Pilitalks.News/WestBengalElection. देश में बीते साल 2020 में कोरोना की पहली लहर के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फ्रंट से मोर्चा संभाला था. टीवी पर भी कई बार आकर देश की जनता को संबोधित किया था और इस दौरान पीएम मोदी ने लोगों से थाली-ताली भी बजवाई थी और दीये भी जलवाए थे. इसके साथ ही देश के लिए एक आर्थिक पैकेज भी दिया था. लेकिन इस बार कोरोना की दूसरी लहर में तो देश की जनता को रोज लगता है कि पीएम मोदी कुछ करेंगे, आज कुछ करेंगे लेकिन आस अधूरी रह जाती है. यहां तक कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने तो हाल ही दिए टीवी इंटरव्यू में ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि लॉकडाउन लगाने के लिए राज्यों को कई महीने पहले ही अधिकृत कर दिया गया है. यहां आपको बता दें, कोरोना के इस महासंकट काल में पीएम मोदी और अमित शाह ने अपना सारा ध्यान येन-केन प्रकारेण पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने में लगा रखा है.
कोरोना से बड़ी है बंगाल की सियासी जीत!
अब लोग सवाल ये उठा रहे हैं कि क्या प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह देश के सामने आए कोरोना वायरस को बहुत बड़ा संकट नहीं मान रहे या उनकी प्राथमिकता पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतना है. क्या भारतीय जनता पार्टी के दोनों योद्धाओं को नहीं पता कि यह संकट इतना बड़ा है कि करोड़ों लोगों की जान और जहान खतरे में है, फिर भी ये दोनों कोरोना की लड़ाई छोड़ बंगाल की जंग में उलझे हुए हैं. माना जा रहा है कि मोदी और शाह इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि राजनीति में ये देखा जाता है कि किसने चुनाव जीता और कैसे जीता, कोरोना को कैसे हैंडल किया इस पर कोई बवाल नहीं करेगा.
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भक्तों के लिए सदमे से कम नहीं होगी हार!
सियासी पंडितों का मानना है कि मोदी और शाह ने अपने बारे में ऐसी धारण बनवा दी है कि उनके अंधभक्त और हार्डकोर समर्थक उन्हें हमेशा जीतते हुए देखना चाहते हैं. पीएम मोदी और अमित शाह को पता है कि यह हार अपने समर्थकों के लिए एक सदमे से कम नहीं होगी, तो एक बार कोरोना की लड़ाई भले हार भी जाएं, लेकिन बंगाल की लड़ाई हारना नरेन्द्र मोदी और शाह अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. शायद कोरोना की लड़ाई में देश के लोगों को भगवान भरोसे छोड़ कर बंगाल के चुनाव में खुद को झोंकने का पहला कारण ही ये है, क्योंकि आम धारणा ये है कि मोदी-शाह की जोड़ी चुनाव हार नहीं सकती. मोदी है तो मुमकिन है नारे का मतलब ये ही है कि दोनों ने जहां खुद को उतार दिया तो बीजेपी के कार्यकर्ताओं की जीत निश्चित है.
पूर्वोत्तर की राजनीति का केन्द्र है बंगाल !
पश्चिम बंगाल की भौगोलिक स्थिति के चलते बीजेपी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. पूर्वी भारत में बीजेपी हमेशा से हासिए पर रही है. अब बीजेपी बंगाल को जीत कर इस इलाके में राजनीतिक रूप से स्थापित करना चाहती है. यहां से ओडिशा, बिहार, झारखंड और पूर्वी भारत के सात राज्यों को नियंत्रित किया जा सकता है.
ध्रुवीकरण की नई प्रयोगशाला बना बंगाल चुनाव !
आपको बता दें, पश्चिम बंगाल एक विशेष राज्य है. यहां मुस्लिम आबादी 30 फीसदी के करीब है. ऐसे में ध्रुवीकरण की सियासत का बड़ा प्रयोग करने के उद्देश्य से बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए ये एक प्रयोगशाला है. पश्चिम बंगाल देश में सेक्युलर राजनीति के बचे कुचे गढ़ में से एक है, जिसे ध्वस्त करने का मौका मोदी और शाह को दिख रहा है.
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हिंदुत्व की राजनीति का फॉर्मूला होगा फैल!
