Politalks.News/HanumanBeniwal. नागौर सांसद एवं आरएलपी मुखिया हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) सदन (Sansad) के अंदर और बाहर अपनी मांगों को लेकर अक्सर मुखर रहते हैं. इसी क्रम में नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने आज संसद के शीतकालीन सत्र (Winter Session) के दौरान लोकसभा (Loksabha) में जन धन खाता धारकों की पीड़ा व न्यायपालिका में पिछड़ों, दलितों को प्रतिनिधित्व देने की मांग उठाई. साथ ही सांसद हनुमान बेनीवाल ने उत्तरप्रदेश के मेरठ व आगरा तथा राजस्थान के उदयपुर में हाईकोर्ट बैंच की स्थापना की भी मांग उठाई. सांसद हनुमान बेनीवाल ने सदन में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021 की चर्चा में भाग लेते हुए सदन में अपनी मांगों को अध्यक्ष महोदय के सामने रखा.
नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने न्यायपालिका में न्यायाधीशों के पद पर ओबीसी, दलित व पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व की मांग उठाते हुए कहा कि ‘दलित-आदिवासी-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की बात नहीं सुनी जाती, उन्हें न्याय नहीं मिलता और जहां खुद पारदर्शिता नहीं है, वहां हम न्याय की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं. लोकतंत्र के दो स्तंभ विधान पालिका और कार्यपालिका में आरक्षण है तो न्यायपालिका में आरक्षण क्यों नहीं.’ सांसद बेनीवाल ने आगे कहा कि, ‘कोलीजियम पद्धति में न्यायाधीश ही न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं. देश में संविधान का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए बनी यह संस्था अपने यहाँ नियुक्तियों पर एकाधिकार क्यों चाहती है? क्या कारण है कि आरक्षण जैसी समावेशी व्यवस्था को न्यायपालिका में तरजीह नहीं दी गई?’
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हनुमान बेनीवाल ने आगे कहा कि, ‘यहां बात सिर्फ आरक्षण की नहीं है, बल्कि सभी समाज के लोगों के लिए अवसर की है.’ सांसद ने आगे कहा कि, ‘शोषित वंचित जातियों के साथ भेदभाव तो है ही, लेकिन गरीब सवर्ण या गरीब ब्राह्मण का लड़का-लड़की भी वहां तक पहुंचने का सपना नहीं देख सकता है. देश में कोई भी व्यक्ति संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास करके भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा आदि में जा सकता है और देश के शीर्ष प्रशासनिक पद संभाल सकता है. लेकिन वह देश की शीर्ष न्यायपालिका का न्यायाधीश नहीं बन सकता.’
बेनीवाल ने आगे कहा कि, ‘विभिन्न उच्च न्यायालयों में 400 से अधिक रिक्तियां हैं, किंतु वहां भी न्यायाधीशों की नियुक्ति की दिशा में अब तक कोई उल्लेखनीय पहल नहीं की गई है. यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब निचली अदालतों में करीब 3.8 करोड़ और उच्च न्यायालयों में 57 लाख से अधिक तथा उच्चतम न्यायालय में एक लाख से अधिक मामले लंबित हैं. वहीं उच्चतर न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद की शिकायतें भी आम हो गई हैं. उच्च न्यायालय में भी न्यायाधीश के पद पर जाट, गुर्जर,यादव,मेघवाल व मीणा समाज का व्यक्ति नही है ऐसे में पिछड़ों व वंचित तबकों के लिए सरकार को इस मामले पर विचार करना चाहिए.
सांसद महोदय ने सदन में जस्टिस जसवंत सिंह आयोग की सिफारिश के आधार पर उत्तरप्रदेश के आगरा, मेरठ सहित राजस्थान के उदयपुर में उच्च न्यायालय की बेंच की मांग उठाई. सांसद ने उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों व जिला व अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्त पदों को भरने व लंबित मामलों के निस्तारण करने की मांग सदन में उठाई.
वहीं बैंकों द्वारा जन धन खाता धारकों से डिजिटल ट्रांजेक्शन के नाम पर शुल्क काटने की भी मांग उठाई. सांसद हनुमान बेनीवाल ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना के अन्तर्गत खाता धारकों से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित अन्य बैंकों द्वारा डिजिटल ट्रांजेक्शन के नाम पर गलत रूप से काटे गए शुल्क का मुद्दा उठाते हुए गलत रूप से काटी गई राशि पुन: लौटाने की मांग की. सांसद ने सदन में आईआईटी बॉम्बे की ट्रांजेक्शन शुल्क की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि, ‘2017 से 2019 तक महीने में 4 से अधिक डिजिटल लेन देन पर 12 करोड़ जन धन खाता धारकों से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा वसूले गए 164 करोड़ रुपए की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ.’
साथ ही मैं प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री से कहना चाहता हूं कि, ‘एसबीआई सहित अन्य बैंकों द्वारा भी वसूले गए इस प्रकार के गलत शुल्क की स्टेट्स रिपोर्ट मंगवाकर वापस खाता धारकों को राशि लौटाने की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूर्ण करवाया जाए. बेनीवाल ने सदन में कहा कि, ‘बैंकों का ऐसा कदम निर्धन लोगो को बैंकिग सेवाओं के साथ जोड़े रखने के उद्देश्य को प्रभावित करता है. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को प्रभावित करेगा.’