पॉलिटॉकस ब्यूरो. केंद्र में सत्ताधारी एनडीए की वापसी निश्चित तौर पर बीजेपी और नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के लिए काबिलेतारीफ सफलता की निशानी है लेकिन राज्यों में सिकुड़ते जा रहे पद चिन्ह निश्चित तौर पर संगठन के भविष्य के लिए अच्छी खबर नहीं है. नजदीकी से गौर किया जाए तो पिछले दो सालों में देश की आंतरिक राजनीति में भाजपा और एनडीए शासित प्रदेशों की संख्या में 31 फीसदी की गिरावट आई है. लगातार बढ़ती बेरोजगारी, मंदी और गिरती जीडीपी दर इसके प्रमुख कारण हैं. राजनीति की दृष्टि से देश में भाजपा शासित राज्यों की संख्या में गिरावट का दौर तो लगातार जारी रहा (No More BJP) लेकिन हाल में महाराष्ट्र (Maharashtra) और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव और यहां बनी सियासी परिस्थितियों ने इस बात को हाईलाइट कर दिया.
हरियाणा (Haryana) में तो भाजपा ने जैसे तैसे जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ मिलकर सरकार बना ली लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ उनकी दोस्ती नहीं चल पाई और यहां सरकार बन गई शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस यानि महाविकास अघाडी गठबंधन की. देश में एक के बाद एक राज्यों पर भाजपा का विजयी रथ जैसे ही महाराष्ट्र में विपक्ष ने रोका, वैसे ही संगठन के देश के नक्शे पर कम होने आंकड़ों पर सबकी निगाह गढ़ गई. (No More BJP)
आंकड़ों पर एक नजर डालें तो दिसम्बर, 2017 में देश में भाजपा और एनडीए (NDA) शासित प्रदेशों का हिस्सा 71 फीसदी था. इनमें या तो भाजपा या पार्टी की समर्थन सरकारें थी. अब दो साल बाद हालात ये हैं कि ये संख्या घटकर 40 फीसदी हो गई है. हरियाणा और बिहार में भी केवल समर्थन वाली सरकारें विराजमान हैं. वहीं कर्नाटक में सरकार अधरझूल में रखी है. वहां उप चुनावों में अगर कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती है और एचडी कुमारस्वामी फिर से साथ आ जाते हैं तो ये राज्य भी हाथ से निकल जाएगा. पहले भी ये राज्य बीजेपी के हाथों से फिसल चुका है जब येदियुरप्पा ने तीन दिन सरकार चलाने के बाद बहुमत के अभाव में इस्तीफा दे दिया था. (No More BJP)
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आने वाले समय में ये संख्या और कम हो सकती है, ऐसी संभावना जताई जा रही है. झारखंड (Jharkhand) में विधानसभा चुनाव शुरु हो चुके हैं लेकिन यहां पिछली सरकार में तीनों सहयोगी पार्टियां संगठन से नाता तोड़ अलग चुनाव मैदान में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी हैं. झारखंड विकास मोर्चा, आजसू और लोजपा का अब बीजेपी और प्रदेश के सीएम रघुबर दास से कोई संबंध नहीं है. चुनाव के बाद अगर सरकार बनाने के लिए ये साथ आ जाएं तो बात अलग है. झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का एलायंस है. वहीं बसपा और जेडीयू भी चुनावी दंगल में हुंकार भर रहे हैं. ऐसी राजनीति परिस्थितियों में झारखंड में त्रिशंकु सरकार बनने के कयास ज्यादा लग रहे हैं. अगर ऐसा होता है तो यहां भी महाराष्ट्र जैसी स्थितियां पैदा हो जाएंगी जिससे भाजपा की जमकर किरकिरी हुई थी.
महाराष्ट्र की राजनीति ने विपक्ष को ये भी भलीभांति समझा दिया है कि अगर राजनीतिक पार्टियां एकजूट हो जाएं तो भाजपा को उसी के खेल में परास्त किया जा सकता है. बता दें, हरियाणा, महाराष्ट्र और अब झारखंड में भी संगठन के आलाकमान ने टिकट वितरण से लेकर सभी तरह के राजनीतिक निर्णयों को मुख्यमंत्रियों के हाथों में संभला दिया था. दो राज्यों में इसका खामियाजा सत्तारूढ़ सरकारें भुगत चुकी हैं. (No More BJP)
आने वाले समय में दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. राजधानी दिल्ली में जिस तरह का माहौल चल रहा है, वहां वर्तमान मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का सत्ता में लौटना पक्का माना जा रहा है. पिछले 5 सालों में केजरीवाल ने बयानबाजी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाने साधने की जगह स्थानीय राजनीति पर ध्यान देना बेहतर समझा और दिल्ली की जनता इसका इनाम उन्हें आगामी विधानसभा चुनावों में दे सकती है.
