Politalks.News/Delhi. देश में इन दिनों चुनावों के दौरान मुफ्त की चीजें बांटने और फ्री सुविधाओं के वादों को लेकर होने वाली ‘फ्री रेवड़ी पॉलिटिक्स’ को लेकर सियासी बहस छिड़ी हुई है. सियासत में ‘आम आदमी पार्टी’ के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा छेड़ी गई इस बहस में कई राजनीतिक दलों के साथ-साथ अब सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग भी शामिल हो गए हैं. इसी कड़ी में इस मामले पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के दौरान पार्टी द्वारा योजनाओं की घोषणा और उससे होने वाले अर्थव्यवस्था को नुकसान को लेकर संसद में विचार करने का सुझाव दिया. यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर मामले में अपनी तरफ से कमेटी बनाने के भी संकेत दिए. वहीं चुनाव आयोग से तल्ख़ लहजे में सवाल पूछते हुए CJI एनवी रमना ने कहा कि, ‘अगर कोई पार्टी चुनाव जीतने के बाद लोगों को सिंगापुर, हांगकांग ले जाने का वादा करे तो क्या चुनाव आयोग को इसमें दखल नहीं देना चाहिए?’ इसके साथ ही CJI ने तमिलनाडु के राजनीतिज्ञों द्वारा SC के फैसलों पर उठाये जा रहे सवालों को लेकर भी तल्खी दिखाई.
राजनीतिक पार्टियों के मुफ्त वादों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई याचिका पर मंगलवार को करीब 45 मिनट तक सुनवाई हुई. इसमें पार्टियों के मुफ्त वादों पर रोक लगाने की मांग गई है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान संकेत दिया कि वह इस केस को बड़ी बेंच में भेजा जा सकता है. सुनवाई के दौरान याचिका करता अश्विनी उपाध्याय की तरफ से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि, ‘मुफ्त वादों के चलते आज देश दिवालिया होने की स्थिति में है. हम यह नहीं कह रहे हैं कि पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी सुविधाएं सरकार को नहीं देनी चाहिए. लेकिन बिना राज्य की आर्थिक हालत की चिंता किए अगर कोई पार्टी करोड़ों रुपए की योजना का वादा कर रही है, तो इससे सिर्फ करदाताओं पर बोझ बढ़ेगा. करदाताओं के पैसों की बर्बादी किसी पार्टी को करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. पार्टी का मकसद सिर्फ चुनाव जीतना होता है. इसके अलावा उस राजनीतिक दल को किसी और बात की चिंता नहीं होती. अगर चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का सही तरह से इस्तेमाल करे या उसे अतिरिक्त शक्तियां कानून के जरिए दे दी जाएं, तो इन बातों पर लगाम लग सकती है.’
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वहीं याचिकाकर्ता की टिपण्णी पर चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया एनवी रमना ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि, ‘चुनाव के वक़्त यदि कोई पार्टी यह वादा करे कि वह चुनाव जीतने के बाद लोगों को सिंगापुर, हांगकांग या बैंकॉक ले जाएगी, तो क्या चुनाव आयोग को इसमें दखल नहीं देना चाहिए? चुनाव आयोग मामले में अपने हाथ खड़े नहीं कर सकता.’ CJI रमना ने आगे कहा कि, ‘इसके साथ ही हमें यह भी देखना होगा की नाव या साइकिल जैसी छोटी-छोटी चीजें दूरदराज के इलाकों में रह रहे लोगों के जीवन से सीधे जुड़ी हैं. इनसे उन्हें आजीविका कमाने या अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है. इसलिए इस बात पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि कौन सी सुविधाएं सरकार की तरफ से उपलब्ध कराना जरूरी है और क्या चीजें गैरजरूरी मुफ्तखोरी हैं.’
याचिकाकर्ता की टिपण्णी पर SC ने कहा कि, ‘आज देश में कोई भी राजनीतिक दल हो चाहे वो कांग्रेस हो या बीजेपी हो सभी दल मुफ्त की योजनाओं को बंद नहीं करना चाहते.’ वहीं इस पुरे मामले में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील और सांसद होने की हैसियत से कोर्ट की सहायता कर रहे कपिल सिब्बल ने कहा कि, ‘यह मसला वित्त आयोग पर छोड़ देना चाहिए वित्त आयोग राज्यों को फंड आवंटित करता है और अगर किसी राज्य का वित्तीय घाटा 3% से ऊपर है और वह लगातार पोस्ट की योजनाओं को चलाएं जा रहा है तो वित्त आयोग उसके फंड में कटौती कर सकता है.’ वहीं आम आदमी पार्टी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि, ‘मामले में कोर्ट की दखल का विरोध कर रहे हैं लोगों को सुविधाएं पहुंचाना सरकार का कर्तव्य होता है लेकिन अगर फिर भी सुप्रीम कोर्ट किसी कमेटी का गठन करना चाहता है उसमें राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी रखा जाए.’
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अभिषेक मनु सिंघवी ने आगे कहा कि, ‘मेरा व्यक्तिगत तौर पर ये मानना है कि आखिर कोई कमेटी यह कैसे तय कर सकती है कि फ्री क्या है क्या नहीं? मेरे हिसाब से तो कोर्ट को इसे सुनना ही नहीं चाहिए. जैसे कि हम सभी जानते हैं कि अनुछेद 19(2) के तहत चुनाव से पहले सभी को बोलने की आजादी है.’ वहीं कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि, ‘सबसे बड़ी समस्या यह है कि कोई साड़ी बांटता है, कोई टीवी लेकिन इसका बोझ टैक्स पेयर पर पड़ता है. सवाल यह है कि क्या कोर्ट इसे खामोशी से देखेगा?’ वहीं इस दौरान तमिलनाडु में सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों पर उठ रहे सवालों को लेकर भी CJI एनवी रमना ने अपनी प्रतिक्रिया दी.
तमिलनाडु के नेता लगातार सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई पर काफी बयानबाजी कर रहे है. चीफ जस्टिस ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई. उन्होंने मामले में कुछ कहने की कोशिश कर रहे तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके के वकील को रोक दिया. जस्टिस रमना ने सख्त लहजे में कहा, ‘मैं चीफ जस्टिस के पद पर होकर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. लेकिन आपके राज्य में ऐसा जताया जा रहा है जैसे सारी समझदारी एक ही पार्टी या एक ही व्यक्ति के पास है. वहां सुप्रीम कोर्ट के लिए बहुत कुछ कहा जा रहा है. ऐसा नहीं है कि हमारी आंख बंद है. हमें दिखाई नहीं दे रहा.’