UPA के अस्तित्व पर सवाल कितना जायज? ममता-पवार की सियासी महत्वकांक्षा के निशाने पर कांग्रेस!

विपक्ष के नेतृत्व को लेकर घमासान तेज, यूपीए के अस्तित्व पर घटक दल नहीं उठा रहे सवाल, ममता ने क्यों उठाया? जबकि ममता का UPA से नहीं है कोई लेना-देना, ममता-पवार की मीटिंग में ऐसा क्या हुआ कि ममता ने खोला मोर्चा? क्या ममता की अखिलेश, स्टालीन और लालू से हो चुकी बात? या फिर केवल छोड़ा गया है शगूफा

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Politalks.News/UPA/MamtaBenerjee. पश्चिम बंगाल में मिली प्रचंड जीत और बीजेपी को बुरी तरह धूल चटाने के बाद टीएमसी पप्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हौंसले सातवें आसमान पर हैं. इन दिनों ममता दीदी के तेवरों से सभी हैरान हैं और सियासी गलियारों में इसको लेकर काफी चर्चाएं जारी हैं. आखिर ममता बनर्जी ने यूपीए के अस्तित्व को लेकर बयान क्यों दिया? बता दें, ममता बनर्जी ने हाल ही में मुंबई में एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिलने के बाद सवालिया लहजे में कहा था कि, ‘कौन सा यूपीए? अब यूपीए नहीं है’. राजनीति के जानकार अब इस बयान का अलग-अलग तरीके से सियासी मतलब निकाल रहे हैं.

गौरतलब है कि यूपीए के घटक दलों में अब भी कांग्रेस को लेकर रोष नहीं है और किसी भी क्षेत्रीय क्षत्रप की नाराजगी कांग्रेस और उसके नेतृत्व के लिए सामने नहीं आई है. यहां तक कि बिहार में तो हाल ही में हुए उपचुनाव में राजद और कांग्रेस आमने-सामने लड़ भी चुके लेकिन लालू परिवार की ओर से कांग्रेस नेतृत्व के लिए कुछ नहीं कहा गया है. वहीं दूसरी ओर ममता बनर्जी और शरद पवार की राजनीति को जानने वाले लोगों का कहना है कि इन दोनों नेताओं की महत्वकांक्षा एक ही है और इसके चलते ममता दीदी का यह बयान आया है.

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आपको बता दें, सियासी गलियारों में सबसे बड़ा सवाल तो यही उठ रहा है कि आखिर ममता बनर्जी का यूपीए से क्या लेना-देना है? ममता बनर्जी काफी समय पहले यूपीए से बाहर हो गई थीं. ऐसे में ममता दीदी यूपीए में रही हैं इसलिए यूपीए पर बोलीं यह भी नहीं कहा जा सकता है. सवाल तो यह भी पूछा जा रहा है कि ममता बनर्जी तो एनडीए में भी रही हैं लेकिन एनडीए पर नहीं बोलती हैं. जबकि NDA के सभी बड़े दल तो मोदी सरकार से लगभग दूर हो चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि ममता ने कांग्रेस के खुन्नस में यूपीए पर बयान दिया या यूपीए में शामिल पार्टियों से उनकी बात हुई है और उनकी भी यहीं राय है?

आपको बता दें कि UPA में जो पार्टियां हैं उन पार्टियों के किसी भी नेता ने अब तक कांग्रेस पर कोई सवाल नहीं उठाया है. जैसे की महाराष्ट्र में शिव सेना और एनसीपी के नेता इस तरह का कोई बयान नहीं दे सकते हैं, क्योंकि राज्य की महाविकास अघाड़ी सरकार में कांग्रेस भी शामिल है और उसके 43 विधायकों के बगैर सरकार नहीं बनेगी. यहां यह भी आपको बता दें कि शिवसेना तो कभी भी UPA का हिस्सा नहीं रही है. ये तो महाराष्ट्र में सरकार बनाने की ललक तो विपरीत ध्रुवों को एक साथ लेकर आई है. अब बात करें झारखंड की तो हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम यह बात नहीं कह सकती है कि यूपीए नहीं है क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस के 18 विधायकों की मदद से उनकी सरकार टिकी हुई है. इधर केरल में कांग्रेस सरकार नहीं है फिर भी आईयूएमएल के नेता केएम कादिर मोहिद्दीन भी नहीं कह रहे हैं कि यूपीए नहीं है.

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हम बात करें तमिलनाडु की तो वहां जरूर एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके को अपने दम पर बहुमत है फिर भी वहां कांग्रेस के 18 विधायक उनकी सरकार को समर्थन दे रहे हैं. स्टालिन ने भी अब तक UPA पर सवाल नहीं उठाया है. अहम सियासी राज्य बिहार में भी पिछले दिनों दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस और राजद अलग अलग लड़े थे लेकिन राजद ने अब भी कांग्रेस या यूपीए से अलग होने की घोषणा नहीं की है और न ही यूपीए के अस्तित्व पर सवाल उठाया है. इन सभी दिग्गज नेताओं के UPA को लेकर कोई बयान नहीं आया है. ऐसे में भले बहुत संगठित या मजबूत नहीं है पर यूपीए मौजूद है, जिसका नेतृत्व कांग्रेस पार्टी कर रही है. अगर UPA के घटक दल कहते हैं कि यूपीए खत्म हो गया तब अलग बात है. बड़ा सियासी सवाल यही तो उठ रहा है कि ममता बनर्जी तो यूपीए में हैं भी नहीं, फिर उन्होंने यह बयान क्यों दिया?

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सबसे बड़ी बात यहां यहां भी है कि ममता बनर्जी ने ये बयान NCP सुप्रीमो शरद पवार से अहम मुलाकात के बाद दिया है. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा हो रही है कि क्या शरद पवार ने ममता के साथ एक घंटे की मुलाकात में कहा कि यूपीए खत्म हो गया है और अब कोई नया गठबंधन बनाना चाहिए? या ममता बनर्जी ने एमके स्टालिन, लालू प्रसाद, हेमंत सोरेन आदि से बात कर ली है? आपको यहां ये भी बता दें कि स्टालिन हों या हेमंत सोरेन या तेजस्वी यादव इनमें से किसी को राहुल गांधी या कांग्रेस से कोई दिक्कत नहीं है. इनमें से किसी की भी महत्वाकांक्षा देश का प्रधानमंत्री बनने या विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने की नहीं है. ये सभी क्षत्रप अपने अपने सियासी किलों को बचाए रखने तक ही संतुष्ठ हैं. लेकिन अलग-अलग कारणों से शरद पवार और ममता बनर्जी दोनों को राहुल गांधी से दिक्कत है. दोनों ही दिग्गजों की महत्वाकांक्षा भी एक ही है हमेशा से, दोनों दिग्गजों का सपना देश का नेतृत्व करने का है. सियासी जानकारों का मानना है कि इसलिए दोनों की मुलाकात के बाद ममता का यह बयान आया… हालांकि अभी बहुत से राजनीतिक डवलपमेंट होने की संभावना जताई जा रही है.

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