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बात करें बिहार की तो यहां मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पलड़ा इस बार भी भारी है लेकिन राजद इस बार तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस का एलाइंस पक्का है. ऐसे में वहां महागठबंधन फिर से बन सकता है. ऐसे में नीतीश कुमार की मुश्किलें थोड़ी सी बढ़ सकती हैं. हालांकि एनडीए को दोनों राज्यों में बन रही संभावित स्थितियों से कोई खास असर नहीं पड़ेगा लेकिन इस राज्यों के नतीजें अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों के परिणामों पर अपनी छाप जरूर छोड़ जाएंगे.
राज्यों में लगातार सत्ता खोती बीजेपी (No More BJP) के लिए देश की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) का ग्राफ लगातार गिरना, बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई, मंदी और लचर कानून व्यवस्था भी बड़ी समस्या हैं जो आने वाले वक्त में और भी भयावह हो सकती है. जीडीपी का 8 फीसदी से गिरकर 4.5 फीसदी आ जाने से देश की जनता में एक बड़ा मिथक टूट चुका है कि मोदी के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था सुरक्षित हाथों में है. हाल में देश के बड़े उद्योगपति राहुल बजाज ने जिस तरह खुलकर केंद्र सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना की, उससे ये मुद्दा पहले से कहीं अधिक गरम हो चुका है.
हालांकि केंद्र सरकार और फायनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण सहित अन्य मंत्री इस बात को आंख बंद कर झुटला रहे हैं लेकिन सच आखिर सच है. देश में लगातार बढ़ रही बेरोजगार युवाओं की भीड़ हाल-ए-बयां कर रही है. बड़े बड़े कॉरपोरेट फुटपाथ पर आ चुके हैं और वोडाफोन-आइडिया जैसी विदेशी कंपनियां अपना कारोबार समेटने की तैयारी में है. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने भी सत्तापक्ष पर ये कहकर निशाना साध दिया कि अर्थव्यवस्था की यही हालात रही तो जल्दी ही जीडीपी दर 2 फीसदी तक आ सकती है.
देश में पनती इन परिस्थितियों और अनवरत राज्यों के हाथों से फिसलने से भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष अमित शाह की बड़े रणनीतिकार और चाणक्य वाली छवि भी धूमिल हुई है. (No More BJP) महाराष्ट्र में सरकार बनाने के जो भी अनैतिक हथकंडे अपनाए गए, उससे भी पार्टी कमान की थू थू हुई है. हालांकि पार्टी ने इसका पूरा दोष अजित पवार पर मढ़ दिया लेकिन सच जनता की आंखों में रचा बसा है. वहीं पश्चिम बंगाल में तीन सीटों पर हुए उप चुनावों में सभी सीटों पर ममता बनर्जी के कब्जा जमाने से प्रतीत हो रहा है कि भाजपा वहां लोकसभा में बनाया अपना वर्चस्व खो रही है.
गोवा और कर्नाटक की स्थितियां करीब करीब एक जैसी हैं जहां कांग्रेस के कई विधायक टूटकर भाजपा में शामिल हो गए. दोनों राज्यों में खरीद फरोख्त के हालातों से इनकार किया जाना मुकिश्ल है. कर्नाटक में तो सरकार तक गिर गई और भाजपा सरकार कायम हो गई. वहीं गोवा में कांग्रेस के 15 में से 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए.
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राजनीति में इस तरह की अनैतिक घटनाक्रम और देश की बिगड़ती जा रही आर्थिक दशा के लिए सीधे तौर पर केंद्र, पीएम मोदी और भाजपा आलाकमान को जिम्मेदार माना जा रहा है. (No More BJP) एक तरह से कहा जाए तो भाजपा धीरे धीरे उसी ढलान वाले रास्ते पर आगे बढ़ती जा रही है जिस रास्ते पर वर्तमान में अधमरी हालत में कांग्रेस चल रही है. अगर अधिक समय तक ऐसा चलता रहा तो भाजपा के लिए हिलोले खा रहे समन्दर के बीच से अपने जहाज को तर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा.