प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की खराब हालातों के बीच 200 करोड का प्लेन खरीदने जा रही राजस्थान सरकार!

सरकार अपने लिए डेशो एविएशन कंपनी से 10 से 12 सीट वाला मिड साइज जेट विमान खरीदने जा रही है, सरकार के अपने विकास से कहीं अधिक जनहित का विकास है, हाल ही में राजस्थान के संदर्भ में की गई बॉम्बे हाईकोर्ट की एक टिप्पणी के बाद तो यह और भी ज्यादा चिंता का विषय है

पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. सरकारी अस्पतालों की खराब हालातों के शोरगुल के बीच राजस्थान की गहलोत सरकार राज्य के लिए 200 करोड रूपए का एक अत्याधुनिक विमान खरीदने जा रही है. यह विमान जल्दी ही सरकार और सरकार के अति विशिष्ठ लोगों के लिए उपलब्ध होगा. हाल ही में 8 जनवरी को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में इसके लिए एक एविएशन कंपनी को शॉर्टलिस्ट कर लिया गया है. सूत्रों के मुताबिक अशोक गहलोत सरकार 200 करोड़ रुपये में डेशो एविएशन कंपनी से 10 से 12 सीट वाला मिड साइज जेट विमान खरीदने जा रही है. डेशो एविएशन फ्रांस की कंपनी है. इसको लेकर राज्य सरकार की उच्च स्तरीय समिति ने निर्णय लेने के बाद प्रस्ताव को मंजूरी के लिए मुख्यमंत्री गहलोत के पास भेजा हुआ है, बता दें, मुख्यमंत्री गहलोत के पास वित्त विभाग का जिम्मा भी है.

समस्याएं और विकास दोनों एक दूसरे से गहरे बन्धन में जुडे हैं, लेकिन क्या हो कि समस्या कुछ और हो और विकास किसी अन्य तरह का हो. सरकार के लिए जनहित पहले हो या फिर निज हित, यह बहस का विषय हो सकता है लेकिन इस सच्चाई को भी नकारा नहीं जा सकता कि सरकार के अपने विकास से कहीं अधिक जनहित का विकास ही नैतिक धर्म है. हाल ही में राजस्थान के संदर्भ में की गई बॉम्बे हाईकोर्ट की दो जजों की बैंच की एक टिप्पणी के बाद तो यह और भी ज्यादा शर्म का विषय हो जाता है कि सरकार के लिए अपने सरकारी अस्पतालों के हालात सुधारना ज्यादा महत्वपूर्ण है या अपने लिए 200 करोड़ की लागत वाला प्लेन खरीदना. इस मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का फैसला काबिले-तारीफ है. केजरीवाल ने कहा हमने गुजरात सरकार की तरह अपने लिए 190 करोड़ का प्लेन नहीं खरीदा बल्कि उस पैसे से दिल्ली की जनता के लिए कई अस्पताल और सरकारी विद्यालयों का स्तर हमने सुधार दिया.

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राज्य की दो तस्वीरों से समझिए सरकार के विकास के मायने

पहली तस्वीर जुडी है राज्य के सरकारी अस्पतालों के बेहद खराब हालातों से. सरकारी अस्पतालों के हालात बयां करते हैं कि सरकार की संवेदनशीलता के बाद भी सरकारी अस्पतालों में मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. कभी-कभी अचानक मौतों से जुडी खबर सुर्खियां बनती है और फिर कुछ शोरगुल के बाद सबकुछ शांत हो जाता है, लेकिन हालात जैसे के तैसे ही रहते हैं. हाल ही में कोटा के जेके लोन अस्पताल सहित राज्य के अन्य अस्पतालों से आई बच्चों की मौत की खबरें इस बात का पहला और बड़ा उदाहरण है.

आए दिन सरकारी अस्पतालों में उचित इलाज के अभाव में बच्चों सहित अन्यों की मौतों की खबरें आम हैं. सरकार के करोडों के बजट के बाद भी हर सरकारी अस्पताल किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है. कहीं उपकरण नहीं हैं कहीं चिकित्सा कर्मियों का अभाव या कहीं मरीजों के लिए बैड या बैड के लिए जगह की कमी. ऐसे में सरकारी अस्पतालों में होने वाली मौतों के बाद परिजनों द्वारा गुस्सा, हंगामा और मारपीट और फिर चिकित्सकों और नर्सिंग कर्मियों की गैर-जरूरी हडताल, सरकारी अस्पतालों की तस्वीर बंया करती हैं. ऐसा नहीं है कि सरकार अस्पतालों को अच्छे स्तर का बनाने का कोई प्रयास नहीं करती लेकिन जब प्रदेश के अस्पतालों में बच्चों की मौत के बाद सामने आता है कि अस्पताल में जीवन रक्षक उपकरण चाइनिज थे या फिर क्वालिटी के नहीं थे, तब सरकार के द्वारा उठाए गए स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के कदमों पर सवालिया निशान लग जाता है.

