Politalks.News/PunjabPolitics. पंजाब में कांग्रेस की कलह पर जो दिखाया जा रहा है उसे सच मानने वालों के लिए ये खबर चौंकाने वाली है. पटियाला के बूढे ‘महाराजा‘ का भाजपा की मोदी औऱ शाह की राजनीति का औजार बनना चौंकाने वाला नहीं है. भाजपा ने गुजरे सप्ताह अमरिंदर सिंह की नाराजगी को इस तरह भुनाया और भाजपा में शामिल भी नहीं किया. पिछले एक हफ्ते से चैनलों पर छाई रही भाजपा में अमरिंदर सिंह के शामिल होने की खबर. मीडिया ने साथ ही ये भी जमकर चलाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कैप्टन अमित शाह और अजित डोवाल को पंजाब की ऐसी रियलिटी बता दे रहे हैं कि केंद्र सरकार के लिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार बने.
भाजपा का कांग्रेस और विपक्ष पर ‘मीडिया प्रहार‘
मतलब पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन और अमरिंदर सिंह के चेहरे की ताकत और कांग्रेस की बरबादी से आगामी चुनाव में भाजपा की बल्ले-बल्ले. इसके अलावा यह भी माहौल बनाया गया कि अमरिंदर सिंह एक अराजनैतिक संगठन बना कर किसानों के हित में बात कर, मोदी सरकार से आंदोलनकारी किसानों का समझौता करवाएंगे. कैप्टन मोदी सरकार को किसान आंदोलन से ऊबार देंगे. तो हल्ला यह भी हुआ कि देखो राहुल गांधी की कमान में कांग्रेस की कैसी बरबादी हो रही है! कहां है कांग्रेस और विपक्ष, अपना घर तो संभाल नहीं पा रहे है और आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को टक्कर देंगे?
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किसान आंदोलन के बाद ‘सुलगे’ हुए हैं सिख!
भाजपा के द्वारा ऐसा वैक्यूम क्रिएट किया गया कि, उधर पटियाला के महाराजा का अपमान किया गया. कांग्रेस को संभाल नहीं पा रहे राहुल और प्रियंका. पंजाब में अब कांग्रेस डूब रही है. जबकि रियलिटी क्या है? क्या अमरिंदर सिंह इतने नासमझ होंगे जो पंजाब के सिखों में वे नरेंद्र मोदी की मार्केटिंग करने की सोचें? वे भाजपा का चेहरा बने? सत्य जान लें कि, आज पंजाब का बहुसंख्यक सिख, वहां किसानों का घर-घर मोदी सरकार से नफरत करते हुए है. किसान आंदोलन के बाद मोदी सरकार और भाजपा से देश-विदेश के अधिकांश सिख बुरी तरह सुलगे हुए हैं. ऐसी मनोदशा के बीच ‘कैप्टन’ कैसे अपने धर्मं, समुदाय की निगाहों में भाजपा की गोदी में बैठने की गलती क्यों करेंगे?
कैप्टन के चेहरे पर नहीं मिलेगी दो से ज्यादा सीट!
भाजपा की इस ‘मीडिया राजनीति’ के बाद पंजाब या दुनिया भर के सियासी सिखों में अब भी अमरिंदर सिंह की हैसियत दहाड़ते सिक्ख की नहीं हैं बल्कि गुजराती अडानी-अंबानी जोड़ी की जैसी हो गई है. यदि कैप्टन अकेले पार्टी बना कर या भाजपा का चेहरा बन कर पंजाब में चुनाव लड़े तो दो-तीन सीटें भी नहीं मिलेगी. अमरिंदर सिंह को अंदाज नहीं है कि भाजपा के हाथों (झांसों) में खेल कर जीवन भर की अपनी सिख राजनीति की बड़ी किताब को व्यास नदी में बहा डाला है. अमरिंदरसिंह का पंजाब में अब जीरो मतलब हो गया है.
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महाराजा को हटाना चन्नी को कमान देना कांग्रेस का मास्टरस्ट्रोक!
पर नरेन्द्र मोदी-अमित शाह, भाजपा की आईटी सेल के इस कमाल को मानना होगा जो पंजाब में जीरो हैसियत बनने के बाद भी अमरिंदर सिंह के हल्ले ने पूरे देश में वापस चर्चा बनवा डाली कि राहुल गांधी ‘पप्पू’ और कांग्रेस अपने हाथों खुद अपना सत्यानाश करने पर तुली हुई. अमरिंदरसिंह और नवजोतसिंह सिद्धू के दंगल में लोगों ने इस असलियत पर ध्यान ही नहीं दिया कि अमरिंदरसिंह जैसे महाराजा को हटाने का राहुल गांधी का साहस कैसा भारी है और फिर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने से अकाली-बसपा और आप पार्टी के मुकाबले बहुमत वाले दलित, सिक्ख वोटों की राजनीति में कांग्रेस का कैसा जंप हुआ है.
चुनाव से पहले विपक्ष और कांग्रेस की हवा खराब करने में कामयाब रही भाजपा!
पंजाब में कांग्रेस की ‘कलह’ को मोदी-शाह द्वारा भुनाने की रणनीति का मकसद पंजाब नहीं है बल्कि पूरे देश में, खासकर चुनाव वाले आगामी राज्यों में विपक्ष की हवा बिगाड़ना है. एक तो कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता गोवा से लेकर उत्तराखंड, त्रिपुरा सभी जगहों पर कंफ्यूज्ड हों, इसके अलावा बाकि पार्टियों में राहुल गांधी और कांग्रेस का ग्राफ डाउन रहे. आप लिख कर रख लीजिए अभी तो भाजपा के तरकश में कई तीर हैं. आने वाले दिनों में अखिलेश बनाम शिवपालसिंह, तृणमूल बनाम कांग्रेस, हरीश रावत बनाम नए नेतृत्व जैसे मुद्दे और बनेंगे खत्म भी होंगे. ताकि विपक्ष में हिम्मत न बने, विपक्ष एकजुट ना हो पाए जिससे मोदी सरकार के खिलाफ कोई भी केंपेन खड़ा ना हो.
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‘पंजाब में अब जीरो, कैप्टन कितनी भी कसमें खाएं’
उस नाते राजनीति की ठोस हकीकत के बीच मीडिया, सोशल मीडिया द्वारा बनाए गए माहौल पर नजर रखिए. इस हल्ले का अधिक अर्थ निकालने की जरूरत नहीं है. अमरिंदर सिंह पार्टी बनाए या किसान संगठन या कांग्रेस को खत्म करने की कसम खाए, वे पंजाब में अब जीरो हो गए हैं. उनका वहीं मतलब है जो भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, शांताकुमार का है या कांग्रेस में गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा आदि कथित दिग्गज कांग्रेसियों का है. यानि अब कैप्टन पंजाब की राजनीति में अप्रासंगिक हो गए हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो भाजपा तामझाम के साथ कैप्टन को पंजाब में चेहरा बना चुकी होती.