सात साल तक ‘खामोश’ रखने के बाद वरुण गांधी बने मोदी-शाह की ‘सियासी पसंद’, अब बनेंगे मंत्री

2013 में वरुण को पार्टी में सबसे कम आयु का महासचिव और पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया, साल 2014 में केंद्र की राजनीति में पीएम मोदी और अमित शाह को वरुण गांधी की आक्रामक छवि पसंद नहीं आई और उन्हें पार्टी से साइडलाइन कर दिया गया, वरुण को अपने आक्रामक तेवरों के लिए जाना जाता है और उनकी छवि कट्टर हिंदूवादी नेता के तौर पर रही है

वरुण गांधी बने मोदी-शाह की 'सियासी पसंद'
वरुण गांधी बने मोदी-शाह की 'सियासी पसंद'

Politalks.News/UttarPradeshPolitics. इन दिनों भारतीय जनता पार्टी के फायर ब्रांड और आक्रामक छवि के नेता फिर सुर्खियों में है. लगभग एक दशक पहले ही उनके हिंदूवादी भाषणों और बयानों से भाजपा ‘गदगद‘ हो जाती थी. वे भाजपा के युवा नेता के तौर पर तेजी के साथ ‘उभरते‘ चले गए. वे उस दौरान पार्टी में ‘स्टार प्रचारक‘ हुआ करते थे. लेकिन पार्टी में इनका ग्राफ जितना तेजी के साथ बढ़ा उतना ही तेजी से किनारे भी कर दिए गए. जी, हम बात कर रहे हैं भाजपा के दिग्गज और फायर ब्रांड नेता और सांसद वरुण गांधी की.

आपको बता दें, भाजपा के अध्यक्ष रहते राजनाथ सिंह ने वरुण गांधी पर पूरा भरोसा जताया और बड़ी जिम्मेदारी भी दी थी. 2013 में वरुण को पार्टी में सबसे कम आयु का महासचिव और पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया था. उसके बाद एक साल तक सब ठीक-ठाक चलता रहा. लेकिन उसके बाद ‘साल 2014 में केंद्र की राजनीति में पीएम मोदी और अमित शाह को वरुण गांधी की आक्रामक छवि पसंद नहीं आई और उन्हें पार्टी से साइडलाइन कर दिया गया‘. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम के आने के बाद उनसे सारे पद और जिम्मेदारियां छिनती चली गईं, बल्कि उनके दिए गए बयानों पर विशेषकर सांसदों के वेतन और रोहिंग्याओं की वापसी जैसे कुछ विवादित भाषणों पर आलाकमान की ओर से ‘चेतावनी‘ भी जारी की गई.

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ऐसे ही उत्तर प्रदेश में अपने साढ़े 4 साल के कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सांसद वरुण गांधी को कभी महत्व नहीं दिया. ‌उसके बाद वरुण भी जान गए थे कि भाजपा के इस हाईकमान के आगे उनकी ‘दाल गलने वाली नहीं है‘. इसके बाद वरुण ने चुपचाप बैठकर ‘खामोशी‘ धारण कर ली, हालांकि वे पार्टी में ही बने रहे. वहीं साल 2014 में मोदी के पहले मंत्रिमंडल में उनकी मां मेनका गांधी को जरूर मंत्री बनाया गया. लेकिन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद मोदी मंत्रिमंडल के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी को भकेंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया. जिससे मेनका और वरुण गांधी के समर्थकों में भारी नाराजगी भी देखी गई थी.

अब लगभग सात साल बाद एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को वरुण गांधी की याद आई है. पिछले कई दिनों से दिल्ली में केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर हलचल है. इसी महीने की आखिरी तक मोदी सरकार अपने नए मंत्रिमंडल विस्तार को अंतिम रूप दे सकती है. आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने दूसरे कार्यकाल में पहला मंत्रिमंडल विस्तार करना है, जिसको लेकर कई बैठकें पीएम आवास पर आयोजित हो चुकी हैं. अगले वर्ष होने वाले पांच राज्यों के चुनाव को लेकर मोदी मंत्रिमंडल विस्तार की रूपरेखा तय की गई है. जिसमें उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा हाईकमान सबसे ज्यादा मुखर है.

