Politalks.News/WestBengalElection. अति उत्साह, विपक्षी को जरूरत से ज्यादा कमजोर समझना, प्रचार के दौरान अत्यधिक आक्रामकता कभी-कभी बहुत भारी पड़ सकती है, ये कल आए बंगाल विधानसभा चुनाव परिणामों से साबित हो गया है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते 18 सीटें क्या मिल गई, एक महिला पर जरूरत से ज्यादा व्यक्तिगत हमले करना, टीएमसी को बंगाल में ‘उखाड़ फेंकने‘ ही आया हूं, कोरोना संकटकाल में भाग-भाग कर बंगाल में जाकर चुनावी रैली के दौरान मंच से भाषण देना कि ‘बंगाल हम लेकर रहेंगे‘. स्वस्थ राजनीति की परंपरा को दरकिनार कर ऐसे सियासी हथकंडे अपनाना जिससे एक आदर्श समाज दो धड़ों में बंट जाए, यह सब नहीं होना चाहिए था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने बंगाल विजय के लिए पूरी ताकत झोंक दी. बीजेपी के नेता अपनी रैलियों और रोड शो में दावा करते रहे कि बीजेपी आसानी से 200 का आंकड़ा पार कर जाएगी और बंगाल में बहुमत से सरकार बनाएगी. प्रधानमंत्री मोदी ने भी बंगाल में खूब मेहनत की और 20 बड़ी रैलियां कीं. पीएम मोदी अपनी रैलियों में ममता बनर्जी पर ‘दीदी ओ दीदी‘ कहकर तंज कसते रहे. पीएम मोदी के इस तंज पर शुरुआत से ही काफी विवाद रहा. ऐसा ही कुछ भाजपा के शीर्ष नेताओं ने बंगाल विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मचों से भाषण और तीखे बयानों का दांव उल्टा पड़ गया.
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आज हम पांच राज्यों के परिणामों में सबसे पहले बात कर रहे हैं ममता बनर्जी के चेहरे से चिंता की लकीरें मिटाकर लौटी ‘मुस्कुराहट‘ की. ममता दीदी के चेहरे पर कल रविवार को कई महीनों बाद हंसी देखने को मिली हैै. जैसे भाजपा के नेताओं ने बंगाल प्रचार के दौरान पूरी ताकत झोंक दी थी. वैसे ही दीदी भी अकेले अपने दम पर मजबूती के साथ डटी रहीं. यह भी सच है कि इन ‘बंगाल चुनावों में दीदी और टीएमसी का राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लगा हुआ था‘. ‘तृणमूल कांग्रेस अगर बंगाल में अपनी तीसरी बार सरकार नहीं बनाती तो ममता बनर्जी का बंगाल ही नहीं बल्कि अपनी ही पार्टी के अंदर कद बहुत घट जाता‘. यह भी संभव था कि उनका राजनीतिक करियर भी ‘कमजोर‘ हो सकता था.
खैर जो कुछ नहीं हुआ उस पर हम चर्चा क्यों करें. क्या हुआ क्या नहीं हुआ, लेकिन अंतिम सत्य यह ही कि इस चुनाव की बाजी ममता बनर्जी के हाथ लगी है. यानी बंगाल में ममता ही ‘स्ट्रीट फाइटर‘ नेता थी और अगले 5 सालों तक एक बार फिर रहेंगी. अब बात को आगे बढ़ाते हैं रविवार को घोषित हुए बंगाल और अन्य राज्यों के चुनाव परिणामों को सिलसिलेवार तरीके से चर्चा करते हैं. जैसे चुनाव प्रचार के दौरान पांचों राज्यों में पश्चिम बंगाल सबसे चर्चा में रहा वैसे ही कल मतगणना के दिन भी इस राज्य के चुनाव परिणामों पर राजनीतिक दलों के अलावा देश भर की जनता में भाजपा और टीएमसी की सियासी लड़ाई का ‘सिकंदर‘ कौन बना लगातार समाचार चैनलों और सियासत के गलियारों में सुर्खियां बनी रहीं.
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देश में बंगाल का चुनाव सबसे अधिक चर्चित रहा है तो सबसे पहले चर्चा इसी राज्य को लेकर होगी. जैसे क्रिकेट में कई टीमों के बीच मैचों की श्रंखला के बाद जब सीरीज का समापन होता है तब एक प्लेयर को ‘मैन ऑफ द सीरीज‘ घोषित किया जाता है. वैसे ही आज पांचों राज्यों के कई चरणों में हुए चुनावों के परिणामों के बाद ममता बनर्जी ‘दीदी‘ राजनीति के मैदान पर मैन आफ द सीरीज बनकर उभरी हैं. सही मायने में विपक्षी दलों की दीदी अब ‘हीरो‘ बन गई हैं. पीएम मोदी, अमित शाह के साथ जेपी नड्डा सीएम योगी समेत अन्य पार्टी के रणनीतिकारों से दीदी ने जिस प्रकार से मुकाबला किया, उससे विपक्ष जरूर उत्साहित है. बंगाल चुनाव प्रचार के दौरान मोदी-शाह की जोड़ी भी ममता बनर्जी को भेद नहीं पाई. भाजपा के शीर्ष नेताओं की सभी चालों को परास्त कर दीदी ने बता दिया कि वही बंगाल की असली ‘सिकंदर‘ हैं.