सरकारी अस्पतालों से आने वाली कई खबरें भी अजीबो-गरीब ही नहीं बल्कि दिल दहला देने वाली होती हैं. मसलन अलवर के एक अस्पताल में 250 रुपए का स्वीच खरीदने के लिए दो डाॅक्टर लडते रहे और शार्ट सर्किट होने से आग लगी और एक 15 दिन की मासूम की जलकर मौत गई. इस अस्पताल के शिशु वार्ड के वार्मर का स्वीच कई दिनों से खराब चल रहा था. उसमें से कई बार धुआं भी निकलता था लेकिन केवल 250 रुपए के इस स्वीच के लिए पिछले एक साल से राशि जारी नहीं हुई. आखिरकार यह स्वीच एक मासूम की मौत का कारण बन गया. एक और उदाहरण अजमेर के सबसे बडे अस्पताल में आए दिन सीटी और एमआईआर मशीन किसी न किसी कारण से बंद पडी रहती है. वहीं खास बात यह है कि जनता के लिए प्राइवेट सेक्टर की एमआरआई और सीटी स्केन मशीन हमेशा उपलब्ध होती है. अभी कुछ ही दिन पहले 20 बेड का डायलिसिस कक्ष केवल इसलिए बंद हो गया कि अस्पताल प्रशासन ने लंबे से समय से उसके बकाया 2 लाख रुपए का भुगतान नहीं किया था. वहीं अधिकांश अस्पतालों में हो रही बच्चों की मौतों के लिए घटिया क्वालिटी के वार्मर और दूसरे उपकरणों की बात भी सामने आ रही है.

सरकारी अस्पतालों के चिंताजनक हालातों के बीच देखते हैं विकास की दूसरी तस्वीर

यह तस्वीर जुडी है दुनिया की जानी मानी विमान बनाने वाले एक कंपनी डेशो फाल्कन के एस सीरिज के विमान से. करीब 200 करोड की लागत वाले 10 सीटर के इस अत्याधुनिक विमान को गहलोत सरकार खरीदने जा रही है. हालांकि राज्य सरकार के पास पहले से दो विमान हैं, इनमें इनमें किंग एयर बी और किंग एयर सी शामिल हैं. वहीं निश्चित है कि सरकार अपने लिए विमान खरीद रही है तो वो उच्च गुण्वत्ता वाला ही होगा. यह मल्टी इंजन वाला विमान होगा.

विमानों की खरीदारी के लिए राजस्थान सरकार ने 15 अक्टूबर 2019 को वैश्विक एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट मंगाया था. क्रू मेंबर को छोड़कर इसमें 10 एग्जिक्यूटिव क्लब सीट होगी. पिछले साल जारी किए गए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट के मुताबिक, यह प्लेन राज्य के गणमान्य व्यक्तियों और सरकार के अधिकारियों के लिए लिया जा रहा है.

(काल्पनिक चित्र)

सूत्रों की मानें तो विमान खरीदने को लेकर राज्य के सिविल एविएशन विभाग द्वारा जारी टेंडर में फ्रांस की एविएशन डेशो, एंब्रर सहित पांच बड़ी कंपनियों ने इसमें अपनी दिलचस्पी दिखाई थी. प्लेन की खरीदारी के लिए बनाई गई कमेटी में राज्य के अधिकारियों के अलावा डीजीसीए के अधिकारी भी शामिल थे. राज्य की भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखकर तकनीकी एवं सुरक्षा मानकों का भी समिति ने निरीक्षण किया. वित्त एवं सिविल एविएशन विभाग के अधिकारियों ने तकनीकी विशेषज्ञों के साथ चर्चा के बाद डेशो कंपनी का फाल्कन एस सीरीज विमान खरीदने का निर्णय लिया है. इस संबंध में कंपनी के अधिकारियों के साथ बाचतीत पूरी हो चुकी है. मुख्य सचिव डीबी गुप्ता और वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव निरंजन आर्य ने कंपनी के अधिकारियों के साथ बातचीत की. विमान की अनुमानित कीमत 29.95 मिलियन डॉलर बताई गई है, जो भारतीय मुद्रा में करीब 214 करोड़ रुपये है. वर्तमान में राजस्थान सरकार के पास सुपर किंग एयर बी200 और किंग एयर सी 90ए दो एयरक्राफ्ट हैं. हालांकि इनमें से एक 30 साल तो दूसरा 15 साल पुराना है.

