Politalks.News/Bihar Election. आज जो चर्चा करने जा रहे हैं वह एक ऐसी सच्चाई है जिसमें अधिकांश राजनीतिक दलों की एक विचारधारा नजर आती है. बिहार विधानसभा चुनाव जोरों पर हैं, ऐसे में अपराधियों और दागियों की राजनीति में घुसपैठ की याद ताजा हो जाती है. बिहार में लोकसभा-विधानसभा या अन्य कोई भी चुनाव हो अपराधियों का बोलबाला हमेशा से रहा है. 80 के दशक से इस राज्य में बाहुबलियों की सत्ता और राजनीति में हुई एंट्री आज भी जारी है. हम बात करेंगे चुनावों में अपराधियों या दागियों को टिकट देने की. किसी भी पार्टी का नेता क्यों न हो अपराधियों को लेकर सबका रवैया नरम ही दिखता है.
इन दिनों बिहार विधानसभा और मध्य प्रदेश के उपचुनाव में नेता एक दूसरे पर टिप्पणी और कीचड़ उछाल रहे हैं. रविवार को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भाजपा की महिला प्रत्याशी इमरती देवी के लिए अमर्यादित टिप्पणी की तो दूसरी ओर बिहार में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार में लालू प्रसाद यादव के शासनकाल को अपराधियों और भ्रष्टाचार का सबसे बुरा दौर बता रहे हैं. बिहार में चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवारों को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं. अच्छा होता ये दल सुप्रीम कोर्ट की दी गई गाइडलाइन का भी ईमानदारी से पालन करते. आपको बताते हैं सुप्रीम कोर्ट की राजनीतिक दलों को लेकर चुनाव के दौरान क्या गाइडलाइन दी गई है.
यह भी पढ़ें: चिराग पासवान के प्रति लालू परिवार की बढ़ती सहानुभूति नीतीश की नींद उड़ाने जैसी
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति में अपराधीकरण रोकने के लिए जो आदेश दिए थे उसे ज्यादातर दलों ने नजरअंदाज किया. ‘सर्वोच्च अदालत के स्पष्ट निर्देश हैं कि सभी राजनीतिक दल यह बताएंगे कि उन्होंने दागी यानी आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को टिकट क्यों दिया और उसे क्यों नहीं दिया जिसकी आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है. बिहार चुनाव में उतरे ज्यादातर राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अभी तक पालन नहीं किया है‘.
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में सभी राजनीतिक दलों को दिए थे निर्देश-
‘राजनीति में अपराधी कोई नई बात नहीं. खासतौर पर बिहार में तो बाहुबलियों को जीत का पर्याय माना जाता है. यही वजह है कि कोई भी दल अपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों को टिकट देने में पीछे नहीं हैं.’ हर दल में ऐसे प्रत्याशी मिल जाएंगे जो अपराधिक मामले में आरोपी हैं. बिहार विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी, जेडीयू, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ एलजेपी ने दागियों को उम्मीदवार बनाया है. लेकिन अभी तक अधिकतर पार्टियों ने दागियों को टिकट देने का कारण अपनी वेबसाइट पर जनता के लिए सार्वजनिक नहीं किया है.
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने इसी वर्ष फरवरी महीने में एक अवमानना याचिका पर फैसला सुनाते हुए उम्मीदवार की आपराधिक पृष्ठभूमि और शिक्षा व संपत्ति का ब्योरा राजनैतिक दलों की वेबसाइट पर डालने का आदेश दिया था. शीर्ष अदालत के उस आदेश के बाद पहला चुनाव बिहार विधानसभा का ही हो रहा है.
एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म ने जारी किए दागी उम्मीदवारों के आंकड़ें-
मंगलवार को अपनी अध्ययन रिपोर्ट सार्वजनिक करते हुए एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म ने बताया कि बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मैदान में उतर रहे 1,064 उम्मीदवारों में से 30 प्रतिशत से अधिक ने हलफनामे में उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की है. जारी रिपोर्ट के अनुसार, 23 प्रतिशत या 244 उम्मीदवारों ने उनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की है. गंभीर आपराधिक मामले पांच साल से अधिक की सजा के साथ ही गैर-जमानती अपराध हैं. करीब 328 या 31 प्रतिशत उम्मीदवारों ने उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की गई है.
