महाराष्ट्र का इस बार का विधानसभा चुनाव अब तक का सबसे गहमागहमी वाला और भ्रमित करने वाला चुनाव होने वाला है. इस बार मुकाबला केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच नहीं है, बल्कि शिवसेना बनाम शिवसेना और एनसीपी बनाम एनसीपी भी है. यह वर्चस्व की, सम्मान की और जमीन की लड़ाई है जिसमें एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे और अजित पवार बनाम शरद पवार एक दूसरे के सामने हैं. हालांकि सभी की नजरें शरद पवार पर गढ़ी है. शरद पवार का मराठा राजनीति में चार दशकों से दबदबा रहा है. कांग्रेस के साथ मिलकर शरद पवार ने लगातार डेढ़ दशक तक एकतरफा राज किया है. भतीजे अजित पवार से मिले धोखे के बाद भी 83 साल के शरद पवार के हौसले कम नहीं हुए. इस बाद भी शरद पवार फुल फार्म में हैं.
शरद पवार यह भली भांति जानते हैं कि महाराष्ट्र के नतीजों से आने वाले महीनों में राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय होगी. उन्हें अहसास है कि शायद यह उनका आखिरी दांव है. ऐसे में पवार के पास राजनीति की दिशा तय करने का यह आखिरी मौका है. वे अपनी विरासत और एनसीपी का भविष्य मजबूत करना चाहेंगे. उम्र और स्वास्थ्य ने शरद पवार को शारीरिक रूप से भले धीमा कर दिया हो, दिमाग पहले जैसा ही तेज है. एमवीए उनकी ही रचना थी. जब गठबंधन में रहते हुए 2019 का विधानसभा चुनाव जीतने के बावजूद, संयुक्त शिवसेना और बीजेपी सरकार बनाने के लिए सहमति पर पहुंचने में विफल रहे, तो पवार ने एक जादूगर की तरह एमवीए को अपनी टोपी से बाहर निकाला था.
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हालांकि पवार को इसकी कीमत तीन साल बाद चुकानी पड़ी, जब बीजेपी ने पहले एकनाथ शिंदे को और उसके बाद उनके भतीजे अजित पवार को अलग करके शिवसेना और एनसीपी को विभाजित कर दिया. दूसरे मायनों में उद्धव ठाकरे और शरद पवार को आधा कर दिया. यह शरद पवार के लिए बहुत बड़ा झटका था और तब से वे प्रतिशोध लेना चाह रहे थे. यह मौका उन्हें लोकसभा चुनाव में मिला, जब उन्होंने महायुति को हराने और महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटें जीतने में एमवीए की मदद की. उनकी वजह से ही अजित पवार को आम चुनावों में मुंह की खानी पड़ी. महाराष्ट्र और यूपी में हार ने ही बीजेपी को बहुमत के आंकड़े से नीचे ला दिया था और उसे गठबंधन सरकार बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
अब पवार दूसरे राउंड की तैयारी कर रहे हैं. एमवीए में जब सीट बंटवारे के फॉर्मूले को लेकर उद्धव की शिवसेना और कांग्रेस के बीच अंत तक खींचतान चली तो समझौता कराने के लिए शरद पवार को बुलाया गया. शरद पवार ने जो फॉर्मूला निकाला, वह गौर करने लायक है. हैरानी की बात यह थी कि उनके जैसा कद्दावर नेता इतनी कम सीटों पर समझौता कर गया. लेकिन एक चतुर राजनेता होने के नाते शरद पवार ने केवल उन निर्वाचन क्षेत्रों में लड़ने का विकल्प चुना, जहां उन्हें लगा कि भतीजे द्वारा उनकी पार्टी को बांटने के बावजूद वे जीत सकते हैं.
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दरअसल, पवार का मुख्य प्रभाव क्षेत्र पश्चिमी महाराष्ट्र का चीनी उत्पादक क्षेत्र है. इस क्षेत्र में विधानसभा की 70 सीटें हैं. लोकसभा चुनावों में, पवार ने केवल 10 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें उन 70 में से लगभग 65 विधानसभा सीटें आती हैं. गौर करने वाली बात ये भी है कि इनमें से अधिकांश सीटों पर अजित गुट की पार्टी के उम्मीदवार ही मैदान में खड़े हैं. ऐसे में शरद पवार न केवल अपने अपनी राजनीति का एक बार फिर लोहा मनवाना चाह रहे हैं, साथ ही अजित पवार को भी घुटने पर लाना चाहते हैं.
शरद पवार एमवीए की ओर से हर चाल सोच-समझकर चल रहे हैं. उन्होंने आत्मविश्वास दिखाते हुए परिवार के गढ़ बारामती में अजित के खिलाफ युगेंद्र को मैदान में उतारा है. यह लंबे समय तक उनकी अपनी सीट रही है. गठबंधन में सबसे कम सीटों पर लड़ने के बाद भी एमवीए के सभी निर्णयों के पीछे शरद पवार ही हैं. उद्धव की ओर से लगातार सीएम चेहरा घोषित किए जाने के उत्तर में ‘महाराष्ट्र की पहली महिला मुख्यमंत्री’ की बहस छेड़ना भी उनकी रणनीति का एक हिस्सा था.
जब शरद पवार के कौशल से भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य टकराएंगे तो महाराष्ट्र के चुनाव में घमासान तय है. इस चुनाव के बारे में भविष्यवाणी करना साहस का काम होगा.