Politalks.News/Delhi. हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में से 4 में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद हैं. बीजेपी की इस जीत का सेहरा और किसी के सर पर नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सर पर ही सजा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता देश भर में लोगों के सर चढ़कर बोलती है. चाहे लोकसभा चुनाव हो, विधानसभा चुनाव या फिर स्थानीय निकाय चुनाव देश में मोदी लहर हर जगह कायम है और यही कारण है कि बीजेपी एक के बाद एक चुनाव जीतती ही जा रही है. लेकिन बीजेपी के पूर्व दिग्गज नेता एवं अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी को प्रधानमंत्री की यह छवि कहीं न कहीं पसंद नहीं आ रही. अरुण शोरी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और RSS पर जमकर निशाना साधा.
अक्सर अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले बीजेपी के पूर्व नेता अरुण शोरी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा. अपनी नई पुस्तक द कमिश्नर फॉर लॉस्ट कॉसेज में अरुण शोरी ने आपातकाल, भागलपुर हिंसा, राजनीति, बोफोर्स, भ्रष्टाचार जैसे कई मुद्दों का जिक्र किया है. अपनी पुस्तक के लांच के साथ ही अरुण शोरी एक बार फिर से चर्चाओं में आ गए हैं. एक निजी मीडिया समूह को दिए अपने इंटरव्यू में जब अरुण शोरी से सवाल पूछा गया कि, क्या बीजेपी के अंदर या बाहर कोई ऐसा है जो भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकता है? इस सवाल के जवाब में अरुण शोरी ने कहा कि, ‘बीजेपी को अंदर से कोई खतरा नहीं है क्योंकि उनके पास एक साधन (रिसोर्स) है जो दूसरों के पास नहीं है और वह है आरएसएस का कैडर.’
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अरुण शोरी ने आगे कहा कि, ‘भारतीय जनता पार्टी अब पार्टी नहीं एक चुनावी मशीन बन गई है, जिसके पास आरएसएस है जो दूसरे दलों के पास नहीं है. आरएसएस नेता अब मोदी की आर्मी का हिस्सा बन गए हैं और संघ बस एक मुखौटा बनकर रह गया. आरएसएस तर्क दे रहा है कि भाजपा सरकार में उसके एजेंडे को अंजाम दिया जा रहा है जबकि आरएसएस का शीर्ष नेतृत्व अब सिर्फ मुखौटा बन कर रह गया है. संघ के दूसरे क्रम के नेता और कैडरों को मोदी ने सहयोजित किया है और अब ये उनकी आर्मी का हिस्सा हैं. वहीं, अगर विपक्षी दलों की बात की जाए तो बीजेपी को चुनौती देना मुश्किल है. अगर विपक्ष एकजुट हो जाए तभी बीजेपी को चुनौती दे सकता है.’
निजी मीडिया समूह को दिए अपने इंटरव्यू में अरुण शोरी ने RSS पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘आरएसएस तो 1940 के दशक से ही साधुओं जैसे समूहों को अपने साथ लाने के लिए काम कर रहा है. क्योंकि वो ये अच्छी तरह जाना है कि ये समाज में एक प्रभावशाली समूह है, जिन्हें लोग सुनते हैं और इनकी बातों का लोगों के जीवन पर प्रभाव पड़ता है. वहीं, हमने कभी यह कोशिश नहीं की कि हम उन तक पहुंचें और ये सुनिश्चित करें कि वे आरएसएस की विचारधारा को फैलाने का माध्यम ना बनें. हमारी अनदेखी के कारण आरएसएस के लिए ऐसे लोगों को अपने पाले में करना आसान हो गया.’
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अरुण शोरी ने आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए कहा कि, ‘नरेंद्र मोदी के बारे में उनके खुद के अधिकारी ही मुझे कहते है कि कोई भी उनके सामने बोल नहीं सकता. सारे के सारे मंत्री उनसे डरे हुए रहते हैं. कोई उनके सामने कुछ बोल नहीं पाता. उनके सामने जाने और कुछ भी कहने से पहले लोग डरे रहते हैं और सोच समझकर बोलते हैं. हालांकि अटल जी की पर्सनालिटी ऐसी नहीं थी. वो इससे बिलकुल अलग थे, लोग उनसे अपनी बात कहना चाहते थे और वह सुनते भी थे. उनकी एक खास बात यह भी थी कि वह भी यह जानना चाहते थे कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं. वह पूछा करते थे और लोग बिना किसी डर के बताते भी थे.’