Poitalks.News/Delhi. पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा के चुनावों के लिए पूरी तरह कमर कस चुकी बीजेपी कि हाल में कई राज्यों में हुए उपचुनाव की हार ने नींदें उड़ा दी हैं. जिसके तुरन्त बाद भाजपा के दिग्गजों ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नेताओं को स्थिति से निपटने का ज्ञान भी दिया है. वहीं इस हार के बाद अब भाजपा के सियासी गलियारों में चर्चा है कि चार बड़े राज्यों में मुख्यमंत्री बदल चुकी भारतीय जनता पार्टी अब कुछ और राज्यों में बड़े बदलाव की तैयारी में है. कुछ राज्यों में तो हार का ठीकरा मुख्यमंत्रियों के सिर पर फोड़ा जाना तय माना जा रहा है, यही कारण है कि उपुचनावों के नतीजों के बाद अब हिमाचल प्रदेश में और पूर्वोत्तर के हालात को देखते हुए त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदले जाने का अंदाजा है. इसके साथ ही कुछ राज्य इकाइयों में भी बदलाव तय माने जा रहे हैं. पहाड़ों और रेगिस्तानी इलाकों में मिली हार को आलाकमान ने काफी गंभीरता से लिया है और अब इसको लेकर कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है.
राजस्थान में मिली हार से हिले आलाकमान!
राजस्थान की धरियावद और वल्लभनगर सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली करारी हार ने जयपुर से दिल्ली तक सभी रणनीतिकारों को हिलाकर रख दिया है. यहां वल्लभनगर में तो भाजपा प्रत्याशी चौथे स्थान पर रहा साथ ही अपनी जमानत भी जब्त करवा गया. वहीं धरियावद में पार्टी तीसरे स्थान पर रही, गनीमत है कि जमानत बचा पाने में भी कामयाब रही. आपको बता दें कि धरियावद को भाजपा का गढ़ माना जाता है. यहां दिवंगत गौतम लाल मीणा यहां से विधायक थे. इस करारी हार के बाद आलाकमान ने सख्ती दिखाई है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि रणनीतिकार टिकट वितरण में चूक का हवाला दे रहे हैं. लेकिन आम चर्चा यह है कि गुटबाजी के कारण भाजपा की लुटिया डूबी है. राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह इस हार के बाद दो दिन जयपुर रहे और लगभग सभी गुटों के साथ उनकी वन-ट-वन चर्चा भी की. अब इस चर्चा की रिपोर्ट आलाकमान को सौंप दिए जाने की चर्चा है. इस पूरे घटनाक्रम को देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि राजस्थान की भाजपा इकाई में व्यापक बदलाव तो होगा ही वहीं सभी गुटों को खेमेबाजी खत्म कर एकजुटता दिखाने की हिदायत मिलनी भी तय है.
यह भी पढ़ें- CM गहलोत की पोती बनी विधायक तो कल्ला का पोता बना मंत्री, 200 बच्चों ने चलाया विधानसभा का बाल सत्र
त्रिपुरा में देब की कुर्सी खतरे में
उपचुनाव की हार ने भाजपा के रणनीतिकारों की नींद उड़ा दी है. त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा पिछले कई महीने से चल रही है और कई बार प्रदेश के नेता और भाजपा विधायकों ने दिल्ली में डेरा जमा कर पार्टी आलाकमान को मुख्यमंत्री के बारे में बताया. मुख्यमंत्री बिप्लब देब हर बार अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे. इस बार विधायकों से अलग कुछ दूसरे कारणों से कुर्सी खतरे में दिख रही है. त्रिपुरा में विश्व हिंदू परिषद और अन्य हिंदुवादी संगठन बेहद सक्रिय हो गए हैं. इसके अलावा राज्य के आदिवासी समूहों के साथ भी तालमेल बिगड़ा है. यहां हम आपको बता दें कि त्रिपुरा में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं.
हिमाचल में ठाकुर पर गाज गिरना तय!
वहीं भाजपा आलाकमान के निशाने पर रहेगा दूसरा राज्य हिमाचल प्रदेश. यहां उपचुनावों में भाजपा ने बहुत खराब प्रदर्शन किया. एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा सभी सीटों पर हार गई. एक सीट पर तो पार्टी चौथे स्थान पर रही और उम्मीदवार को सिर्फ तीन हजार वोट मिले. उसके बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को दिल्ली तलब किया. तभी यह अटकल लगाई जा रही है कि उनको समय से पहले हटाया जा सकता है. ठाकुर ने तो हार से पल्ला झाड़ते हुए महंगाई को जिम्मेदार ठहराया था.
यह भी पढ़ें: किसी अभिनेत्री के बयान पर क्या टिप्पणी करें- गजेंद्र सिंह, पंजाब व फोन टैपिंग मुद्दे पर भी खुलकर बोले शेखावत
पीएम मोदी की वजह से मजबूती कायम, सीएम से नाराज है जनता!
आपको बता दें कि भाजपा ने अगले साल होने वाले गुजरात चुनाव से पहले मुख्यमंत्री विजय रूपानी को हटाया. हिमाचल प्रदेश का चुनाव गुजरात के साथ ही होना है और वहां उपचुनाव में जिस तरह से कांग्रेस मजबूत होकर निकली है उससे भाजपा में चिंता बढ़ी है. लोकसभा की मंडी सीट के उपचुनाव में जरूर भाजपा ने अच्छी टक्कर दी थी लेकिन विधानसभा की तीनों सीटों पर भाजपा बहुत बुरी तरह से हारी. इसका मतलब है कि लोकसभा में अब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से भाजपा की मजबूती कायम है लेकिन मुख्यमंत्री और उनके कामकाज को लेकर नाराजगी है. इसे दूर करने के लिए भाजपा बदलाव का फैसला कर सकती है.