Politalks.News/MadhyaPradeshPolitics. सोमवार को राजधानी भोपाल में कमलनाथ के आवास पर कांग्रेस नेताओं की बैठक में एक अहम फैसला लिया गया. जिसके तहत कांग्रेस ने 2023 में होने वाला विधानसभा चुनाव भी कमलनाथ के नेतृत्व में लड़ने की मुहर लगी थी. साथ ही कांग्रेस नेताओं की इस बैठक में आगामी विधानसभा चुनाव में जीत के लिए रणनीति भी बनाई गई. 2023 विधानसभा चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में लड़ने के कांग्रेस नेताओं के फैसले पर अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तंज कसा है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि, ‘कांग्रेस के पास ना दिशा है, ना नीति है और ना ही नेतृत्व. कांग्रेस टुकड़ों में बिखर रही है इसलिए अलग ढपली और अलग राग उनके निकल रहे हैं.’
सोमवार को मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के आवास पर हुई बैठक में कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं ने एक स्वर में आगामी चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में लड़ने की बात कही थी. कांग्रेस नेताओं के इस फैसले को लेकर अब बीजेपी नेताओं ने भी मोर्चा खोल दिया है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारतीय जनता पार्टी के 42वें स्थापना दिवस कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि, ‘कांग्रेस अंतर्विरोधों से जूझ रही है. कांग्रेस के पास न दिशा है, न गति है. न नेता है, न ही नीति है और न नेतृत्व है. कई बार वो भारतीय जनता पार्टी की नकल करने की कोशिश करती है. लेकिन अंत में उनकी पार्टी के अंदर से ही विरोध के स्वर उठाने लग जाते हैं. कांग्रेस बिखर रही है. कांग्रेस का कुनबा धीरे धीरे टूट रहा है, इसलिए अलग ढपली और अलग राग उनके निकल रहे हैं.’
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अक्सर अपने बयानों और फैसलों को लेकर चर्चा में रहने वाले प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘उनको संन्यास की उम्र में सेहरा बांध दिया. आप देखो पूर्व मुख्यमंत्री वे ही हैं. कांग्रेस के अध्यक्ष वे ही हैं. नेता प्रतिपक्ष भी वे ही हैं. भावी मुख्यमंत्री भी कांग्रेस की तरफ से वे ही हैं. जब चुनाव होगा तब कमलनाथ जी 77 साल के होंगे. इससे आपको कांग्रेस का भविष्य समझ में आएगा कि किसके नेतृत्व में सड़क पर लड़ने का संकल्प लिया जा रहा है.’
वहीं कांग्रेस नेताओं की इस बैठक को लेकर प्रदेश भाजपा मंत्री रजनीश अग्रवाल ने कहा कि, ‘कांग्रेस की बैठक बहाना थी असल में कमलनाथ को अपनी कुर्सी बचानी थी. वह तमाम नेताओं से अपनी कुर्सी पर मोहर लगवाना चाहते थे. कमलनाथ, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नेतृत्व को चेतावनी भी देना चाहते थे. जो निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिए जाते थे, उन्होंने उस फैसले को यहां पर लेने का काम किया है. यह तय था कि वह नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’
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कांग्रेस नेताओं के इस फैसले को लेकर सियासी गलियारों में एक अलग ही चर्चा छिड़ी हुई है. सियासी जानकारों का कहना है कि कमलनाथ के पास सत्ता के गलियारों का अनुभव है और साथ ही वो जाति के तौर पर न्यूट्रल फेस. कमलनाथ के अंदर चुनावों में प्रदेश कांग्रेस के लिए संसाधन जुटाने की क्षमता. पुराने उनके अनुभव के अनुसार कमलनाथ का आर्थिक मैनेजमेंट भी पार्टी के अन्य नेताओं की तुलना में मजबूत है. इसके अलावा उन्हें पूर्व CM दिग्विजय सिंह का भी रणनीतिक तौर पर समर्थन हासिल है. मध्यप्रदेश ही नहीं कमलनाथ राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस के सीनियर नेताओं में से एक हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि प्रदेश में भाजपा को सबसे कठिन चुनौती कमलनाथ ही दे सकते हैं.