पॉलिटॉक्स ब्यूरो. दिल्ली विधानसभा चुनाव में सफलता का सेहरा फिर एक बार वन मैन आर्मी बनकर उभरे अरविंद केजरीवाल के सिर बंधा. लेकिन इस सफलता में एक और व्यक्ति का योगदान है जो निश्चित तौर पर गौर करने वाला है और वो नाम है प्रशांत किशोर. पिछले कुछ सालों में अपनी रणनीति का लोहा मनवा चुके प्रशांत किशोर को राजनीति का ‘आधुनिक चाणक्य’ कहा जाए तो गलत नहीं होगा. आधुनिक चाणक्य इसलिए क्योंकि उनके राजनीतिक हथकंडे हमेशा से ही डिजिटल और मॉर्डन स्टाइल वाले रहे हैं. फिर चाहे वो फोन कैंपेनिंग हो या फिर कॉफी विद…..सरीखे टीवी इंटव्यू या फिर हाल में शुरू की गई आप की वैब सीरीज.
चुनाव से थोड़े समय पहले दल बदलूओं को पार्टी में शामिल करने को लेकर जब आम आदमी पार्टी को पूर्व आप नेताओं ने घेरना शुरु किया तो लगने लगा था कि बीजेपी कुछ हद तक आप को टक्कर देने में कामयाब हो जाएगी. केजरीवाल पर भी केवल जीतने के लिए दलबदलूओं को पार्टी में शामिल करने के आरोप लगे. लेकिन जब परिणाम आया तो सारे कयास एक दम खत्म हो गए. वजह रही कि बड़े बड़े दिग्गजों से भरी बीजेपी के केवल 8 उम्मीदवार दिल्ली विधानसभा में विपक्ष बनकर पहुंचेंगे. ये पीके की डिजिटल सोच का परिणाम रहा कि 70 में से 62 प्रत्याशी जीतने में कामयाब हुए. दिल्ली परिणाम के दिन ही आप से जुड़ने के लिए मोबाइल कैंपेन लॉन्च करना भी पीके की ही दूरगामी रणनीति का प्रमाण है. दिल्ली जीत के बाद प्रशांत किशोर एक बार फिर अपनी रणनीति और सोच के चलते सुर्खियों में छाए हुए हैं.
दिल्ली चुनावों के बाद आम आदमी पार्टी अन्य राज्यों में भी पार्टी को खड़ा करने पर ध्यान दे रही है. इसके लिए पार्टी कांग्रेस शासित राज्यों को अपना निशाना बना रही है. वजह है कि दिल्ली में हार के बाद कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर है. हरियाणा में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस सरकार में भले ही है लेकिन वो साझा सरकार है जिसमें कांग्रेस महज सहयोगी की भूमिका में है. अन्य राज्यों में पार्टी को खड़ा करने की शुरुआत पंजाब से करने की तैयारी चल रही है. यहां आप ने अपनी नजरे गढ़ाई हैं. इसके लिए आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर प्रशांत किशोर की कंपनी इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पैक) को हायर किया है. पंजाब में कांग्रेस को खड़ा करने का क्रेडिट भी पीके को ही जाता है. ऐसे में प्रशांत किशोर अपने ही ब्रांड को ध्वस्त करने की रणनीति बनाते दिखेंगे.
इससे पहले प्रशांत किशोर के बिहार चुनावों को देखते हुए राजद या कांग्रेस के साथ जाने की खबरें आ रही थीं. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से निकाले जाने के बाद तेज प्रताप ने पीके को राजद में आने का खुला निमंत्रण दिया था. हालांकि उन्होंने इन खबरों को महज अफवाह बताया. वहीं पंजाब की राजनीति स्थितियों से पीके अच्छी तरह वाकिफ हैं. 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों में पीके ने अपनी चुनावी सोच के जरिए कै.अमरिंदर सिंह का कद प्रदेश इकाई से भी बड़ा कर दिया था. यहां कांग्रेस ने पीके की सेवाएं ली थी. इसके बाद पीके ने अमरिंदर सिंह को एक ब्रांड के रूप में स्थापित कर चुनाव को कांग्रेस बनाम बीजेपी नहीं बल्कि कैप्टन बनाम बीजेपी—अकाली कर दिया. ‘पंजाब दा कैप्टन’, कॉफी विद कैप्टन, कैप्टन की चौपाल के साथ कर्ज माफी, घर घर नौकरी जैसे स्लोगन तैयार करा उन्होंने कांग्रेस की मुहिम को बढ़ाया. पीके के पंजाब चुनावों में कांग्रेस की कमजोरियों को छिपाकर आक्रामक शैली में पार्टी की मुहिम को चलाया.
