Politalks.News/WestBengalElection. साल 2021 का सबसे बड़ा सवाल, किसका होगा बंगाल? इस सवाल का जवाब कुछ महीनों बाद सबके सामने आ जाएगा, लेकिन जिस राज्य में भी चुनाव होने वाले होते हैं वहां कुछ समय के लिए ही सही लेकिन सबसे बड़ा फायदा वहां की जनता का होता है. इसका बड़ा कारण है कि चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक पार्टियां जनता से किए वादों और सौगातों का पिटारा खोलती हैं. इसी कड़ी का हिस्सा है ममता की ‘माँ योजना’- ‘सस्ता भोजन, गरीब से यारी अब बंगाल की बारी’
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के स्लोगन मां, माटी और मानुष से मां शब्द लेकर इस योजना की शुरुआत की है. कोलकाता से शुरू हुई इस योजना में 16 कॉमन किचन होंगे. इस योजना के तहत गरीब तबके के लोगों को 5 रुपये में भरपेट खाना खिलाया जाएगा. इस थाली में 5 रुपये में 2 रोटी, चावल, दाल, सब्जी के साथ साथ अंडा करी भी दी जाएगी. इसके तहत कोलकाता के सभी 144 वार्डों में गरीबों को खाना खिलाया जाएगा. बताया जा रहा है कि प्रति व्यक्ति को चावल, दाल, सब्जी और अंडा करी उपलब्ध कराने में कम से कम 20 रुपये का खर्च है लेकिन लोगों को केवल 5 रुपये देना होगा और बाकी 15 रुपये की सब्सिडी सरकार वहन करेगी.
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आपको बता दें, अभी सिर्फ कोलकाता से इसकी शुरुआत की गई है, जिसे अन्य जिलों में भी लागू किया जा सकता है. कोलकाता की आबादी 1.49 करोड़ के आसपास है और पूरा शहर 144 वॉर्ड में बंटा हुआ है इसलिए हर इलाके के लोगों को 5 रुपये वाली थाली मिले इसके लिए कोलकाता में कुल 48 स्टोर खोले जाएंगे. दिन में एक से 2 बजे के बीच लोगों को मां थाली परोसी जाएगी, हांलाकि ये स्टोर पूरे दिन भर खुले रहेंगे. इसके लिए बंगाल के बजट में 100 करोड़ रुपये का ऐलान किया है, लेकिन सवाल ये भी है कि क्या सिर्फ 100 करोड़ के बजट से सबको सस्ती थाली खिलाई जा सकेगी.
यहां सबसे बड़ी बात सरकार की टाइमिंग पर है, बंगाल में अगले कुछ दिनों में चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी का आरोप है कि सिर्फ चुनाव फायदा लेने के लिए ममता बनर्जी मां थाली की शुरुआत की है. कोलकाता में कुल 51 सीट हैं. यहां बड़ी संख्या में ऐसी आबादी रहती है जो दिन में काम पर निकलने के बाद सीधे रात में ही घर आती है. दिन में उन्हें ढ़ाबों पर, होटलों में, सड़क किनारे रेहड़ियों पर महंगा खाना खाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. ऐसे में चुनाव से ठीक 2 महीने पहले तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच चल रहे घमासान के बीच मां थाली की शुरुआत करके दीदी ने एक मास्टर स्ट्रोक लगा दिया है.
आपको बता दें, ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस के लिए चुनाव प्रबंधन का काम प्रसिद्ध चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर देख रहे हैं, और दक्षिण से लेकर उत्तर तक, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर जहां-जहां गये हैं वहां-वहां उन्होंने इस तरह की योजना शुरू करने का आइडिया दिया है. लेकिन इस योजना की शुरूआत सबसे पहले तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने की थी. जिन्होंने सबसे पहले अपने राज्य में अम्मा किचन शुरू किया था.
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2017 में जब प्रशांत किशोर यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के रणनीतिकार थे तब सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था. उस समय तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने भी ऐलान किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वो अम्मा किचन के तर्ज पर ही समाजवादी किचन की शुरुआत करेंगे. चूंकि अगले दो महीने बाद पश्चिम बंगाल में चुनाव आने वाले हैं इसलिए ममता सरकार की योजना पर सवाल जरूर उठेंगे.
इस तरह की योजना का मुख्य उद्देश्य शहरी ग़रीबों को कम दाम पर पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना होता है. हालांकि कम्युनिटी किचन की परिकल्पना महात्मा गांधी ने आज से करीब 100 साल पहले ही की थी.
महात्मा गांधी मानते थे कि खाना बनाना सीखना, हमारे शिक्षा प्रणाली का हिस्सा होना चाहिये. दक्षिण अफ्रीका से वापस आने के बाद महात्मा गांधी जब पहली बार कोलकाता के शांति निकेतन गये तो उन्हें वहां के छात्रों के तौर-तरीके पसंद नहीं आये. उन्हें लगा कि छात्र पढ़ाई के साथ-साथ अपना काम भी ख़ुद करें. 10 मार्च 1915 को रवींद्र नाथ टैगोर की सहमति से महात्मा गांधी ने शांति निकेतन में सेल्फ़ हेल्प मूवमेंट की शुरुआत की. वहां कम्युनिटी किचन की शुरुआत हुई, जिसमें छात्र बारी-बारी से सबके लिए खाना बनाते थे.
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जयललिता ने की थी शुरुआत –
सबसे पहले 19 फरवरी साल 2013 में तमिलनाडु सरकार ने अम्मा उनावगम यानी की अम्मा कैंटीन की शुरुआत की थी. इस योजना के अंतर्गत राज्य के म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन सब्सिडाइज रेट पर पका हुआ भोजन देते हैं. तमिलनाडु के अम्मा कैंटीन में साउथ इंडियन खाना मिलता है. जिसमें 1 रुपये में इडली, 5 रुपये प्रति प्लेट के हिसाब से सांभर और चावल, 3 रुपये प्रति प्लेट के हिसाब से दही चावल मिलता है.
तमिलनाडु के बाद देश के कई राज्यों ने ये मॉडल अपनाया. राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, ओडिशा की सरकारों ने भी कम्युनिटी किचन की शुरुआत की.