, निशा शर्मा गहलोत सरकार में पूर्व चिकित्सा मंत्री रहे डॉ. राजकुमार शर्मा की पत्नी हैं और राजकुमार शर्मा वर्तमान में झुंझुनूं जिले की नवलगढ़ सीट से कांग्रेस के विधायक भी हैं. यूं तो जिला परिषद के सदस्यों के चुनाव अन्य चुनावों के मुकाबले बहुत कम दिलचस्प होते हैं, लेकिन कांग्रेस विधायक की पत्नी का कांग्रेस के पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ना अब बड़ा ही दिलचस्प माना जा रहा है. बता दें, वार्ड 35 से निशा सहित तीन उम्मीदवार मैदान में है, जिसमें कांग्रेस से आशा कंवर और भाजपा से अचरज शर्मा शामिल हैं.

इन हालातों को देखते हुए राजनीति से वंशवाद का अंत होता नहीं दिख रहा है. वंशवाद जारी है और इसके अभी खत्म होने की संभावना भी नहीं दिख रही है. ये देखने में आया है कि जिस परिवार से कोई एक बड़ा नेता हो गया है, वो अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भी इसी में खींच लेता है, जिसके कारण राजनीति को वंशवाद और परिवारवाद से निजात नहीं मिल पा रही है. हर राज्य में जिस परिवार का कोई बड़ा नेता है वहां उस परिवार के बाकी सदस्यों को विरासत में राजनीति मिल जाती है. कई दिग्गज नेता के उत्‍तराधिकारी पिता की बनाई सियासी पिच पर बैटिंग करने निकले हैं. इनमें से कुछ हैं, जो पूर्व में ही राजनीति में सक्रिय थे. वहीं इनमें से तो कई युवा नेता हैं, जो अपने राजनीतिक करियर का शुभारंभ ही इस चुनाव से करने जा रहे हैं. देश की राजनीति में परिवारवाद को लेकर चाहे जितनी भी बात की जाए, लेकिन कोई भी पार्टी इससे अछूता नहीं है. फिर भी भारत जैसे इतने बड़े प्रजातंत्र में वंशवाद का मुद्दा बार-बार क्यों उठता रहता है? आखिर क्यों वंशवाद हमारे समाज को कैंसर की तरह जकड़े हुए है? क्या ये हमारे देश के हित में है? क्यों कुछ परिवारें दो-दो दलों में अपनी पैठ बना रखी है और हवा के रूख के हिसाब से अपने भविष्य की राजनीति को तय करते हैं? वंश का माल खाकर तरक्की हासिल करना क्या उचित है? आखिर लोकतंत्र में वंशवाद कब तक हावी रहेगा और इससे कब निजात मिलेगी?

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