बंगाल हार से भाजपा हाईकमान और राजधानी दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में मायूसी छाई हुई है. पीएम मोदी और अमित शाह को इस बात का जरूर संतोष होगा कि वह वर्ष 2016 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान इस बार भाजपा राज्य में मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी है. भले ही दीदी ने बंगाल में भाजपा को धूल चटा दी लेकिन अपने ही विधानसभा नंदीग्राम ने उन्हें आखिरी राउंड तक परेशान कर रखा. ममता के लिए नंदीग्राम सीट इस बार भाग्यशाली नहीं रही. नंदीग्राम सीट से अपने पुराने सिपहसालार और भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को 1957 वोटों से हरा दिया है. हालांकि शुभेंदु अधिकारी की जीत के खिलाफ टीएमसी ने मुख्य निर्वाचन आयोग का दरवाजा खटखटाया है.
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बंगाल चुनाव में भाजपा अपने ही राजनीतिक दांव में उलझ कर रह गई
बंगाल में भाजपा ने ध्रुवीकरण का अपना सबसे पुराना और बड़ा दांव खेला. हिंदू वोटों को लामबंद करना, पिछड़ों-दलितों को साथ लेना और टीएमसी के सेनापतियों को तोड़कर उसे एक डूबता हुआ जहाज साबित करना, उन्हें उम्मीद थी कि वाम और कांग्रेस का गठबंधन अगर अपना पुराना प्रदर्शन भी दोहरा लेगा और ‘हिंदू ध्रुवीकरण‘ हो पाएगा तो चुनाव के रण में चमत्कार संभव है. लेकिन ऐसा साफ नजर आ रहा है कि ‘भाजपा अपने ही इस सबसे बड़े राजनीतिक दांव में उलझ कर रह गई‘. ये लहर थी हिंदू ध्रुवीकरण के खिलाफ मुस्लिम और धर्मनिरपेक्ष या भाजपा को पसंद न करने वाले हिंदुओं के ध्रुवीकरण की, वहीं ‘मुसलमानों का 75 प्रतिशत से ज्यादा वोट किसी और पार्टी (ओवैसी की AIMIM) को न जाकर टीएमसी में शिफ्ट हो गया‘. बाकी का हिंदू वोट तो टीएमसी को मिला ही शायद यह अरसे बाद ही है कि राज्य में अगड़ी जातियां और मुसलमान भाजपा के खिलाफ लामबंद दिखाई दिए.
दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की ‘उग्रता, आक्रामकता’ और ममता का बंगाली अस्मिता का दांव, अकेले एक पूरी फौज से लड़ने का साहस और सहानुभूति, ऐसे कितने ही कारक चुनाव में भाजपा या मोदी की लहर के खिलाफ खुद एक लहर बनकर खड़े हो गए. भाजपा के पास न तो मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा था और न ही कोई तेजतर्रार महिला नेता जो ममता को उनकी शैली में जवाब दे पाता. भाजपा की भारी-भरकम चुनावी मशीनरी का अकेले मुकाबला कर रहीं ममता का नंदीग्राम में चुनाव प्रचार के दौरान घायल हो जाना भी निर्णायक बातों में एक रहा. ममता बनर्जी ने चोट के बावजूद ‘व्हील चेयर‘ से ही जिस तरह से लगातार धुआंधार प्रचार किया और भाजपा नेतृत्व के खिलाफ आक्रामक हमला बोला, उससे यह छवि बनी कि ‘घायल शेरनी’ ज्यादा मजबूती से मोर्चा संभाले हुए हैं. ऐसे में सहानुभूति की फैक्टर भी उनके पक्ष में गया.
हालांकि 3 सीट से बढ़कर 76 सीटों पर पहुंची भाजपा एक ऐतिहासिक सफलता के बाद भी विपक्ष तक सीमित हो गई है. इसकी सबसे बड़ी कीमत वामदलों और कांग्रेस ने चुकाई है जो राज्य से साफ हो गए हैं. ममता 10 साल के शासन के बाद फिर पश्चिम बंगाल की गद्दी संभालने जा रही हैं. पलस्तर कट गया है, ममता अपना पैर आगे बढ़ा चुकी हैं. बंगाल में 292 सीटों के लिए हुए चुनाव में टीएमसी ने 200 से अधिक सीटों पर कब्जा जमा लिया है. वहीं भाजपा करीब 80 सीटों पर जीत हासिल कर सकी.
