Politalks.News/GoaElection. गोवा में विधानसभा (Goa Assembly Election 2022) के लिए बीती 14 फरवरी को मतदान हो चुका है. प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला EVM में कैद हो चुका है. अब सियासी गलियारों में चर्चा है कि क्या कांग्रेस 2002 और 2017 से सबक लेते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी.चिदंबरम (P.Chidambaram) को अहम जिम्मेदारी दी है? पार्टी नेतृत्व ने चिदंबरम को उनके कई समकालीन नेताओं के मुकाबले गंभीर समझा है और गोवा जैसे छोटे लेकिन अहम राज्य की जिम्मेदारी दी है. वहीं पी चिदंबरम भी जिम्मेदारी मिलने के बाद से राज्य में डेरा डाले रहे, साथ ही अपने ही हिसाब से पूरे चुनाव अभियान को चलाया. ऐसे में AICC के गलियारों में चर्चा है कि चिदंबरम ने जिस कायदे से पार्टी को गोवा में चुनाव लड़ाया है, अगर पार्टी जीतती है तो उसका एकमात्र श्रेय उन्हें ही जाएगा साथ ही आने वाले राज्यों में होने चुनाव और आम चुनाव में चिदंबरम के फॉर्मूलों (Chidambaram formula) को लागू किया जा सकता है. कुल मिलाकर कांग्रेस के चुनावी वॉर रुम में चिदंबरम की भूमिका (Chidambaram’s role in the election war room) बढ़ना तय माना जा रहा है.
आपको बता दें कि 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला था लेकिन कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. 40 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 21 सदस्यों की जरूरत थी और कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं. सरकार बनाने के लिए उसे महज चार विधायकों का समर्थन जुटाना था. जबकि बीजेपी को 13 सीटें मिली थीं और उसे आठ विधायक जुटाने थे. उस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह गोवा के प्रभारी थे. कांग्रेस से पहले बीजेपी ने जरूरी विधायकों का जुगाड़ कर सबको चौंका दिया था. इस पूरे घटनाक्रम के लिए दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार माना गया था. यह कहा गया था कि दिग्गी राजा ने गोवा में सरकार बनाने के लिए कोई गंभीरता ही नहीं दिखाई. उनकी गैरजिम्मेदारी की वजह से राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकी. उसके बाद दिग्विजय सिंह को प्रभारी पद से हटा दिया गया था.
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दूध से जलने के बाद कांग्रेस अब छाछ भी फूंक फूक कर पी रही है. कांग्रेस ने हर परिस्थिति को लेकर पहले ही तैयारी कर ली है. माना जा रहा है कि हो सकता है किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिले. 2017 की तरह सरकार बनाने का मौका हाथ से फिर न निकल जाए, इसके मद्देनजर कांग्रेस नेतृत्व ने इस बार अभी से ही पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम को ‘रणनीतिकार’ बनाकर गोवा में भेजा है
इसको लेकर सियासी चर्चा था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह व वित्त मंत्री पी चिदंबरम गोवा जैसे छोटे राज्य में कांग्रेस को चुनाव क्यों लड़ा रहे हैं? उसके उलट अपेक्षाकृत पंजाब जैसे बड़े राज्य में हरीश चौधरी और उत्तराखंड में देवेंद्र यादव को पार्टी ने प्रभारी बनाया है. लेकिन उत्तराखंड और पंजाब के प्रभारियों से ज्यादा गोवा के चुनाव प्रभारी पी चिदंबरम की चर्चा हो रही है. चिदंबरम गोवा चुनाव में जिस तरीके से सक्रिय राजनीति में उतरे है इसको लेकर चर्चा है. चिदंबरम ने गोवा में विधानसभा चुनाव की एक एक तैयारी खुद की है और कांग्रेस में उनकी तैयारियों, रणनीति और प्रचार की काफी तारीफ हो रही है. यह भी कहा जा रहा है कि अगर गोवा में कांग्रेस जीतती है तो उसका पूरा श्रेय चिदंबरम को मिलेगा और उनका कद बहुत बड़ा होगा.
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गोवा की राजनीति के जानकारों का कहना है कि, चिदंबरम ने गोवा में अब तक होने वाली कांग्रेस की राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया. चिदंबरम ने दलबदल करने वाले नेताओं को रोकने की बजाय पार्टी छोड़ कर जाने दिया. साथ ही यह प्रयास किया कि दलबदल करके पार्टी में आने वाले नेताओं को कम से कम टिकट दी जाए. टिकट के लिए तिकड़म कर रहे संदिग्ध निष्ठा वाले उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिले यह भी सुनिश्चित किया. माना जा रहा है इन प्रयासों से स्थानीय मतदाताओं के बीच अच्छा मैसेज गया है. इसके बाद चिदंबरम ने प्रचार के लिए संसाधन जुटाए और कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले पिछड़ने नहीं दिया.
AICC में चर्चा है कि तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव नहीं लड़े तो इसके पीछे भी चिदंबरम की रणनीति है. इससे पहले चिदंबरम में यह भी सुनिश्चित किया कि तृणमूल के साथ तालमेल की बात न हो. सियासी जानकारों का मानना है कि अनुभवी चिदंबरम ने गोवा में कांग्रेस को बहुत कायदे से चुनाव लड़ाया है. उनके चुनाव प्रबंधन की कांग्रेस में चर्चा हो रही है और अगर कांग्रेस जीतती है तो आगे के चुनावों में उनकी बड़ी भूमिका होगी.