सियासी ‘सवालों’ का सप्ताह, CDS का निधन-नागालैंड में निहत्थों पर गोलीबारी-मोदी सरकार का सरेंडर चर्चा में

सियासी गलियारों में चर्चा- क्या राम भरोसे है देश, देश की सेनाओं के 'सेनापति' की हादसे में दर्दनाक मौत, निहत्थे और निर्दोष 13 से ज्यादा लोगों पर सेना का अंधाधुंध गोली चलाना, पीएम मोदी का वोट और सत्ता के लिए किसानों के आगे शीर्षासन, यानी किसान आंदोलन की वापसी, लोगों के जेहन में सवाल उठने हैं लाजमी

सियासी 'सवालों' का सप्ताह
सियासी 'सवालों' का सप्ताह

Politalks.News/Delhi. बीते एक सप्ताह में देश में घटी तीन बड़ी घटनाओं ने सियासत और आदमी आदमी की सुरक्षा पर एक बार फिर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है. सबसे पहली और बड़ी सियासी घटना की बात करें तो अब तक की सबसे शक्तिशाली सरकार कही जाने वाली मोदी सरकार (Modi Goverment) का वोट खिसकने के डर से किसानों (Farmer Protest) के सामने शीर्षासन या फिर भूल सुधार. दूसरी और तीसरी घटना जो कि देश आम अवाम की सुरक्षा से जुड़ी हैं, कुन्नूर (Kunnoor) में हैलिकॉप्टर हादसे में भारत देश की सेना के सबसे बड़े अफसर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत (Bipin Rawat) सहित 13 लोगों की हुई मौत ने देश को अवाक कर दिया, तो वहीं नागालैंड  (Nagaland) में सेना की गोलियों से 13 से ज्यादा निर्दोष और निहत्थे लोगों को भूना जाना. ऐसे में देश की जनता दंग और परेशान है कि आखिर लगातार ऐसा क्यों हो रहा है?

वायुसेना के सबसे शक्तिशाली और विश्वसनीय हैलिकॉप्टर का यूंही गिरना नहीं उतरता गले
सबसे पहले बात करें जबरदस्त सुरक्षा घेरे में रहने वाले देश की सेना के सबसे बड़े और शक्तिशाली अफसर की दुखद मौत की. तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए एक हैलिकॉप्टर हादसे में भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और 11 जवानों सहित कुल 13लोगों की हुई मौत ने देश को अवाक कर दिया है. वहीं इस पर वायुसेना की तरफ से हादसे की जानकारी देते हुए सिर्फ इतना ही बताया गया कि जांच की जा रही है. CDS बिपिन रावत की मौत किन परिस्थितियों में हुई, उसको लेकर अभी कुछ भी साफ नहीं है.

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ऐसे में सोशल मीडिया पर कई तरह की चर्चाओं और आशंकाओं ने जन्म ले लिया है. अब इस हादसे की तुलना पुराने हादसों से की जा रही है. चीन, पाकिस्तान और अमेरिका जैसे देशों और हथियार लॉबी को इसके पीछे जिम्मेदार बताया जा रहा है. हालांकि CDS बिपिन रावत की मौत के पीछे का पूरा सच तो इसकी जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन जिन पॉलिटिकल परिस्थितियों और सुरक्षा हालात में उनकी मौत हुई है, लोगों के जेहन में सवाल उठने लाजमी हैं. वायुसेना के सबसे शक्तिशाली और विश्वसनीय हैलिकॉप्टर का यूंही गिरना लोगों के गले नहीं उतर रहा है. बीजेपी के दिगज्ज नेता और सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी तो इस हादसे की जांच सुप्रीम कोर्ट के जज के अंडर में करवाने की मांग भी कर चुके हैं.

सैनिकों की गोली से 13 निर्दोष व निहत्थे लोगों का मारा जाना
अर्धसैनिक बल के सैनिकों की गोलियों से नागालैंड में 13 निहत्थे आम लोगों का मरना पूरे इलाके में उग्र जनजातीय समूहों में आग सुलगाने जैसा है. दरअसल यह घटना बीती चार दिसंबर को तड़के लगभग 4.10 मिनट पर उस समय हुई, जब आठ ग्रामीण तिरु गांव की एक कोयला खदान में काम करने के बाद एक पिकअप ट्रक से घर लौट रहे थे. सुरक्षाबलों ने उनकी पहचान जानने का प्रयास किए बिना घात लगाकर उन्हें मार डाला. इनमें से छह की मौके पर ही मौत हो गई जबकि दो अन्य गंभीर रूप से घायल हैं. जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘सुरक्षाबलों द्वारा इन हत्याओं को छिपाने के संभावित प्रयास को देखते हुए ग्रामीणों और सुरक्षाबलों के बीच हिंसा शुरू हुई, नतीजतन गुस्साए ग्रामीणों ने विशेष सुरक्षाबलों के तीन वाहनों में आग लगा दी.’

