पॉलिटॉक्स ब्यूरो. देश में चारों ओर आर्थिक मंदी का माहौल है. उद्योग खत्म हो रहे हैं और देशभर के नौजवान अपनी नौकरियों से हाथ धोकर घर बैठने को मजबूर हैं. एक सर्वे के अनुसार, साल 2020 तक देश के करीब 10 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे. राजस्थान जैसे राज्य की हालात तो और ज्यादा खराब है. इस दम घोटती महंगाई वाले माहौल में प्रदेश की गहलोत सरकार द्वारा स्टेट हाईवे पर निजी वाहनों पर टोल (State highway Toll) फिर से लागू कर दिया गया है. हद तो तब हो गयी जब राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसे जन विरोधी नहीं बल्कि जनहित का फैसला बताते हुए सरकार के इस निर्णय को स्वागत योग्य बताया.
अपने दिल्ली प्रवास के दौरान पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि जो लोग कार रखते हैं वो पूरी तरह से टोल चुकाने में सक्षम हैं. ऐसे में इसे मुद्दा न बनाएं. राजधानी दिल्ली में बयान देते हुए सीएम गहलोत ने कहा, ‘सड़कें 20-25 साल के ठेके पर हैं. इसमें निजी कारों का टोल शामिल है. सरकार पर तीन साल बाद एक हजार करोड़ तक का भार आएगा, इसे कैसे चुकाएंगे. कार चलाने वाले लोग टोल चुकाने में सक्षम हैं. उन्हें इसका मुद्दा न बनाकर जनहित के फैसला का स्वागत करना चाहिए’.
अब 1 नवम्बर रात 12 बजे बाद से हर नाके पर सभी प्राइवेट वाहनों को भी 30 से 55 रुपये तक टोल देना होगा. कहने को तो 30 से 55 रुपए एक छोटी रकम लगती है, अगर ये रकम एक साल या एक महीने में एक बार देनी हो तो बात अलग है लेकिन अगर यह छोटी रकम एक दिन में 200 से 300 किलोमीटर के सफर में 3 से 4 बार देनी पड़े और साथ में नेशनल हाइवे के भारी भरकम टोल को भी झेलना पड़े तब इस छोटी रकम की कीमत अगर कोई समझ सकता है तो वह है एक छोटी गाड़ी और सामान्य नौकरी पेशे वाला आम आदमी.
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इस बेरोजगारी और मंदी वाली परिस्थितियों के बीच गहलोत जी को आमजन की जेबें हलकी करने वाला ये तुगलकी फरमान भी जनहित का फैसला लग रहा है. वहीं लोकसभा चुनाव में केवल सत्ता के समीकरण साधने के लिए पेश हुए सरकार के पहले बजट में गहलोत ने कहा था, ‘पिछली सरकार में राजस्थान की जनता पर बेदर्दी के साथ टैक्स की मार पड़ी थी. विधानसभा चुनाव का भार भी जनता के माथे पड़ा है. ऐसे में जनता के साथ हमदर्दी रखते हुए कांग्रेस सरकार कोई नया टैक्स न लगाते हुए जनता के साथ न्याय कर रही है’. लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद बिजली दरों में बढ़ोतरी की गई, अब टोल टैक्स का भार भी जनता के सिर डाला गया है.
सीएम गहलोत की नजरों में जिन घरों में कार या निजी वाहन हैं, वे सभी पैसों में खेल रहे हैं और उन्हें 50 रुपये देने में कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन अगर कोई छोटी कार व सामान्य नौकरी पेशे वाला आदमी दिन में दो या चार बार टोल पार करता है तब भी शायद गहलोत ये ही कहेंगे. अगर सच में सरकार को ईएमआई पर कार और घर खरीदने वाले प्रदेश के सामान्य नौकरी पेशा आदमी का 50 या 100 रुपये के हिसाब से महीने का तीन हजार रुपये का खर्च कोई भार नहीं लगता तो हाल में गहलोत सरकार ने डीए के नाम पर विधायकों के वेतन में 15 फीसदी की बढ़ोतरी क्यों की, जबकि सभी जानते हैं कि विधायकों को घर, कार, पेट्रोल, फोन सहित अन्य प्रकार के सभी खर्चे सरकार द्वारा ही वहन किए जाते हैं. ऐसे में उनके वेतन बढ़ाने की जरूरत क्यों हुई. वो भी तब जब जनता मंदी और कर्ज के भार के नीचे दबी जा रही है. ये भी याद दिला दें कि 18 महीने पहले ही पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार ने सभी विधायकों के वेतन में 12 फीसदी की बढ़ोतरी पहले ही कर दी थी.
