Politalks.News/MadhyaPradesh/JyotiradityaScindia. मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव की घोषणा के बाद नगरीय निकाय चुनाव की तारीखों के एलान के बाद से ही प्रदेश की सियासत गर्माई हुई है. चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल करने का जहां आज आखिरी दिन था, तो वहीं प्रदेश की दो प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी ने भी अपने अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी जिसके बाद से यहाँ बगावती सुर दिखाई देने लगे हैं. इसका बड़ा कारण भाजपा को विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद प्रदेश की सत्ता में वापस लाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की इन नगर निकाय चुनाव में एक नहीं चली है. यानी कि प्रदेश के 16 नगर निगमों में सिंधिया के करीबी में से किसी को भी महापोर प्रत्याशी नहीं बनाया गया. यही कारण रहा कि नामांकन के आखिरी दिन सिंधिया के गढ़ गुना से सिंधिया समर्थक नेता अमित सोनी को टिकट न मिलने पर वो कांग्रेस में शामिल हो गए.
मध्यप्रदेश में साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में शिकस्त खाने के बाद सत्ता से बाहर हुई भाजपा महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के बलबूते पर एक बार फिर सत्ता में आ गई. भाजपा ने सिंधिया को सत्ता का स्वाद चखाने का इनाम भी दिया और धीरे धीरे सिंधिया का कद बीजेपी में लगातार बढ़ता गया. लेकिन नगरीय निकाय चुनाव में बाजी पलटती हुई दिखाई दे रही है. नगरीय निकाय चुनाव से पहले तक सिंधिया ने बीजेपी से जो मांगा, वो उनकों मिलता गया. शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके समर्थकों को मंत्रिमंडल में मनचाही जगह मिली. इसके साथ ही उनके समर्थकों को निगम मंडलों में एडजस्ट कराया, लेकिन अब ऐसा कुछ भी होता दिखाई नहीं दे रहा है. अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा चाहती है कि वो अपने बलबूते पर आगामी चुनाव लड़े ताकि पार्टी नेताओं को उसका लाभ मिल सके. इसी का एक शिगूफा बीजेपी ने नगरीय निकाय चुनाव के जरिए छोड़ दिया है.
भाजपा आलाकमान ने मध्यप्रदेश के 16 नगर निगमों में सिंधिया के करीबी में से किसी को भी महापोर प्रत्याशी नहीं बनाया गया. हालांकि ग्वालियर चंबल में सिंधिया अपना दबदबा कायम रखना चाहते थे, इसी वजह से उन्होंने पहले माया सिंह का नाम सामने रखा. फिर पार्टी का क्राइटेरिया आड़े आया तो उन्होंने समीक्षा गुप्ता का नाम रख दिया, लेकिन पार्टी ने उसे भी नकार दिया. वहीं ग्वालियर में भी महापौर उम्मीदवार के लिए तोमर के करीबी को टिकट दिया गया. इसका मतलब साफ़ है कि अब भाजपा में धीरे धीरे सिंधिया की अनसुनी की जा रही रही है. इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि, ‘सुमन शर्मा के नाम पर ज्योतिरादित्य सिंधिया सहमत नहीं थे, लेकिन पार्टी के बाकी दिग्गज एक साथ तोमर के समर्थन में खड़े हो गए और बाजी नरेंद्र सिंह तोमर ले गए सिंधिया को मनाने के लिए केंद्रीय संगठन को आगे आना पड़ा और उनकी भी सहमति लेकर सुमन शर्मा को ग्वालियर महापौर के लिए प्रत्याशी बनाया गया. ऐसे में काफी मशक्कत के बाद ग्वालियर महापोर प्रत्याशी का एलान चार दिन बाद हो पाया.
