Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में पिछले 20 दिनों से खूब मजमा जमा हुआ है. तमाशबीन भी इक्ठठे हो रखे हैं. बीच-बीच में संविधान की बात भी हो जाती है, अच्छा लगता है. जैसे तपती धूप में क्रिकेट का मैच हो और कुछ देर खेल रोककर डिंक्स आ जा तो सबको अच्छा लगता है. लेकिन तपती धूप में सारे काम छोड़कर क्रिकेट के इस खेल का आनंद लेने वालों का सारा मजा उस समय किरकिरा हो जाता है, जब मालूम पड़ता है कि मैच तो सारा फिक्स था. कौने कितने चैके लगाएगा, कौन बोल्ड होगा, कौन वाइड बाॅल के रन देगा, कौन विकेट के पीछे कैच छोड़ेगा. यहां तक तो सही है, उससे भी बड़ा धक्का तब लगता है जब मालूम पड़ता है कि खिलाड़ी ही नहीं, एम्पायर तक फिक्सींग में शामिल हैं. नाॅट आउट को आउट देने की कला भी तो आनी चाहिए. यह भी तो एक हुनर है, ऐसे कैसे कोई एंपयार नाॅट आउट को आउट दे सकता है. कुछ तो नियम होते ही होंगे क्रिकेट के….
खैर छोड़िए, कोरोना काल में क्रिकेट के फिक्सींग मैचों की बातें. अभी तो राजस्थान में राजनीति की हवा जरा ज्यादा ही गरमा गर्म हो रही है. कांग्रेस के पायलट मानेसर क्या जाकर बैठे, राजस्थान के लोगों को संविधान के कई अनुच्छेद याद होने शुरू हो गए. एक अनुच्छेद 174 के बारे में तो गहलोत सरकार और राज्यपाल मिश्र ने अपने-अपने कागजों में बताया है.
जी हां, यह राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र का अशोक गहलोत सरकार को सीधा-सीधा फरमान है. अगर सरकार सामान्य सत्र बुलाना चाहती है तो, सीधा-सीधा 21 दिन का नोटिस भेजें. राज्यपाल ने संविधान के आर्टिकल 174 का जिक्र करते हुए साफ कहा है कि सामान्य परिथितियों में राज्यपाल केबिनेट के प्रस्ताव को मानने के लिए बाध्यकारी है लेकिन अगर परिस्थिति विशेष है तो राज्यपाल को यह सुनिश्चित करना होगा कि विधानसभा का सत्र संविधान की भावना के अनुरूप आहूत किया जाए.
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जरा गौर कीजिए, इस शब्द पर, ‘संविधान की भावना के अनुरूप,’ यानि राज्यपाल के पत्र से दो बात साफ हो रही है कि एक तो वो सामान्य सत्र 21 दिन के नोटिस पर बुलाने के लिए तैयार हैं, दूसरा कि विशेष सत्र को बुलाने से पहले यह देखना जरूरी है कि वो संविधान की भावना के अनुरूप है या नहीं. तीन पेज के जवाब में गहलोत सरकार को आगे यह भी लिखा गया है कि विधानसभा के सभी सदस्यों की स्वतंत्र ईच्छा, उनका आवागमन, सदन की कार्रवाई में भाग लेने हेतु उनकी उचित सुरक्षा और प्रक्रिया की अनुपालना सुनिश्चित हो.
राज्यपाल के जवाब में तीन बड़ी बातें : –
1 कोरोना के एक्टिव केस की संख्या पिछले एक महीने में 3 गुुना हो गई है, ऐसे में बिना किसी विशेष परिस्थिति के 1200 से अधिक लोगों का जीवन खतरे में नहीं डाला जा सकता है.
2 विधानसभा के सदस्य गण राज्य और राज्य के बाहर बाड़ेबंदी में होटलों में बंद हैं. ऐसे में राज्यपाल का संवैधानिक कर्तव्य है कि उनकी विधानसभा में उपस्थिति, उनका स्वतंत्र रूप से कार्य संपादन, स्वतंत्र ईच्छा और स्वतंत्र आवागमन सुनिश्चित किया जाए.
3 सामान्य सत्र बुलाना है तो 21 दिन का नोटिस दें और अगर विशेष सत्र बुलाना है तो उसका कारण बताया जाए.
अब गहलोत सरकार एक बार फिर चौथा प्रस्ताव बनाने की तैयारी में जुट गई है. जिसके लिए मुख्यमंत्री आवास एक बार फिर हुई कैनिबेट की बैठक में मंथन पूरा हो चुका है, अब चौथी बार इसे राज्यपाल को भिजवाया जाएगा.
एक और संविधान के नियमों को लेकर गहलोत सरकार और राज्यपाल के बीच विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर नूरा कुश्ती जैसा वातावरण बनना हुआ है. वहीं दूसरी ओर सचिन पायलट के स्थान पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए गाविंद सिंह डोटासरा की आज ताजपोशी हुई. तमाम नेेता जुटे, मुख्यमंत्री गहलोत भी बोले, खुलकर बोले. कांग्रेसजनों को भरोसा दिलाया 21 दिन लगे या 31, लोकतंत्र की हत्या नहीं होने देंगे. सियासी जंग को जीतकर ही दिखाएंगे.
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वहीं शाम होते-होते प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए सचिन पायलट ने भी ट्वीट कर पर डोटासरा को बधाई दे दी. पायलट ने लिखा कि मुझे उम्मीद है की आप बिना किसी दबाव या पक्षपात के उन कार्यकर्ताओं जिनकी की मेहनत से सरकार बनी है, उनका पूरा मान-सम्मान रखेंगे.
खैर यह तो राजनीति का खेल है, चलता रहेगा. लेकिन अपने को तो राज्यपाल महोदय की वो बात बहुत अच्छी लगी, जिसमें उन्होंने कहा कि विशेष सत्र संविधान की भावना के अनुरूप ही आहूत होना चाहिए. धन्य है, हमेशा बनी रहे हर परिस्थति में, चाहे सामान्य या हो विशेष, हर परिस्थिति में संविधान की भावना बनी रहनी चाहिए.