अब बात करते हैं कि यदि जम्मू कश्मीर, असम और पश्चिम बंगाल तीनों राज्यों में बीजेपी का शासन होता है तो भाजपा ब्रांड पॉलिटिक्स का पूरे देश में क्या असर बनेगा! और अगर बीजेपी बंगाल हार जाती है तो क्या असर होगा ? तो बता दें, इससे ये मैसेज नहीं जाएगा कि मुस्लिम मतदाताओं ने एकजुट होकर भाजपा को हरा दिया, बल्कि मैसेज यह जाएगा कि बहुसंख्यक हिंदुओं ने एकजुट होकर बीजेपी को वोट नहीं दिया और भाजपा या मोदी-शाह ब्रांड की राजनीति को खारिज कर दिया.
आपको बता दें, पिछले सात साल में सोशल मीडिया के जरिए यह धारणा बनाई गई है कि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों के डर से हिंदू सरस्वती पूजा नहीं कर पाते हैं या उनको दुर्गापूजा करने से रोका जाता है, ममता सरकार मुस्लिम परस्ती करती है. चुनाव प्रचार में बीजेपी के नेता खुल कर इन बातों का जिक्र कर रहे हैं. इसके बावजूद अगर बंगाल नहीं जीते तो मुसलमानों की वजह से हिंदुत्व के खतरे में होने की जो आम धारणा है उस पर बड़े सवाल खड़े होंगे और इस हिंदुत्व की धारणा को अन्य राज्यों में भी चुनौती मिलेगी. फिर हिदुंत्व की रक्षा के लिए 56 इंच की छाती वाले व्यक्ति की जरुरत खत्म होनी शुरू हो जाएगी. ऐसे में फिर लोगों का फोकस गवर्नेंस, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधा और रक्षा नीति, कूटनीति पर होगा.
मोदी-शाह के अजेय होने की छवि टूटेगी सो अलग!
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह अच्छे से जानते हैं कि कोरोना महामारी के संकट को ठीक से हैंडल नहीं किया गया तो भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. लेकिन उनको यह भी पता है कि अगर बंगाल नहीं जीत सके तो उनके लिए बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा हो जाएगा. राजनीतिक रूप से कोरोना के मामले में हार से बड़ी होगी बंगाल की हार. अगर बंगाल नहीं जीते तो अंधभक्तों पर बुरा असर होगा और मोदी शाह की अजेय नेता होने की धारणा टूट जाएगी.
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गठबंधन की संभावना कम, तोड़फोड़ भी लगभग असंभव !
सियासी पंडित कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी अगर किसी भी कारण से बहुमत से दूर रहती है तो यहां किसी बड़े दल के साथ वो गठबंधन नहीं कर सकती है. बीजेपी का TMC, कांग्रेस और वामदलों के साथ गठबंधन नामुमकिन माना जाता है. फिर विकल्प बचता है पार्टियों में तोड़फोड़ का, तो पश्चिम बंगाल में बीजेपी TMC में जितनी तोड़फोड़ कर सकती थी कर चुकी है, अब ऐसी कोई गुंजाइश दिख नहीं रही है. कांग्रेस और वामदलों में तोड़फोड़ की गुंजाइश कम ही है. लेकिन राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है
तिकड़म नहीं चलेगा, मेहनत पर पानी फिरने का डर !
मोदी और शाह की जोड़ी अजेय इसलिए मानी जाती है क्योंकि मध्यप्रदेश, गोवा, मणिपुर और कर्नाटक के हारने के बावजूद बीजेपी ने तिकड़म लगाकर अपनी सरकार बना ली है. दिल्ली और जम्मू कश्मीर में उपराज्यपाल के जरिए शासन अपने हाथ में ले लिया है. बिहार में महागठबंधन को तोड़कर नीतीश कुमार के साथ सरकार बना ली. इस छवि को बनाए रखने के लिए मोदी शाह कोरोना की ज्यादा चिंता किए बिना अपना पूरा फोकस बंगाल पर रखे हुए हैं, क्योंकि बंगाल की हार पिछले 8 साल की मेहनत पर पानी फेर सकती है और एक बार छवि टूटने के बाद आगे के चुनावों में भी बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसलिए मोदी शाह ने पश्चिम बंगाल में जीत के लिए सब कुछ दांव पर लगा रखा है.