इस पुरे घटना क्रम को लेकर बीजेपी ने ये तर्क दिया कि जिस तरह से भोपाल इंदौर और सागर में स्थानीय विधायकों की सहमति से नाम तय किया, उसी रणनीति के तहत ग्वालियर में भी काम किया गया. वहीं ग्वालियर में अपना महापौर प्रत्याशी ना खड़ा करवाने के पीछे सिंधिया के धुर विरोधी रहे जय भान सिंह पवैया का भी नाम सामने आ रहा है. पवैया ने तोमर का समर्थन किया, वहीं विवेक शेजवलकर भी नरेंद्र सिंह तोमर के साथ दिखे. हालांकि सिंधिया के साथ उनके स्थानीय नेता और बेहद करीबी प्रद्युम्न सिंह तोमर रहे. हालांकि सूत्रों की माने तो ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी के इस फैसले से कुछ नाराज जरूर दिखाई दिए. क्यों कि अपने एक भी समर्थक को टिकट ना दिलाये जाने के कारण उनके समर्थकों में काफी रोष है. यही कारण रहा कि सिंधिया के गढ़ गुना से उनके एक समर्थक ने कांग्रेस का दामन थाम लिया.
वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया की कथित अनदेखी को कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता केके मिश्रा ने तंज कसते हुए कहा कि, ‘टाइगर को उसके कोर एरिया में ही घेर लिया अब दहाड़ खत्म हुई. भोपाल से दिल्ली तक मिमिया रहे हैं. मध्यप्रदेश के 16 इलाकों में टाइगर का आतंक पूरी तरह से समाप्त हो गया है. बता दें कि मुरैना, इंदौर, सागर में सिंधिया और उनके समर्थकों के समीकरण थे. आपको बता दें कि, ‘महापौर प्रत्याशियों के जहां तक टिकट का सवाल है तो सबसे ज्यादा स्थानीय विधायकों का पलड़ा भारी रहा. महापौर प्रत्याशी का टिकट फाइनल करने में उनकी ही चली लेकिन सिंधिया की यहां एक ना चली.
हालांकि गुना जिले के प्रभारी मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर और पंचायत मंत्री महेंद्रसिंह सिसोदिया, सांसद केपी यादव, जिला प्रभारी संजीव कांकर, विधायक गोपीलाल जाटव, जिलाध्यक्ष गजेंद्र सिकरवार सहित पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह सलूजा की दो दिन तक नगरीय निकाय गुना चुनाव में टिकट वितरण को लेकर साढ़े नौ घंटे तक बैठकों में मंथन हुआ, लेकिन इसमें 37 फीसद टिकट सिंधिया गुट के हुए हैं. जिसकी वजह से भाजपा में अंसतोष व्याप्त हो गया है. अब भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं की अनदेखी को लेकर विरोध के सुर तेज हो गए हैं. वहीं गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी रहे अमित सोनी को टिकट न मिलने से वे बागी हो गए. सोनी ने पार्टी से बगावत कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया. अमित सोनी पूर्व में भी युवा कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं. सियासी घटनाक्रम के तहत सोनी सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे. अमित सोनी गुना नगरपालिका में पार्षद पद के लिए दावेदारी कर रहे थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाया. जिसके बाद वे अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए.
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वहीं टिकट ना मिलने पर एक बीजेपी नेता ने तो आत्मदाह का भी प्रयास किया. देवास में पार्षद का टिकट नहीं मिलने से नाराज भाजपा कार्यकर्ता भोजराज सिंह जादौन ने भाजपा कार्यालय में अपना पक्ष रखने के बाद आत्मदाह का प्रयास किया. हालांकि जैसे ही उन्होंने आत्मदाह के लिए अपने शरीर पर केरोदिन डाला और आग लगाने लगे तो उससे पहले ही वहां मौजूद उनके साथियों ने उन्हें आग लगाने से पहले ही पकड़ लिया. वार्ड न 25 के निवासी भोजराज सिंह जादौन ने अपने लिए टिकट मांगा था, लेकिन वहां वार्ड के व्यक्ति को टिकट नहीं देते हुए पार्टी ने बाहरी प्रत्याशी को टिकट दे दिया. जिसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया. बता दें कि मध्यप्रदेश में दो चरणों में नगरीय निकाय चुनाव होने हैं. पहला चरण 6 जुलाई और दूसरा चरण 13 जुलाई को होगा. पहले चरण के नतीजे 17 जुलाई और दूसरे चरण के नतीजे 18 जुलाई को घोषित किए जाएंगे.