Politalks.News/Rajasthan. गहलोत सरकार के पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया ने शुक्रवार को विधानसभा सदन में राज्य पशु ऊंट के संदर्भ में एक हैरान कर देने वाला जवाब दिया. प्रदेश में ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दिए जाने के सवाल पर चर्चा के दौरान कटारिया ने कहा कि, ‘ऊंट को राज्य पशु का दर्जा क्यों दिया गया है और इसके क्या फायदे हैं इसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है’. कटारिया ने कहा कि, ‘जब साल 2015 में इसी सदन ने अधिनियम बनाकर ऊंट को राज्य पशु घोषित किया था तब मैं यहां मौजूद नहीं था’. कटारिया के इस बयान पर सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है कि पशुपालन मंत्री को राज्य पशु के दर्जे को लेकर जानकारी ही नहीं है. क्या बिना तैयारी के सदन में आए थे लालचंद कटारिया?. हालांकि कटारिया अपने काम के प्रति सजग रहते हैं.
विधानसभा सत्र की आज शुरू हुई सदन की कार्यवाही का पहला प्रश्न ही प्रदेश में ऊंटों की स्थितियों को लेकर था. बाड़मेर के शिव विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक अमीन खां ने सरकार से जानना चाहा कि, ‘ऊंटों को राज्य पशु क्यों घोषित किया गया है? अमीन खां ने पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया के जवाब से असहमत होते हुए कहा कि, ‘आपने सदन में ऊंटों की मौतों के संबंध जो जानकारियां दी हैं वो सरकारी रिकॉर्ड और बीमित ऊंटों के आधार पर हैं. जबकि वास्तविक स्थिति ये है कि प्रदेश में मरने वाले ऊंटों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा है’
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इधर, चर्चा के बीच विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी को भी हस्तक्षेप करना पड़ा. जोशी ने पशुपालन मंत्री से सवाल किया कि, ‘सदन को बताएं कि सरकार ने ऊंटों को राज्य पशु क्यों घोषित किया है. ऊंट को राजकीय पशु घोषित करने का क्या फायदा और क्या नुकसान है और इसके अन्य पशुओं की तुलना में क्या फायदे हैं?’
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विधानसभा अध्यक्ष के जवाब में मंत्री कटारिया ने हैरान कर देने वाला जवाब दिया. ऊंटों को राज्य पशु के तौर पर मिलने वाले फायदे गिनाने के बजाये कटारिया ने सदन में दो टूक ये कह दिया कि, ‘उन्हें इस बारे में कोई जानकारी’. हालांकि उन्होने सदन को ये ज़रूर आश्वस्त करवाया कि, ‘प्रदेश में ऊंटों की वर्त्तमान स्थितियां चिंताजनक हैं और इनके संरक्षण की आवश्यकता महसूस की जा रही है. ऊंटों के संरक्षण के लिए वर्ष 2015 के बनाये अधिनियम में विधानसभा के अगले सत्र में सरकार संशोधन लेकर आएगी’. मंत्री लालचंद कटारिया ने कहा कि, ‘ऊंट संरक्षण अधिनियम 2015 लागू होने के बाद न तो ऊंटों को राज्य से बाहर ले जा सकते हैं और न ही उनसे माल ढुलाई की जा सकती है. ऐसे में ऊंटों के संरक्षण के लिए हमें कुछ न कुछ करना होगा. उसमें यह तय करेंगे कि ऊंट की आवाजाही रहे और ऊंट का रखरखाव किसान अपने घर में कर सके’.