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सूत्रों की मानें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिनेश त्रिवेदी, भूपेंद्र यादव, कैलाश विजयवर्गीय, अश्विनी वैष्णव, वरुण गांधी, सुमेधानंद सरस्वती, पीपी चौधरी, राहुल कस्वां, जामयांग शेरिंग नामग्याल सहित कई चेहरे मोदी मंत्रिमंडल में स्थान पा सकते हैं. लेकिन इनमें सबसे ज्यादा चर्चा में वरुण गांधी को मंत्री बनाए जाने को लेकर है, जिसके बाद एक बार फिर वरुण ‘सुर्खियों’ में आ गए हैं.

यूपी चुनाव में गांधी v/s गांधी यानी राहुल-प्रियंका v/s वरुण का होगा सियासी खेला
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी केंद्रीय नेतृत्व अब वरुण गांधी को फिर से ‘फ्रंट‘ पर ला रही है. सांसद वरुण गांधी अपने क्षेत्र में अभी भी लोकप्रिय नेता बने हुए हैं. उनकी हिंदूवादी नेता के तौर पर छवि है. यूपी में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को जिम्मेदारी दी है. ऐसे में वरुण को एक बार फिर से गांधी परिवार के सामने खड़ा किया जाएगा. सही मायने में अब मोदी मंत्रिमंडल में एक ‘गांधी चेहरा‘ देखने को मिलेगा.

आपको बता दें, वरुण गांधी पीलीभीत से भाजपा सांसद हैं और वह नेहरू-गांधी परिवार से आते हैं. वरुण को अपने आक्रामक तेवरों के लिए जाना जाता है. उनकी छवि कट्टर हिंदूवादी नेता के तौर पर रही है. उल्लेखनीय है कि साल 2009 में कथित घृणा भरे भाषण देने के लिए उन्हें भाजपा का फायरब्रांड नेता कहा जाने लगा था. इस मामले में हालांकि अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था. बता दें कि वरुण गांधी पहली बार उत्तर प्रदेश की पीलीभीत लोकसभा सीट के लिए चुनाव प्रचार के दौरान 1999 में नजर आए. मेनका गांधी पहले से ही एनडीए का हिस्सा थीं लेकिन आधिकारिक रूप से मेनका गांधी और वरुण गांधी 2004 में बीजेपी में शामिल हुए. 2009 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने मेनका गांधी की जगह वरुण गांधी को पीलीभीत से टिकट दी, जिसमें उन्हें भारी बहुमत से जीत हासिल हुई.

पीलीभीत संसदीय सीट से मेनका संजय गांधी छह बार सांसद चुनी गई थीं. जिस कारण यह सीट मेनका संजय गांधी की ‘परंपरागत सीट’ मानी जाती रही है. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में मेनका संजय गांधी ने अपने पुत्र वरुण गांधी के लिए यह सीट छोड़ी थी, वह खुद रुहेलखंड मंडल की ‘आंवला सीट’ से चुनाव लड़कर सांसद बनी थीं, जबकि पीलीभीत सीट से वरुण गांधी रिकार्ड मतों के अंतर से जीतकर पहली बार सांसद बने थे. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी और वरुण गांधी के चुनाव क्षेत्रों की अदला बदली कर दी गई. जिसके तहत वरुण पीलीभीत और मेनका सुल्तानपुर सीट से चुनाव जीतीं. गौरतलब है कि मेनका गांधी लगातार केंद्रीय मंत्री रही हैं. जिस कारण पीलीभीत क्षेत्र को भी उन्होंने खास पहचान दी है. लेकिन 2019 के मोदी मंत्रिमंडल में मेनका गांधी भी जगह नहीं पा सकी थीं.

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