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उनकी चुनावी शैली का असर इसी बात से समझा जा सकता है कि 7 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस केवल पंजाब में ही सफलता के झंडे गाड़ पाई. अन्य राज्यों में कांग्रेस को हार मिली. अब दिल्ली में मिली धमाकेदार जीत से उत्साहित प्रशांत पंजाब में एक बार फिर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहेंगे. पंजाब में पीके को ज्यादा मुश्किलें नहीं आएंगे क्योंकि यहां पहले से आप मौजूद है. हालांकि यहां नेतृत्व बिखरा हुआ है. 2014 के आम चुनावों में केवल 6 महीने पुरानी पार्टी आप ने पंजाब में एंट्री की और चार सीटों पर जीत हासिल की. पार्टी ने राज्य में 24.39 फीसदी वोट हासिल किए जो स्थानीय अकाली दल से केवल दो फीसदी कम थे. तीन साल बाद पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों में आप ने 117 में से 20 सीटों पर अपना कब्जा जमाया.
2019 के लोकसभा चुनावों में आप से केवल संगरूर से भगवंत मान जीत सदन में पहुंचे और वोट प्रतिशत घटकर 7.38 रह गया. वर्तमान में जिन नेताओं ने पंजाब में आप को खड़ा किया था, वे अब बिखरे हुए हैं. मानसा के विधायक नाजर सिंह, रोपड़ विधायक अमरजीत सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. वहीं जैतो विधायक बलदेव सिंह और दाखा विधायक हरविंदर सिंह फूलका ने आप से इस्तीफा दे दिया. सुखपाल सिंह खैहरा अैर कंवर संधू ने पंजाब एकता पार्टी की घोषणा कर दी है. ऐसे में पीके के कंधों पर पंजाब में फिर से पार्टी को खड़ा करने की जिम्मेदारी होगी.
प्रशांत का पंजाब सफर तो अभी शुरु भी नहीं हुआ, उससे पहले ही कांग्रेस में खलबली मच गई है. हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री ब्रह्म मोहिंदरा ने कहा कि पीके प्रोफेशनल हैं और उन्हें कोई भी हायर कर सकता है लेकिन पंजाब दिल्ली नहीं है. हम 2022 में आप को नानी याद दिला देंगे. मोहिंदरा ने ये भी कहा कि उनके पास सीटों पर उतारने के लिए नेता तक नहीं हैं. अभी जो 20 विधायक हैं, अगले चुनावों में उनकी जमानत भी बच जाए, यही गनीमत होगी.
वैसे जिस तरह से आप ने पंजाब में एंट्री ली थी, उससे 2017 के विधानसभा चुनावों में आप की सफलता कहीं अधिक हो सकती थी और वो किंगमेकर की भूमिका में होती. बशर्ते चुनावों से ऐन वक्त पहले पंजाब आप के सबसे बड़े नेता सुखपाल सिंह खेरा पार्टी छोड़ कर नहीं जाते. उनके पार्टी से जाते ही आप के करीब करीब सभी पुराने नेता अलग थलग हो गए. अगर सभी को एकजुट रखा जाता तो निश्चित तौर पर नतीजे आप के पक्ष में बेहतर होते.
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आप का लक्ष्य पंजाब ही नहीं बल्कि राजस्थान में निकाय चुनाव लड़ने पर भी है. प्रदेश में निकायों में चुनाव होने हैं जिनमें आप के लड़ने से लोकल समीकरण बदलेगा. हरियाणा में कांग्रेस विपक्ष में हैं और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल हरियाणा के ही रहने वाले हैं. ऐसे में वहां आप की मौजूदगी समीकरण बिगाड़ेगी, इसमें संशय तो नहीं है. वैसे तो उनका दांव अभी तक हरियाणा में नहीं चल पाया लेकिन इस बार उनकी पॉपुलर्टी दिल्ली से जुड़े हरियाणा बॉर्डर के उस पार जा सकती है. दिल्ली चुनाव में असीम सफलता से पार्टी की सक्रियता निश्चित तौर पर हरियाणा में बढ़ेगी. वहीं चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ आने से आम आदमी पार्टी की ताकत तो बढ़ी ही है, उनके हौसलों को भी पंख लगे हैं.
बताने की जरूरत नहीं कि प्रशांत किशोर ने 2014 में बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव और उसके बाद 2017 में पंजाब और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए, 2019 में पश्चिम बंगाल उपचुनाव के लिए और 2019 में आंध्र प्रदेश में वाईएस जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के प्रचार अभियान की कमान संभाली थी. यहां उत्तर प्रदेश को छोड़ सभी राज्यों में पीके ने सफलता दिलाई है.