यह भी पढ़ें: सत्ता में आए तो नौकरी मिलने तक हर महीने देंगे 1500 रुपये बेरोजगारी भत्ता: कांग्रेस
ADR की जारी रिपोर्ट के अनुसार, कुल 375 या 35 फीसदी ने अपनी वित्तीय संपत्ति करोड़ों रुपये बताई है जबकि पांच उम्मीदवारों ने शून्य संपत्ति घोषित की है. उसके अनुसार विश्लेषण किए गए राजद के 41 उम्मीदवारों में से 30 (73 फीसदी) ने हलफनामे में अपने खिलाफ आपराधिक मामले और 22 (54 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा के विश्लेषण किए गए 29 उम्मीदवारों में से 21 (72 फीसदी) ने हलफनामे में अपने खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की सूचना दी हैं और 13 (45 फीसदी) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं.
वहीं रिपोर्ट के अनुसार, विशलेषण किए गए कांग्रेस के 21 उम्मीदवारों में से नौ (43 प्रतिशत), जद (यू) के 35 उम्मीदवारों में से 10 (29 प्रतिशत) और बसपा से विश्लेषण किए गए 26 उम्मीदवारों में से पांच (19 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की है. उसके अनुसार 29 उम्मीदवारों ने महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामलों की घोषणा की है, जिनमें से तीन ने उनके खिलाफ बलात्कार से जुड़े मामले दर्ज होने की घोषणा की है.
गौरतलब है कि एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म उम्मीदवारों द्वारा नामांकन भरते समय दिए गए हलफनामे के ब्योरे का अध्ययन करके यह रिपोर्ट तैयार करता है. अभी तक सिर्फ बिहार के सत्ताधारी दल जदयू ने अपनी पार्टी की वेबसाइट पर उम्मीदवार की आपराधिक पृष्ठभूमि बताने के साथ ही यह भी बताया है कि उसने ऐसे उम्मीदवार को टिकट क्यों दिया.
दागी उम्मीदवार को लेकर निर्वाचन आयोग ने भी पार्टियों को जारी किए फरमान-
सुप्रीम कोर्ट ने अपराधियों और दागियों को टिकट देने पर राजनीतिक दलों को कारण और ब्योरा देने के निर्देश के बाद अब बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने भी नया फरमान जारी कर दिया है. इस फरमान के मुताबिक उन सभी राजनीतिक दलों को अब सोशल मीडिया पर भी ये बताना होगा कि उन्होंने दागी व्यक्ति को प्रत्याशी के रूप में क्यों चुना. यहां पर पार्टियों की ये दलील स्वीकार्य नहीं होगी कि दागी व्यक्ति प्रभावशाली है या राजनीति में इतने दिनों से सक्रिय है. चुनाव आयोग ने कहा है कि कोई भी राजनीतिक दल अगर अपराधी प्रवृत्ति व्यक्तियों को टिकट दी है तो उसे भी सोशल मीडिया और अखबारों में सार्वजनिक करना होगा.
यह भी पढ़ें: गुर्जर आरक्षण सहित किसानों के मुद्दे को लेकर मोदी सरकार पर जमकर बरसे पायलट, बिहार-एमपी में करेंगे प्रचार
चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि राजनीतिक दलों को दागी प्रत्याशी के बारे में जानकारी अपने ऑफिशियल फेसबुक पेज और ट्विटर हैंडल से शेयर करना अनिवार्य होगा. सोशल मीडिया प्लेटफार्म की बाध्यता के पीछे चुनाव आयोग ने कहा कि यहां सूचनाएं स्थायी रहती हैं. युवा मतदाताओं से सीधा कनेक्ट करती हैं. साथ ही सोशल मीडिया का दायरा काफी ज्यादा होता है जिससे सूचना ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सकती है. चुनाव के दौरान अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्तियों को टिकट देने के लिए राजनीतिक दलों में होड़ लगी रहती है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यह दल सत्ता पाने के लिए हर हथकंडे अपनाते हैं, ऐसे में चाहे बाहुबली यह दागियों का सहारा ही क्यों न लेना पड़े.