महाराष्ट्र के बाद झारखंड में होगा बीजेपी का खेला! सोरेन के गठबंधन से मनमुटाव के बाद तेज हुईं अटकलें

महाराष्ट्र में MVA सरकार गिरने के बाद अब बीजेपी की नजरें झारखंड पर, सरकारी जांच एजेंसियों के दम पर बीजेपी झारखंड में कर सकती है खेला, राष्ट्रपति चुनाव में NDA प्रत्याशी की जीत के लिए बीजेपी दे रही है देश के अलग अलग राज्यों में ऑपरेशन लॉटस को अंजाम, राज्यसभा चुनाव के वक़्त झामुमो और कांग्रेस के रिश्तों में आई खटास का फायदा लेने में जुटी भाजपा, अब झारखंड में होगा बड़ा खेला!

महाराष्ट्र के बाद अब झारखंड की बारी
महाराष्ट्र के बाद अब झारखंड की बारी

Politalks.News/Jharkhand. देश की सियासत मे पिछले कुछ सालों की राजनीति पर गौर करें तो गैर-भाजपा शाषित राज्यों में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार कब गिर जाए, कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता. अगर यही हालात बने रहे तो देश में चुनाव कोई भी जीते या हारे सरकार भाजपा की बनना तय है. ताजा घटनाक्रम की बात करें तो मध्यप्रदेश, गोवा, कर्नाटक और हाल ही में महाराष्ट्र में हुए सत्ता के सियासी खेला के बाद बीजेपी की नजरें देश के पूर्वी छोर के छोटे से राज्य झारखंड पर जाकर टिक चुकी है. जैसा खेल बीजेपी ने महाराष्ट्र में खेला ठीक उसी तरह का खेल वह झारखंड में भी खेला जा रहा है जिसका असर आगामी राष्ट्रपति चुनाव में भी देखने को मिलेगा. सूत्रों का कहना है कि NDA को अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत के लिए वोटों की जरुरत है और यही कारण है कि महाराष्ट्र के बाद अब झारखंड में भी बीजेपी अपना खेल खेलने वाली है.

महाराष्ट्र में शिवसेना के उद्धव गुट के नेताओं की मानें तो प्रदेश में भाजपा ने सरकारी एजेंसियों का दुरूपयोग कर एकनाथ शिंदे के समर्थन से सरकार बनाई जिसका फायदा उसे राष्ट्रपति चुनाव में मिलेगा. अब ठीक उसी तरह बीजेपी की नजरें झारखंड पर जा टिकी हैं. एक तरफ झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके करीबियों पर जांच एजेंसियों का शिकंजा कसता जा रहा है तो दूसरी तरफ राष्ट्रपति चुनाव को लेकर गठबंधन के सहयोगियों झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के बीच दूरी बढ़ती दिख रही है. मानसून के इस सीजन में जहां देश के कई हिस्सों में भारी बारिश हो रही है तो वहीं झामुमो-कांग्रेस सरकार पर भी सियासी खतरे का घनघोर काले बादल मंडराने लगे हैं.

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आपको बता दें, रांची और दिल्ली के सियासी गलियारों में झारखंड की ढाई साल पुरानी सरकार को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. हालांकि, राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी की ओर से चला गया आदिवासी दांव प्रदेश की सियासत में बड़े बदलाव की एक महत्वपूर्ण वजह भी बनती जा रही है. एनडीए ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर द्रौपदी मुर्मू को उतारकर झारखंड में गठबंधन सहयोगियों में दरार पैदा कर दी है. हालांकि सत्ताधारी गठबंधन के सहयोगी फिलहाल इस तरह की आशंकाओं को खारिज करते हुए सबकुछ ठीक-ठाक होने का दावा कर रहे हैं.

असल में झारखंड में आदिवासियों की बड़ी आबादी है और NDA द्वारा मुर्मू के नाम के ऐलान से पहले विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने वाली झामुमो आदिवासियों के नाम पर ही राजनीति करती रही है. ऐसे में उसके लिए झारखंड की राज्यपाल रह चुकीं मुर्मू के खिलाफ जाकर यशवंत सिन्हा के लिए वोट करना मुश्किल हो गया है. वहीं, कांग्रेस चाहती है कि सोरेन 2012 की तरह इस नैरेटिव को दरकिनार करके यशवंत का साथ दें, चाहे बीजेपी उन्हें कितने ही केसों में दबाने की कोशिश क्यों ना करे. बता दें, उस समय झारखंड में बीजेपी और झामुमो की सरकार थी. बीजेपी ने राष्ट्रपति चुनाव में आदिवासी नेता पीए संगमा को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन झामुमो ने यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को वोट दिया था.’

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अब सवाल किया जा रहा है कि यदि झामुमो ने 2012 में संगमा को दरकिनार किया था तो इस बार मुर्मू के खिलाफ क्यों नहीं जा सकती है? राजनीतिक जानकारों की मानें तो झामुमो के लिए मुर्मू के खिलाफ जाना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि सिबू सोरेन परिवार के साथ उनका रिश्ता पहले से काफी मधुर है. 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के कुछ महीनों बाद ही झामुमो ने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ लिया था और कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन के बाद सोरेन की पार्टी ने कांग्रेस के साथ सरकार बनाई थी. अटकलें लग रही हैं कि क्या एक बार फिर झारखंड में 10 साल पुराना इतिहास दोहराया जाएगा? लेकिन इन कयासों का सच होना मुश्किल लग रहा है. फिलहाल मुर्मू से अच्छे संबंधों के साथ साथ सीएम सोरेन पर खनन से जुड़े कई मामलों में जांच चल रही है. ऐसे में उनका बीजेपी प्रत्याशी के समर्थन में वोट देना समझ आ सकता है.

फिलहाल राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सरकार के सहयोगी कांग्रेस और आरजेडी के नेता खुलकर बोलने से बच रहे हैं, लेकिन कई नेता अनौपचारिक बातचीत में बेचैनी और चिंता जरूर जाहिर करते हैं. गठबंधन दलों के बीच बढ़ती दूरी का ही नतीजा है कि एक तरफ जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके करीबियों पर केंद्रीय जांच एजेंसियों का शिकंजा कस रहा है तो कांग्रेस और आरजेडी इसका ज्यादा विरोध करती नहीं दिख रही है. हाल ही में राज्यसभा चुनाव के दौरान भी कड़वाहट सबके सामने आ गई थी, जब सोनिया गांधी से मुलाकात के बावजूद हेमंत सोरेन ने बिना कांग्रेस को विश्वास में लिए उम्मीदवार का ऐलान कर दिया था.

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फ़िलहाल अब सभी की नजरें राष्ट्रपति चुनाव पर जा टिकी है. राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे देश के कई राज्यों की सियासत में कोहराम मचा सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र में जिस तरफ बीजेपी ने अपना खेला खेला है ठीक उसी तरह अब उसकी नजर झारखंड पर जा टिकी है. सोरेन सरकार और उसके सहयोगी दलों के बीच के मनमुटाव का फायदा बीजेपी हर हालत में उठाना चाहती है.

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