Politalks.News/UttarPradeshPolitics. महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल का एक मशहूर शेर है- ‘वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान, हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है.’ ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है उत्तरप्रदेश की राजनीति में, यहां अगले आठ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जहां भाजपा, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने अपने-अपने सियासी ‘मोहरे‘ फिट करने शुरू कर दिए हैं तो दूसरी ओर बसपा प्रमुख मायावती ने अभी तक अपने ‘पत्ते‘ नहीं खोले हैं और न ही बहनजी की यूपी की राजनीति में भाजपा, सपा और कांग्रेस के मुकाबले ‘सक्रियता‘ दिखाई दे रही है. मायावती ने काफी समय से न बसपा की कोई बड़ी बैठक की है न सड़क पर उतर कर विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर अपने ‘इरादे‘ जाहिर किए हैं. मायावती की राजनीति में इस सुस्ती की वजह से उनके परंपरागत वोटर (दलित वर्ग) भी ‘उलझन‘ में हैं.
ऐसे में गुरुवार को जब बसपा सुप्रीमो मायावती ने पुराने सिपहसलार बसपा विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर को बसपा से निष्कासित किया तो प्रदेश विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच मायावती के इस कदम ने ‘सियासी पंडितों में भी हलचल मचा दी‘. आपको बता दें, यह दोनों बसपा नेता मौजूदा विधायक भी हैं और ओबीसी समुदाय में अच्छी पकड़ भी रखते हैं. बताया जा रहा है कि पंचायत चुनाव में जिस तरीके के आंकड़े बहुजन समाज पार्टी के पास आए हैं उससे बसपा सुप्रीमो बहुत खुश नहीं थीं. हालांकि वर्मा और राजभर के निष्कासन की वजह सिर्फ पंचायत चुनाव नहीं है बल्कि दोनों ही नेताओं की पिछले कुछ समय से समाजवादी पार्टी से बढ़ती करीबी भी थी. राजभर की ‘राजभर समाज‘ और वर्मा की ‘कुर्मी समाज‘ पर अच्छी पकड़ मानी जाती है.
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वैसे बसपा के लिए ये कोई पहला मामला नहीं है. पिछले 10 सालों में बसपा सुप्रीमो मायावती पार्टी के कई दिग्गजों को बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं, इनमें कई ऐसे भी नाम हैं, जिन्हें एक समय मायावती का सबसे करीबी नेता माना जाता था. वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बसपा के जीते विधायकों की संख्या कम होती चली गई. अभी तक बसपा सुप्रीमो मायावती 11 विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं. बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के 19 विधायकों ने जीत दर्ज की थी. जिनमें से रामअचल और लालजी वर्मा को निष्कासित किए जाने के बाद अब बसपा के 7 विधायक ही मायावती के पास बचे हैं.
बता दें, रामअचल राजभर और लालजी वर्मा बसपा के संस्थापक सदस्यों में से थे और कांशीराम के समय पार्टी में जुड़े हुए रहे थे. बता दें कि रामअचल बसपा सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे हैं. इसके अलावा उन्होंने लंबे समय तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी को भी निभाया. वहीं लालजी वर्मा भी अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालते रहे हैं और बसपा विधायक दल के नेता थे. गुरुवार को ही मायावती ने आजमगढ़ के मुबारकपुर विधानसभा सीट से विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को बसपा विधानमंडल दल का नेता नामित किया है.
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मौजूदा समय में बसपा में न कोई बड़ा नेता न स्टार प्रचारक
बसपा प्रमुख मायावती लगातार अपने करीबी नेताओं को निष्कासित करती चलीं जा रही हैं, ऐसे में अगर सतीश चंद्र मिश्र को छोड़ दें तो इसके अलावा बसपा में कोई बड़ा नेता फिलहाल नहीं है. ‘सतीश मिश्र भी पर्दे के पीछे बसपा के लिए राजनीति करते आए हैं‘. बता दें कि ‘मायावती ने उन नेताओं को भी नहीं बख्शा, जिन्हें उनका करीबी माना जाता था‘. पिछले कुछ वर्षों से सबसे अधिक नेता बसपा छोड़कर गए या निष्कासित किए गए.बसपा छोड़ने वाले दिग्गज नेताओं में राज बहादुर, डॉक्टर मसूद अहमद, सुधीर गोयल, बरखूराम वर्मा, राम लखन वर्मा, जंगबहादुर पटेल, आरके पटेल और सोने लाल पटेल भी कांशीराम के दाहिने हाथ माने जाते थे, लेकिन मायावती के प्रकोप से ये भी नहीं बच सके.
इनके अलावा रमाशंकर पाल, एसपी सिंह बघेल, स्वामी प्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, राजवीर सिंह, पूर्व मंत्री अब्दुल मन्नान, उनके भाई अब्दुल हन्नान, राज्यसभा सदस्य रहे नरेंद्र कश्यप और रामपाल यादव हैं. इसी तरह कांशीराम के साथी रहे राज बहादुर, राम समुझ, हीरा ठाकुर और जुगल किशोर और कैप्टन सिकंदर रिजवी भी पार्टी छोड़ गए. आरके चौधरी, इंद्रजीत सरोज, रामवीर उपाध्याय व जुगुल किशोर जैसे कुछ नाम हैं, जिनको मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में पाने के बाद बाहर करने में एक मिनट का भी समय नहीं लिया. इन नेताओं के पार्टी के बाहर किए जाने के बाद से पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है.
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ऐसे में रामअचल राजभर और लालजी वर्मा दोनों ही नेताओं को बसपा से निष्कासित किए जाने के बाद यूपी की राजनीति में सरगर्मियां और तेज हो गई हैं. ‘मायावती के इस एक्शन से पार्टी के सामने ओबीसी को साधने की चुनौती खड़ी हो गई है, क्योंकि फिलहाल पार्टी में ओबीसी समुदाय का कोई बड़ा नेता नहीं बचा है.‘ जिसका समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव को सीधा ‘फायदा’ होता दिख रहा है. मालूम हो कि समाजवादी पार्टी के यूपी में बेस वोटर ओबीसी और मुस्लिम अहम माने जाते हैं. अगले साल यूपी में विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि कभी सत्ता में रही बहुजन समाज पार्टी आखिर अब किन नेताओं के सहारे मैदान में उतरेंगी?