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ममता एक मजबूत नेता के तौर पर उभर कर सामने आईं
बंगाल में टीएमसी की जीत के बाद ममता बनर्जी देश की राजनीति में एक मजबूत नेता के तौर पर उभर के सामने आई हैं. सभी ‘विपक्षी दलों के नेताओं ने ममता को इस जीत पर बधाई दी है’. एनसीपी नेता शरद पवार, कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी, उमर अब्दुल्ला, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव, महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता संजय निरुपम और भाजपा के वरिष्ठ नेता और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी दीदी को इस जीत पर शुभकामनाएं दी. वहीं अपनी जीत से गदगद ममता बनर्जी ने शाम को बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान वे बिना व्हीलचेयर के नजर आईं. बता दें कि उन्हें 10 मार्च को चुनाव प्रचार के दौरान चोट लग गई थी. इसके बाद से ममता प्लास्टर में ही प्रचार कर रही थीं. अब उन्हें ठीक देखकर भाजपा का कहना है कि यह चोट सिर्फ एक नाटक था. तृणमूल कांग्रेस की जीत के बाद ममता ने कहा कि मुझे पहले से ही ‘डबल सेंचुरी‘ की उम्मीद थी. मैंने 221 सीटों का लक्ष्य तय किया था. दीदी ने कहा कि ये बंगाल के लोगों को बचाने की जीत है, ये बंगाल के लोगों की जीत है. उन्होंने कहा कि ‘खेला होबे और जय बांग्ला’, दोनों ने बहुत काम किया है.
तृणमूल के राज्य सभा सांसद ने नतीजों के बाद ट्वीट कर भाजपा पर तंज कसा है. इस पोस्ट में उन्होंने एक सूत्र का जिक्र किया है. इसमें एक तरफ भाजपा के साथ, सीबीआई, ईडी, चुनाव आयोग, मीडिया, पैसे और दलबदलुओं का जिक्र किया है. दूसरी ओर ब्रायन ने कहा कि इन सब पर ममता, तृणमूल कार्यकर्ताओं और बंगाल की जनता भारी पड़ी है. सही मायने में भाजपा की अधिक आक्रामकता भरे बयान ही उसे सत्ता से दूर ले गई. इन बयानों को भुनाने में टीएमसी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. सहानुभूति कार्ड काम आया और यह ममता के पक्ष में गया. इसी का परिणाम है कि लगातार तीसरी बार ममता बंगाल की सत्ता पर काबिज होने पर कामयाबी हासिल की है.
असम जीत और पुडुचेरी की बढ़त ने भाजपा का तनाव कम किया, कांग्रेस हुई निराश
असम में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है. बंगाल चुनाव में मिली हार की भरपाई जरूर असाम ने कुछ हद तक पूरी कर दी है. पहले कहा जा रहा था कि इस राज्य में कांग्रेस को सत्ता मिल सकती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. असम में भाजपा की दोबारा सरकार बनना तय है. लेकिन यहां अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है कि जब चुनाव के बाद हमारा विधानसभा दल गठित होगा, तो इस पर सही समय पर फैसला लिया जाएगा. यानी अभी असमंजस की है. अगर हम बात करें कांग्रेस की तो उसके लिए पांचों राज्यों में चुनाव परिणाम निराशाजनक कहे जाएंगे. राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ने असम और केरल में खूब मेहनत की. लेकिन वहां सरकार बनाने में सफल नहीं हो सके. अब गांधी परिवार के लिए कांग्रेस का नेतृत्व संभालने के लिए कई सवाल पार्टी के ही बगावती नेता ही उठाएंगे.
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बात अब केरल की. केरल में एक बार फिर एलडीएफ के पक्ष में अपना मत दिया है. मुख्यमंत्री विजयन सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे हैं. यहां भाजपा की बुरी तरह हार हुई है. मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि केरल की जनता ने एक बार फिर एलडीएफ की सरकार पर भरोसा जताया है और भारी बहुमत से जिताया. उन्होंने आगे कहा कि ये समय जश्न मनाने का नहीं है, बल्कि कोविड के खिलाफ लड़ाई लड़ने का है. ऐसे ही तमिलनाडु में डीएमके के नेता स्टालिन का जादू चल गया.
तमिलनाडु में अब तक डीएमके 121 सीटों पर आगे है और यहां के विधानसभा की 234 सीटें हैं और सामान्य बहुमत के लिए 118 सीटों की जरूरत होती है. दूसरी ओर केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को एक राज्य का फायदा होता नजर आ रहा है. यहां भाजपा और उसके सहयोगी दल के सरकार बनाने के आसार हैं. यहां हम आपको बता दें कि देश में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकार वाले प्रदेशों की संख्या 18 हो जाएगी. हालांकि, आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से देखें तो उसे कोई खासा फायदा नहीं होगा, क्योंकि 14 लाख की आबादी और 483 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला यह बेहद छोटा राज्य है. लेकिन सबसे अधिक भारतीय जनता पार्टी को बंगाल की हार आगामी कई दिनों तक परेशान करती रहेगी. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भाजपा के रणनीतिकारों और दिग्गजों ने इस राज्य को टीएमसी से छीनने के लिए सभी ‘सियासी ब्रह्मास्त्र’ प्रयोग कर लिए थे. दूसरी बात यह भी है कि अब विपक्ष ममता के सहारे भाजपा और पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को घेरने के लिए मजबूती के साथ आ खड़ा हुआ है.