Politalks.News/Rajasthan. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के मुखिया और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने भाजपा प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह के बयान पर जोरदार पलटवार करते हुए एक के बाद एक 6 ट्वीट किए हैं. बीते दो दिन प्रदेश दौरे पर रहे अरुण सिंह के बयानों पर जवाबी हमला बोलते हुए हनुमान बेनीवाल ने अपने पहले ट्वीट में कहा कि अरुण सिंह को यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकसभा चुनाव से पूर्व जब आरएलपी और बीजेपी का गठबंधन हुआ तब न केवल राजस्थान बल्कि अन्य राज्यों में भी बीजेपी को फायदा हुआ था और राज्यसभा चुनावों में भी आरएलपी के 3 विधायकों ने बिना शर्त भाजपा उम्मीदवारों का समर्थन किया था.
अपने दूसरे ट्वीट में फिर बीजेपी प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह को टैग करते हुए सांसद हनुमान बेनीवाल ने कहा कि प्रदेश में गहलोत-वसुंधरा गठबंधन जग जाहिर है और इस बात को आप भी जानते हो. जहां तक विश्वसनीयता का सवाल है तो जनता ने विश्वास के कारण ही उन्हें 3 बार विधायक व एक बार सांसद बनाया है और आप केवल राजनाथ सिंह जी की मेहरबानी से राज्यसभा में आए और राजस्थान के प्रभारी बनाए गए हैं.
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अपने तीसरे और चौथे ट्वीट में सांसद हनुमान बेनीवाल ने कहा कि अरुण सिंह का स्वयं का कोई जनाधार नहीं है और न उन्हें राजस्थान के संदर्भ में कोई ज्ञान है. उन्हें यह स्मरण होना चाहिए कि जब गहलोत सरकार संकट में थी और राजस्थान की विधानसभा में जब फ्लोर टेस्ट हो रहा था तब आरएलपी के विधायक भाजपा के साथ बिना शर्त खड़े थे और इसके उलट गहलोत सरकार जब संकट में आई तब वसुंधरा राजे ने फ्लोर टेस्ट के समय भाजपा के ही 8 विधायकों को सदन में ही अनुपस्थित करवा दिया ताकि गहलोत सरकार को बचाया जा सके जबकि आरएलपी के विधायक सदन में सत्ता पक्ष के विरुद्ध खड़े थे और भाजपा के संकट के साथी बने थे.
अपने पांचवें ट्वीट में सांसद हनुमान बेनीवाल ने अरुण सिंह पर जोरदार निशाना साधते हुए कहा कि राज्यसभा सांसद बनना व किसी राज्य का प्रभारी बनना मेहरबानी का हिस्सा है, आपका स्वयं का कोई जनाधार नहीं है क्योंकि होता तो आप सरपंच भी निर्वाचित हो जाते मगर आज तक जनता के वोटों से शायद सरपंच भी निर्वाचित नहीं हुए हो.
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अपने आखिरी ट्वीट में नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने भाजपा प्रदेश प्रभारी को चुनौती देते हुए कहा कि अरुण सिंह जी आरएलपी का जनाधार देखना है तो एक चुनौती स्वीकार करो राजस्थान में कुछ भाजपा सांसदों से त्याग पत्र दिलवाओ और उसके बाद मैं भी सांसद के पद से त्याग पत्र देकर पुनः आरलएपी से लोकसभा का चुनाव लड़ता हूं. उसके बाद आप उन भाजपा सांसदों को भी वापस चुनाव लड़वाओ तो पता चल जाएगा किसका कितना जनाधार है.