एक तरफ बिहार विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, दूसरी तरफ कांग्रेस पीएम मोदी और उनकी मां को सार्वजनिक मंच पर गाली देने के मामले में घिरी हुई है. इसी बीच पूर्व गृहमंत्री और सांसद रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.चिदंबरम ने एक बयान दिया, जिसके बाद न केवल कांग्रेस बैकफुट पर है, बल्कि एनडीए को एक बार फिर पार्टी के ही नेताओं ने बैठे बिठाए एक मुद्दा दे दिया, जिससे चारों ओर सियासी हड़कंप मच गया है. इतना ही नहीं, बीजेपी के नेताओं ने भी कांग्रेस को आड़े हाथ लिया है.
दरअसल, मनमोहन सरकार में गृहमंत्री रहे पी. चिदंबरम ने 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के 17 साल बाद खुलासा किया है कि 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के बाद उनके मन में भी बदला लेने का विचार आया था, लेकिन उस वक्त की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी सैन्य कार्रवाई नहीं करने का फैसला लिया. यह फैसला अंतरराष्ट्रीय दबाव और विदेश मंत्रालय के रुख के कारण लिया गया था.
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चिदंबरम ने मीडिया को बताया, ‘पूरी दुनिया का दबाव था. हमें युद्ध नहीं करने के लिए समझाया जा रहा था. कोई आधिकारिक राज उजागर किए बिना मैं मानता हूं कि मेरे मन में प्रतिशोध की भावना आई थी. पीएम ने तो इस पर चर्चा हमले के दौरान ही कर ली थी. मैंने जवाबी कार्रवाई पर पीएम और अन्य जिम्मेदार लोगों से चर्चा की थी. तब तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री दिल्ली आईं और उन्होंने कहा- कृपया एक्शन नहीं लीजिएगा. विदेश मंत्रालय का मानना था कि सीधा हमला नहीं करना चाहिए. इसके बाद सरकार ने कार्रवाई नहीं करने का फैसला लिया.’
बीजेपी ने हाथों हाथ भुनाया मौका
भारतीय जनता पार्टी ने चिदंबरम द्वारा दिए इस खुले अवसर को हाथों हाथ लिया और कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया है. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोशल मीडिया पर इस इंटरव्यू की क्लिप शेयर की है. उन्होंने लिखा, ‘पूर्व गृह मंत्री ने मान लिया है कि देश पहले से जानता था कि मुंबई हमलों को विदेशी ताकतों के दबाव के चलते सही तरीके से हैंडिल नहीं किया गया.’
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वहीं पार्टी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने आरोप लगाया कि चिदंबरम पहले तो मुंबई हमलों के बाद गृह मंत्री का पद संभालने को लेकर हिचकिचा रहे थे, वे पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई चाहते थे, लेकिन बाकी लोग भारी पड़ गए.
आतंकी हमले में 175 की गयी थी जान
बता दें कि 26/11 मुंबई आतंकी हमले में 175 लोगों की जान गई थी. 60 घंटों तक 10 आतंकियों ने मुंबई की सड़कों, ताज होटल, सीएसटी रेलवे स्टेशन, नरीमन हाउस और कामा हॉस्पिटल को अंधाधुंध फायरिंग करते हुए निशाना बनाया था. 3 मई 2010 को कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अजमल कसाब को 26/11 हमले में दोषी पाया और 6 मई को फांसी की सजा सुनाई. 2011 में मामला बॉम्बे हाईकोर्ट गया. हाईकोर्ट ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने भी कसाब को राहत नहीं दी और फांसी की सजा पर मुहर लगा दी. कसाब ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास दया याचिका भेजी, जिसे 5 नवंबर को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया. 21 नवंबर, 2012 को पुणे के यरवडा जेल में कसाब को फांसी दी गयी. अब देखना ये है कि पी.चिदंबरम का दिया ये विस्पोटक बयान बिहार चुनाव में कांग्रेस पर कितना भारी पड़ता है.



