इसमें भी कोई शक नहीं कि इस विमान के आने से राज्य की प्रतिष्ठा बढेगी साथ ही अति विशिष्ठ लोगों का जीवन हवाई यात्रा के दौरान सुरक्षित और सुनिश्चत होगा. यह अलग बात है कि गहलोत सरकार इस विमान को उस दौर में खरीद रही है जिस दौर में आमजन से जुडे सरकारी अस्पतालों में बडे बदलावों पर धन राशि खर्च करने की ज्यादा आवश्यकता है.

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चिकित्सा क्षेत्र से जुडे विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार चाहे तो हर जिले में केवल 50 से 100 करोड रुपए खर्च कर ऐसे अस्पताल बना सकती है जो मल्टी सुपरस्पेशलिटी हाॅस्प्टिल की श्रेणी में आते हैं. चूंकि सरकार को जमीन खरीदने की जरूरत नहीं है ऐसे में इनकी लागत और भी कम हो सकती है. इनमें 300 बैडेड के ऐसे मल्टी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में आउटडोर, इनडोर, ऑपरेशन थिएटर, इमरजेन्सी, ब्लड बैंक व गंभीर मरीजों के लिए जीवन रक्षक उपकरणों से सुसज्जित आईसीयू की सुविधा हो सकती हैं. दुर्घटना होकर आने वाले घायलों को एक छत के नीचे जांच (ब्लड, यूरीन, ईसीजी, डिजिटल एक्सरे, सोनोग्राफी), विशेषज्ञ डॉक्टर (न्यूरोलोजी फिजिशियन, न्यूरोसर्जन, आर्थोपेडिक्स, गायनी, कार्डियोलोजिस्ट, प्लास्टिक सर्जन) की 24 घंटे सातों दिन सुविधा उपलब्ध हो सकती है. इन अस्पतालों में प्रशासनिक अधिकारी व डॉक्टर मरीजों की ऑनलाइन मॉनिटरिंग भी कर सकते हैं.

बता दें, हाल ही में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने रोहिणी और नांगलोई विधानसभा में आयोजित चुनावी जनसभाओं में कहा कि मैने अपने लिए 140 करोड़ रुपये का हवाई जहाज नहीं खरीदा. मैं आज भी अपनी उसी गाड़ी में चल रहा हूं. दूसरी ओर गुजरात के मुख्यमंत्री ने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए 190 करोड़ रुपये का हवाई जहाज खरीदा है. ऐसा नहीं है कि दिल्ली सरकार के पास हवाई जहाज खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. हमारे पास पैसे थे, लेकिन मैंने उन पैसों से दिल्ली की महिलाओं को बसों में फ्री यात्रा की सुविधा दे दी. दिल्ली के स्कूल व अस्पताल अच्छे कर दिए. आपके घर का बिजली व पानी का बिल जीरो आ रहा है.

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ऐसा नहीं है कि कम से कम प्रत्येक जिले में एक ऐसा सरकारी अस्पताल नहीं बनाया जा सकता जहां उक्त सारी सुविधाएं गरीब मरीजों को मिल सकें, बात है इच्छाशक्ति की. अगर सरकार के पास 200 करोड़ का अतिरिक्त बजट है तो सिर्फ मूल्यांकन इस बात का करना है की अतिआवश्यक क्या है? अभी बॉम्बे हाईकोर्ट ने राजस्थान का नेगेटिव उदाहरण दिया है, कल किसी और राज्य की कोर्ट हमारा मजाक बनाएगी. ऐसे ही आज केजरीवाल ने गुजरात के मुख्यमंत्री का उदाहरण दिया है कल राजस्थान का उदाहरण कोई और मुख्यमंत्री या बीजेपी के हाथ लगेगा. अब यह सरकार को तय करना है कि वो राजस्थान की कौनसी तस्वीर देश के सामने पेश करना चाहती है. और फिर सरकार अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी से सही पहल करती है तो प्रदेश में भामाशाहों की भी कमी नहीं है.