Politalks.News/Uttrakhand. राजनीति के मैदान में भी अपने आप को लंबे समय तक स्थापित करने और अपनी पार्टी के नेताओं को साथ लेकर चलने की भी बड़ी चुनौती बनती जा रही है. इसका बड़ा कारण यह है कि मौजूदा राजनीति में विभिन्न विचारधाराओं की सोच वाले नेताओं में ‘विद्रोह की भावना’ फूटने लगी है. ऐसे में उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत भले ही कई बड़े नेताओं को पीछे छोड़ते हुए ‘उत्तराखंड की कमान पर कब्जा’ कर लिया हो लेकिन अब उनकी कैबिनेट मंत्रिमंडल के विस्तार के साथ आगे की सियासी पारी के लिए ‘अग्निपरीक्षा’ भी शुरू होने जा रही है. सही मायने में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के पास वक्त बहुत कम और सामने चुनौतियों का पहाड़ है.
तीरथ सिंह को अपने पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सिंह रावत की तुलना में मौजूदा सरकार की चुनौतियों को पूरा करने के लिए बहुत कम वक्त मिला है. केंद्र की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को तय समय पर पूरा करना है तो विकास कार्यों को गति देकर विधायकों की नाराजगी से पार पाना है. ये सब दारोमदार अब मंत्रिमंडल से इतर बनने वाली ‘टीम तीरथ’ पर होगा. यहां हम आपको बता दें कि तीरथ सिंह रावत ने दो दिन पहले बुधवार को जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब कुछ देर बाद ही उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा था कि ‘मेरी प्राथमिकता सबको साथ लेकर चलने की होगी’. लेकिन अब से थोड़ी देर में होने जा रहे मंत्रिमंडल गठन को लेकर उत्तराखंड के भाजपा विधायकों और मौजूदा मंत्रियों की धड़कन भी बढ़ी हुई है. साथ ही नए मुख्यमंत्री तीरथ को अब मंत्रिमंडल के गठन के बाद असंतुष्ट नेताओं की नाराजगी भी झेलनी पड़़ सकती है.
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आपको बता दें, तीरथ मंत्रिमंडल में स्थान पाने के लिए दो दिन से भाजपा के कई विधायक दिल्ली की दौड़ लगाए हुए हैं. जबकि 70 सीटों वाली राज्य की विधानसभा में मुख्यमंत्री मिलाकर 12 मंत्री ही बन सकते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल में तीरथ सिंह रावत को क्षेत्रीय संतुलन भी साधना होगा. गढ़वाल-कुमाऊं के साथ ही पहाड़-मैदान का भी संतुलन बनाए रखना होगा. टीम में युवा, अनुभवी, महिला, पूर्व सैनिक और पिछड़े वर्ग को भी साथ लेकर चलना होगा. बता दें कि कुमाऊं से बागेश्वर, पिथौरागढ और चंपावत के भाजपा विधायक पिछले मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से नाराज थे और अब इनकी नाराजगी दूर करना भी तीरथ के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.
इसके अलावा, देहरादून कैंट से लगातार आठ बार विधायक चुने गए वरिष्ठ भाजपा विधायक हरबंस कपूर तथा काशीपुर के चार बार के विधायक हरभजन सिंह चीमा भी वरिष्ठता को सम्मान न मिलने से आहत थे. ऐसे मंत्री पिछली बार भी त्रिवेंद्र सरकार के निशाने पर थे और इस बार भी उनके ऊपर गाज गिरने की अधिक संभावना जताई जा रही है. हालांकि कुछ मंत्री ऐसे भी रहे, जिन्होंने बेहतरीन काम किया. उनका प्रमोशन भी हो सकता है. लेकिन मंत्रियों को कैबिनेट से हटाने का फैसला इतना आसान भी नहीं है. तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बनते ही किसी को कैबिनेट से हटाकर शुरू में ही नाराजगी नहीं लेना चाहेंगे.
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2017 के बाद मंत्रिमंडल विस्तार न कर पाने पर त्रिवेंद्र सिंह के प्रति बढ़ती गई नाराजगी
देश में ‘उत्तराखंड भाजपा शासित एक ऐसा राज्य रहा जो वर्ष 2017 के बाद अपना मंत्रिमंडल विस्तार या फेरबदल नहीं कर पाया’. जिसके कारण राज्य के भाजपा नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के प्रति नाराजगी बढ़ती चली गई, कई असंतुष्ट भाजपा नेताओं ने इसकी शिकायत दिल्ली केंद्रीय नेतृत्व से भी की थी. मालूम हो कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 70 में से 57 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया था. उत्तराखंड में अधिकतम 11 मंत्री, मंत्रिमंडल में हो सकते हैं. जबकि पिछली त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने 9 विधायकों को मंत्री बनाया था, जिसमें से वित्त मंत्री रहते हुए प्रकाश पंत का निधन हो गया था. यानी पिछले वर्ष से राज्य में तीन मंत्री पद खाली पड़े रहे.
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कई बार मंत्रिमंडल विस्तार का एलान तो किया लेकिन वेेे भाजपा नेताओं केे आपसी खींचतान की वजह सेेेे हर बार टालते रहे’. अब नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत इस बार चुनावी साल को देखते हुए पूरे 11 मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने जा रहे हैं. अगले वर्ष होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अभी से 70 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से ’60 प्लस’ का नारा दिया है.
बहरहाल तीरथ सिंह रावत ने अपने मंत्रिमंडल के गठन को लेकर दिल्ली हाईकमान पर फैसला छोड़ दिया है. इसी को लेकर गुरुवार को दिल्ली में भाजपा प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ एक लंबी बैठक भी हुई. ऐसे में उत्तराखंड में आज होने जा रहे हैं मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर नए मंत्रियों के नामों की ‘मुहर’ दिल्ली में ही लग चुकी है. जिन लोगों के मंत्री बनने में नाम प्रमुख तौर पर शामिल हैं उनमें प्रदेश उपाध्यक्ष और खटीमा से विधायक पुष्कर सिंह धामी, किच्छा से विधायक राजेश शुक्ला, दिवंगत प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत का नाम भी प्रमुख तौर पर शामिल हैं. इसके साथ राज्य नौकरशाही की भी नए मंत्रिमंडल के गठन को लेकर टकटकी लगाए हुए हैं, क्योंकि नए मंत्रिमंडल गठन के बाद राज्य के ब्यूरोक्रेट्स में भी भारी फेरबदल किए जाने हैं.
दूसरी ओर आज सुबह उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के बाद बीजेपी ने अब अपना प्रदेश अध्यक्ष भी बदल दिया है. बंशीधर भगत को हटाकर मदन कौशिक को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. ऐसे में माना जा रहा है कि बंशीधर को नए मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी. बता दें कि मदन कौशिक ने शुक्रवार सुबह उत्तराखंड के बीजेपी प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम के साथ मुलाकात भी की थी.