बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लग रहा है कि एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर सियासी खींचतान समाप्त हो गयी है. सूत्रों के अनुसार, राज्य विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू एक बार फिर बड़े भाई की भूमिका में नजर आने वाली है. पार्टी भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. वहीं बीजेपी इस बार भी कम सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है. हालांकि सीटों पर अंतर केवल एक या दो सीटों का रहेगा. लोजपा एनडीए गठबंधन में 20 सीटों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन रही है. हम और आरएलएम को 10-10 सीटें मिलने के संकेत मिल रहे हैं.
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माना जा रहा है कि सीएम नीतीश कुमार के दिल्ली दौरे के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों को लेकर गठबंधन दलों के बीच अंतिम सहमति बन गई है. हालांकि अधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं हो पायी है लेकिन एनडीए की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस की सूचना कभी भी आ सकती है. सूत्रों के मुताबिक, नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) 102 और बीजेपी 101 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) LJP (R) को 20, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) को 10-10 सीटें मिली हैं.
एक बार फिर ‘बड़ा भाई’ बने नीतीश
नीतीश कुमार की पार्टी एक बार फिर बड़े भाई की भूमिका में नजर आने वाली है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी जदयू ने बीजेपी से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा था. जदयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 43 सीटों पर विजयश्री हासिल की थी. वहीं बीजेपी 110 सीटों पर लड़ी थी और उसे 74 पर जीत मिली. 2020 का चुनाव तत्कालीन लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने अकेले लड़ा था. पार्टी ने 135 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. हालांकि एक सीट पर ही जीत मिली थी.
इस बार कम सीटों पर नहीं बनेगी बात
नीतीश कुमार ने पिछले विधानसभा चुनाव में केवल 43 सीटें हासिल की थी. इसके बावजूद बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दी. 2015 में नीतीश ने महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. उस वक्त जदयू राजद की 80 सीटों के मुकाबले केवल 71 सीट ही जीत पायी. उसके बावजूद राजद ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया. तेजस्वी यादव राज्य के उप मुख्यमंत्री बने.
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पिछले चुनाव में एनडीए से अलग होने के बाद जब जदयू ने महागठबंधन से हाथ मिलाया, उस वक्त भी राजद ने सीट अधिक होने के बावजूद समझौता किया और नीतीश एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. हालांकि इस बार अनुमान जताया जा रहा है कि बीजेपी कम सीटों पर समझौता करने के मूड में नहीं है. यह चुनाव नीतीश की राजनीतिक यात्रा का अंतिम सफर भी बताया जा रहा है. ऐसे में नीतीश भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. अब देखना ये होगा कि इस खबर पर कितनी जल्दी एनडीए की मुहर लगती है.



























