अमेरिका ने ईरान पर साइबर हमले शुरू किए हैं. अमेरिकी मीडिया की ओर से दावा किया गया है कि रॉकेट और मिसाइल सिस्टम को नियंत्रित करने वाली कंप्यूटर प्रणालियों को निशाना बनाया गया है. कहा जा रहा है कि ये साइबर हमले कई हफ्तों तक जारी रहेंगे. इनका उद्देश्य ईरान की उस हथियार प्रणाली को निशाना बनाना है जिसका इस्तेमाल इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प करता है. इन हमलों के बाद इस प्रणाली पर ऑनलाइन काम करना बंद हो जाएगा और इसका संचालन ऑफलाइन ही किया जा सकेगा.

ईरान की ओर से तेल टैंकर पर हमले और इसके बाद एक हवाई ड्रोन को मार गिराए जाने के बाद अमेरिका ने ईरान के खिलाफ ये कदम उठाया है. अमेरिका ने इस हमलों में ईरान का हाथ बताया जबकि ईरान ने इसका खंडन किया. इसके बाद अमेरिकी जासूसी ड्रोन को ईरान ने मार गिराया. ट्रंप ने इसी दिन ईरान पर हमले के आदेश दिए, लेकिन ट्रंप का आदेश पाकर अमेरिकी लड़ाकू विमान और युद्धपोत सक्रिय हो गए. इस बीच ट्रंप ने अपने सलाहकारों से पूछा कि ईरान पर हमले में कितने लोग मारे जाएंगे. सेना के जनरल बताया कि करीब डेढ़ सौ लोगों की मौत होगी. इसके बाद ट्रंप ने हमले को रोकने के आदेश दिए.

दरअसल, ईरान ने गुरुवार को एक अमेरिकी ड्रोन मार गिराया था. ईरान का दावा है कि यह जासूस ड्रोन ईरानी हवाई क्षेत्र में था जबकि अमेरिका इस दावे को झूठा बताया. ईरान ने यह भी कहा कि कम से कम 35 लोगों को लेकर जा रहा अमेरिकी विमान ईरानी हवाई क्षेत्र के बिल्कुल करीब से होकर गुजरा था, लेकिन उन्होंने उस पर हमला नहीं किया. अमेरिका-ईरान के बीच बीते कुछ दिनों से तनाव लगातार बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका ने मध्य-पूर्व में अपनी सेना और साजो-सामान की तैनाती कर ली है.

ईरान ने खुद को परमाणु समझौते से आंशिक तौर पर अलग करने के बाद कह दिया है कि वह अमेरिका के साथ इस समझौते पर अब और बात नहीं करेगा. जबकि अमेरिका ने इसके अलावा इराक में मौजूद अपने कई राजनयिक कर्मचारियों की संख्या भी घटा दी है. ऐसे में स्पष्ट संकेत हैं कि मध्य-पूर्व पर अब अमेरिका और ईरान के बीच होने वाले संभावित युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं. यह तनाव पूरे इलाके के लिए खतरनाक है. चूंकि ईरान तेल निर्यात का एक बड़ा केंद्र है और कई देशों की तेल आपूर्ति ईरान पर निर्भर है इसलिए यहां युद्ध छिड़ने से पूरे विश्व में तेल संकट छा सकता है. यही नहीं, यहां से होकर कई देशों का जलमार्ग गुजरता है, ऐसे में दुनिया के कई देशों में जरूरी आयात-निर्यात भी प्रभावित हो सकता है.

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