Politalks.News/Bihar. बिहार की राजनीति में वैसे तो महागठबंधन और एनडीए गठबंधन से पार पाना किसी भी दल के लिए संभव नहीं है लेकिन इस बार बिहार की राजनीति में तीसरा धड़ा खड़ा होने के पूरे पूरे आसार बन रहे हैं. लेकिन ये दल न तो वाम दल होंगे, न ही बसपा, ये धड़ा खड़ा करने की अगुवाई कर रहे हैं पप्पू यादव. जन अधिकार पार्टी (जाप) प्रमुख व पूर्व सांसद पप्पू यादव बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने के लिए हर संभव कोशिश में जुटे हैं. फिलहाल एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया चिराग पासवान के भी पप्पू यादव के साथ आने की कवायत चल रही है. लेकिन इस बार पप्पू यादव कुछ अलग ही राजनीति खेलने के मूड में हैं. वो है दलित राजनीति.
हालांकि हिंदूस्तान आवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जितिनराम मांझी बिहार में दलित समाज के सबसे बड़े नेता हैं लेकिन पिछले चुनाव में 23 में से एक सीट जीतने वाली पार्टी से इतनी उम्मीद नहीं की जा सकती. वहीं मांझी का दलबदलू स्वभाव भी बिहार की राजनीति में उन्हें स्थायित्व दिला पाएंगा, थोड़ा मुश्किल काम है. पिछला चुनाव उन्होंने एनडीए गठबंधन के साथ लड़ा था. उससे पहले वे जदयू में नीतीश कुमार के साथ थे और उन्हीं की पार्टी से प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने और नीतीश की बात न मानने के चलते उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. पार्टी में केवल वे ही चुनाव जीतकर सदन पहुंचे लेकिन सरकार बन गई राजद और जदयू गठबंधन वाली महागठबंधन की तो वे एनडीए छोड़ महागठबंधन में शामिल हो गए.
लेकिन यहां भी उनकी किस्मत ने मांझी का साथ नहीं दिया क्योंकि 6 महीने बाद जदयू ने राजद का साथ एनडीए से हाथ मिला लिया और नीतीश कुमार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. अब मांझी का मन महागठबंधन से उचट गया है और वे फिर से एनडीए की शरण में जा रहे हैं. इधर, बिहार की राजनीति पर गौर किया जाए तो यहां जातीय राजनीति के लिए जगह नहीं है. यही वजह है कि दलित राजनीति की देश की सबसे पार्टी बसपा भी बिहार में कुछ नहीं कर पाई. हालांकि बसपा की राजनीति यूपी में जमकर चमक रही है लेकिन यूपी से सटे बिहार में बसपा 100 से भी ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी दहाई तक भी सीटें नहीं जीत पाई. यहां तक की पिछली बार सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद बसपा खाता तक नहीं खोल पाई.
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लोजपा भी दलित राजनीति पर ही चुनाव लड़ती आ रही है लेकिन 42 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी केवल दो विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे. कुल मिलाकर दलित राजनीति या जातीय राजनीति का बिहार में ज्यादा वर्चुस्व नहीं है. कांग्रेस का राज खत्म होने के बाद यहां लंबे समय तक लालू प्रसाद यादव की राजद का बिहार में एकछत्र राज रहा लेकिन उन्होंने सभी जातियों को साथ लेकर अपनी राजनीति खेली. नीतीश कुमार ने भी सर्वजातिगत राजनीति करने हुए पिछले 15 सालों तक सूबे की सत्ता पर अपना आधिपत्य जमाए रखा. लेकिन पप्पू यादव ने अब आगामी विधानसभा चुनाव में दलित राजनीति का नया पासा फेंका है.
वहीं एक बयान बयान देते हुए पप्पू यादव ने कांग्रेस को बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बताते हुए कहा कि अगर राजद की जगह कांग्रेस महागठबंधन को लीड करे तो जाप बिना शर्त के महागठबंधन को समर्थन देने के लिए तैयार है. जाप प्रमुख ने ये भी कहा कि ऐसी परिस्थितियों में दलित नेतृत्व जाप को देना होगा. उन्होंने कहा कि नेतृत्व की कमान किसी अतिपिछड़ा या फिर दलित समुदाय के नेता को ही मिलनी चाहिए. इस बात का सिर्फ आश्वासन ही नहीं बल्कि पूरा भरोसा चाहिए. पप्पू यादव ने ये भी दावा किया है कि सत्ता में आने के बाद तीन साल के अंदर बिहार को देश नहीं, बल्कि एशिया में नंबर वन बनाने का काम करें. अगर ऐसा नहीं होता है तो वे इस्तीफा दे देंगे.
जाप प्रमुख ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि दलित राजनीति को खत्म करने की साजिश रच रहे हैं, जिसे हम किसी भी सूरत में नहीं होने देंगे. पप्पू यादव ने कहा कि जीतनराम मांझी को भी इस बात के लिए समझाऊंगा कि नीतीश कुमार झांसे में नहीं आएं और जेडीयू के साथ न जाएं. उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस को भारत की गुलामी से बचाने के लिए आगे आना चाहिए.
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पप्पू यादव यहीं नहीं रूके, उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, महागठबंधन में दरारें पड़ती जा रही हैं. महागठबंधन के बड़े नेताओं रघुवंश प्रसाद सिंह, उपेन्द्र कुशवाहा, शरद यादव, मुकेश साहनी की उपेक्षा हो रही है. बिहार की जनता जानना चाहती है कि आखिर वो कौन पार्टियां हैं जो महागठबंधन को कमजोर कर रही हैं. अपने इस बयान से पप्पू यादव ने सीधे तौर पर आरजेडी को निशाने पर लिया.
बिहार के विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे करने वाले जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव ने कहा कि सत्ता में आने के महज तीन साल के अंदर बिहार को विकास के मामले में ऐसी जगह ले जाना है, जो देश में नहीं बल्कि एशिया में नंबर वन बनाने का मकसद है. वो कहते हैं कि अगर बिहार को विकास के इस मुकाम पर नहीं ले जाते हैं तो इस्तीफा दे देंगे.
इसी बीच पप्पू यादव ने बिहार की 94 विधानसभा सीटों की लिस्ट जारी की, जिस पर जाप के उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाएंगे. इसमें सीमांचल से लेकर भोजपुर और मिथलांचल तक की सीटें शामिल हैं. पप्पू यादव ने सूबे की 60 विधानसभा सीटों पर अपनी पार्टी की आईटी सेल को स्थापित कर दिया है. प्रदेश की सभी सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारने का वे ऐलान कर चुके हैं. अगर ऐसे में वे कांग्रेस या महागठबंधन के साथ जाते हैं तो उन्हें अपनी सीटों पर समझौता करना पड़ेगा.
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अगर कांग्रेस उनके साथ नहीं आती और पप्पू यादव अकेले या किसी अन्य पार्टी के साथ चुनावी समर में अपनी किस्मत आजमाते हैं तो दलित राजनीति को भुनाने वाली सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया के तौर पर चमक सकते हैं. बिहार की सियासत में दलित राजनीति में पप्पू यादव किंगमेकर या उसके आसपास की भूमिका भी निकाल पाते हैं तो उनका और उनकी पार्टी का सितारा बिहार में सबसे उपर चमकता दिखाई देगा.