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इसके दूसरी ओर, राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां दिल्ली, बिहार, बंगाल, नेपाल, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के लोग भी यहां नौकरी और मजदूरी की तलाश में आते हैं. ये लोग कम दरों पर भी काम करने को तैयार हैं जिससे श्रम की न्यूनतम आय भी दिनोंदिन घटती जा रही है. सरकारी आंकड़ों पर नजर डाले तो राजस्थान का न्यूनतम वेतन केवल 5850 रुपये है. इनके एक दिन की सैलेरी 225 रुपये मात्र है. यह नोटिफिकेशन दिनांक 6 मार्च, 2019 को सी.बी.एस. राठौड़, अति श्रमआयुक्त एवं संयुक्त शासन सचिव, राजस्थान जयपुर ने जारी किया है जो 1 मई, 2019 से लागू है.
हालांकि इस बात में कोई संशय नहीं है कि अशोक गहलोत ने पिछले साल प्राइवेट वाहनों को स्टेट हाईवे टोल मुक्त कराने का फैसले को वसुंधरा सरकार का चुनावी हडकंडा बताया था, जो एकदम सच है. विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के कुछ महीनों पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने स्टेट हाईवे टोल (State highway Toll) हटाया था. सरकार के इस फैसले से प्रदेश की जनता को थोड़ी ही सही लेकिन राहत मिली थी जिसे गहलोत सरकार अब छीन रही है. खुद सरकार में कैबिनेट मंत्री उदयलाल आंजना ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि एक बार छूट देने के बाद अगर टोल वापस लगेगा तो विरोध होगा. आंजना ने इस संबंध में मुख्यमंत्री गहलोत से बात करने को भी कहा है.
उधर विपक्ष इस बात को जोर शोर से हवा दे रहा है, ऐसे में विपक्ष के विरोध में आमजन के साथ सत्तापक्ष के कुछ नेताओं का साथ अगर मिल जाता है तो सरकार को अपने इस तुगलकी फरमान से पीछे हटना पड़ सकता है. सरकार को अपने इस हितकारी फैसले (State highway Toll) से सालाना 300 करोड़ रुपये की आय की चिंता है लेकिन दम तोड़ती महंगाई में इस तरह का फैसला कहां तक सही है. इस फैसले से निश्चित तौर पर प्रदेश कांग्रेस में आंतरिक कलह को हवा मिलेगी, ये भी तय है. दरअसल, स्टेट हाईवे मंत्रालय उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के अधीन आता है लेकिन टोल वसूली का फैसला वित्त मंत्रालय से जुड़ा है जो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अधीन है. ऐसे में वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव के जरिए यह काम हो रहा है.
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पॉलिटॉक्स के नजरिये से गहलोत सरकार का यह कदम (State highway Toll) न केवल आत्मघाती सिद्ध होगा, साथ ही निकाय चुनावों में सत्ता पक्ष का पलड़ा उलटने वाला साबित हो सकता है. इस मामले में मुख्य सचेतक महेश जोशी ने कहा कि हर निर्णय को चुनाव के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए, जनभावना का ध्यान रखा जाना चाहिए. पायलट खुद पार्टी अध्यक्ष हैं और उन्हें टोल लगाने का फैसला उचित ही लगेगा. ऐसा कहकर जोशी ने वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव से वसूले जाने वाले टोल का मामला पायलट के पाले में डाल दिया है. लेकिन अगर इस फैसले का असर निकाय चुनावों पर पड़ता है तो निश्चित तौर पर प्रदेश सरकार का ये फैसला आमजन के लिए नहीं वरन् गहलोत सरकार के लिए आत्मघाती होगा.