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रिपोर्ट में कहा गया कि जो ग्रामीण गोलियों की आवाज सुनकर घटनास्थल पर पहुंचे थे, उन्हें एक तिरपाल के नीचे टाटा मोबाइल में शव मिले. इस दौरान सुरक्षाबलों ने ग्रामीणों पर गोलीबारी करनी शुरू कर दी, जिसमें सात से अधिक ग्रामीणों की मौत हुई.’ यहां तक कि प्रत्यक्षदर्शियों ने भी पुष्टि की है कि जैसे ही विशेष सुरक्षाबल घटनास्थल से असम की ओर भागे, उन्होंने अंधाधुंध गोलीबारी की. यहां तक कि रास्ते में आने वाले कोयला खदानों पर भी गोलीबारी की. रिपोर्ट में कहा गया, उस दिन कुल 13 नागरिकों की मौत हुई, 14 नागरिक गंभीर रूप से घायल हुए और आठ को हल्की चोटें आईं. इनमें से दो गंभीर रूप से घायलों को सुरक्षाबल ही असम की तरफ लेकर गए और अब डिब्रूगढ़ मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती हैं.

आपको बता दें, इससे पहले असम और मिजोरम की सीमा पर दोनों प्रदेशों की पुलिस और फिर लोगों द्वारा पुलिसजनों को मारने की जैसी घटनाएं भी हुईं हैं, इन सबको केवल हादसा नहीं माना जा सकता है, बल्कि वे लापरवाही और रामभरोसे वाली वारदातें हैं. असम के साथ कई राज्यों की सीमा के झगड़े निश्चित ही पुराने हैं लेकिन इन झगड़ों पर पुलिसजनों-नागरिकों का आपस में भिड़ना और घटना को चुपचाप आई-गई होने देना भविष्य के लिए बहुत घातक है.

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वोट के लिए मोदी सरकार का किसानों के आगे ‘शीर्षासन’
अब बात करें उस बड़ी सियासी घटना की जिसने मोदी सरकार पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. एक साल से भी ज्यादा समय से तीनों कृषि कानूनों को लागू करने को लेकर जिस पर बात पर शक्तिशाली मोदी सरकार पग डाटे खड़ी थी. उस पर अब अचानक बैकफुट पर आना, आंदोलन समाप्त करवाने के लिए सभी शर्तों को मान लेना और इसके लिए देश से माफी भी मांगना किसी से समझ नहीं आया. मोदी सरकार के कृषि कानून के विरोध में एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसान आंदोलन कर रहे थे. ऐसे में अगले साल फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए चिंता बढ़ गई थी. चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में बीजेपी के लिए किसान आंदोलन एक बड़ी चुनौती बन गया था. किसान आंदोलन के चेहरा बन चुके राकेश टिकैत खुलकर बीजेपी को वोट से चोट देने का ऐलान कर रहे थे.

किसान आंदोलन के चलते पंजाब, उत्तराखंड और पश्चिमी यूपी के इलाके में बीजेपी का समीकरण पूरी तरह से गड़बड़ाया नजर आ रहा था. कृषि कानून के खिलाफ पंजाब से ही किसान आंदोलन शुरू हुआ था, जिसके चलते बीजेपी नेताओं को गांव में एंट्री तक नहीं मिल पा रही थी. यहां आपको बता दें, पंजाब की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. पंजाब में कृषि और किसान ऐसे अहम मुद्दे हैं कि कोई भी राजनीतिक दल इन्हें नजरअंदाज कर अपना वजूद कायम रखने की कल्पना भी नहीं कर सकता है. ऐसे में वोट के लिए महाशक्तिशाली सरकार का शीर्षासन खुद पार्टी के सिपहसालारों के समझ नहीं आ रहा. यहां तक कि कृषि कानूनों को मास्टरस्ट्रोक बताने वाले बीजेपी पार्टी के प्रखर प्रवक्ता अब इन कानूनों को हटाने को भी मास्टरस्ट्रोक बता रहे हैं.

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तो इस एक सप्ताह हुई इन तीन बड़ी घटनाओं में सवालिया निशान हैं. कैसे देश की सबसे शक्तिशाली सरकार किसानों के सामने झुक गई? कैसे आम आदमियों पर सैनिकों ने गोलियां बरसा दीं? कैसे देश की सेना से प्रधान सेनापति की एक हादसे में मौत हो गई? तीनों की घटनाएं आम लोगों के गले नहीं उतर रही हैं. जिसके चलते सवालिया सप्ताह ने सियासी गलियारों में कई सवाल छोड़ दिए हैं. भारत की व्यवस्था, सत्ता का बाहुबल और सर्वाधिक संगठित-सुरक्षित संस्था सेना की दुरुस्ती इस सप्ताह विचारणीय है.

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