Politalks.News/UttarPradesh. अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए पूरे प्रदेश में सड़क किनारे बने सभी धार्मिक स्थलों के नाम पर बने अवैध कब्जे हटाने के सख्त निर्देश दिए हैम. यही नहीं यूपी के गृह विभाग ने इस संबंध में सभी मंडालायुक्तों और जिलाधिकारियों को निर्देश जारी करते हुए एक सप्ताह के अंदर शासन को इस संबंध में रिपोर्ट देने को कहा गया है. गृह विभाग ने गुरुवार को इस संबंध में सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को निर्देश जारी कर कहा है कि 14 मार्च तक बताएं कि उन्होंने कितने धार्मिक स्थलों को अतिक्रमण से हटाया. यूपी के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी की तरफ से इन सम्बंध में सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को पत्र लिखा गया है.
उत्तरप्रदेश प्रशासन की तरफ से जारी किए गए पत्र में लिखा गया है कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों के क्रम में राज्य सरकार ने ये निर्देश जारी किए हैं. इसमें सार्वजनिक सड़कों, गलियों, फुटपाथों, सड़कों के किनारों, लेन आदि पर धार्मिक प्रकृति की किसी भी संरचना के निर्माण पर रोक लगाई जाएगी. साथ ही 1 जनवरी 2011 अथवा उसके बाद के ऐसे निर्माण तत्काल हटाए जाने के निर्देश जारी किए गए हैं. 1 जनवरी 2011 के पहले के ऐसे निर्माण योजनाबद्ध तरीके से संबंधित धार्मिक संरचना के अनुयायियों द्वारा निजी भूमि पर स्थानांतरित किए जाएंगे. इस मामले पर सभी जिलाधिकारियों से 14 मार्च तक रिपोर्ट तलब की गई है, जिसमें जिले के अधिकारियों को ये बताना होगा कि आदेश के बाद कितने सार्वजनिक स्थलों को धार्मिक अतिक्रमण से खाली करवाया गया.
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उत्तरप्रदेश में अब योगी सरकार के निर्देश के बाद सड़क किनारे धार्मिक स्थलों के नाम पर लिए गए अतिक्रमण हटाए जाएंगे. शासन द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार दिनांक 10.06. 2016 या उसके बाद संबंधित तहसीलों, जिलों के जिलाधिकारियों, उप जिलाधिकारियों तथा क्षेत्राधिकारियों, पुलिस अधीक्षक, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक तथा जिले के संबंधित अधिकारी, जो सड़कों (राजमार्गों सहित) अनुरक्षण के लिए जिम्मेदार हैं उनको यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि सार्वजनिक सड़कों (राजमार्गों सहित) गलियों, फुटपाथों, लेन आदि पर किसी भी धर्म संप्रदाय जाति वर्ग आदि से संबंधित कोई धार्मिक संरचना या निर्माण कर के अतिक्रमण ना किया जाए.
आपको बता दें उत्तरप्रदेश प्रशासन द्वारा जारी निर्देशों में यह भी कहा गया है कि यदि इसमें कोई विचलन अथवा अवज्ञा होती है तो इसके लिए संबंधित अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे. इन आदेशों की अवज्ञा जानबूझकर माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना होगी, जो आपराधिक अवमानना मानी जाएगी.