बिहार में दो फेस में होने वाली विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी रणनीतियां अंतिम चरण में आ पहुंची है. पिछले तीन दशक से सत्ता से दूर रही कांग्रेस की स्थिति जमीनी स्तर पर इस बार भी ज्यादा अच्छी नहीं दिख रही है. इसके लिए कांग्रेस ने एक पत्ता फेंकते हुए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सीनियर ऑब्जर्वर बनाया है. अब तक सीएम फेस पर चुप्पी साधने वाली कांग्रेस की ओर से गहलोत ने ही महागठबंधन के उम्मीदवार तेजस्वी यादव का नाम का ऐलान किया था. अब सियासी गलियारों में इसी बात की चर्चा है कि क्या अनुभवी अशोक गहलोत करीब 30 साल से सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस की बिहार में वापसी करवा पाएंगे.
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गहलोत चुनावी रणनीति और जातिगत समीकरण साधने में माहिर हैं. गहलोत को सबसे ज्यादा राज्यों में प्रभारी रहने का अनुभव है और उनकी राजनीतिक समझ का कोई मुकाबला नहीं है. वो भविष्य का अनुमान लगाने की समझ रखते हैं. चूंकि कांग्रेस की राजनीति का पहिया बिहार चुनाव में फंसा हुआ है. यही वजह है कि राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता रिपीट नहीं करा सकने के बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने संगठन कौशल का ज्ञानी गहलोत को यह जिम्मेदारी सौंपी है.
गुजरात जैसी संजीवनी की उम्मीद
अशोक गहलोत एक अनुभवी राजनीतिज्ञ है लेकिन इस बार बिहार में उनसे 2017 के गुजरात चुनाव जैसे चमत्कार की उम्मीद की जा रही है. 2017 में कांग्रेस ने दशकों बाद मोदी के गढ़ गुजरात में बेहतर प्रदर्शन किया था. पार्टी को उम्मीद है कि जिस तरह गहलोत ने गुजरात प्रभारी रहते हुए बीजेपी को 100 सीटों से कम पर रोक दिया था. ऐसा ही करिश्मा बिहार में कर पाएंगे. 2017 में गुजरात में कांग्रेस को 77 सीटें और चार सीटें सहयोगियों को मिली थीं. विपक्ष में रहते हुए यह कांग्रेस का अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा था.
गहलोत का ओबीसी फैक्टर
राजनीतिक विश्लेषकों का ये भी मानना है कि बिहार में जातीय समीकरण सबसे ज्यादा उलझे हुए हैं. बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) मिलकर राज्य की आबादी का लगभग 63% हिस्सा हैं. गहलोत खुद ओबीसी वर्ग से आते हैं. ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि गहलोत ओबीसी वोटरों को कांग्रेस की तरफ मोड़ सकते हैं. कांग्रेस की अशोक गहलोत के जरिए जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश है.
बीजेपी की रणनीति का जवाब
बिहार विधानसभा चुनाव में मारवाड़ी वोटर्स को अपने पक्ष में लेने के लिए बीजेपी ने राजस्थान के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी समेत 27 बड़े नेताओं की टीम उतारी है. ये नेता बिहार में विधानसभा वार जाकर मारवाड़ी समाज को साधने के लिए संपर्क कर रहे हैं. गहलोत को चुनावी समर में उतारकर कांग्रेस ने उसका जवाब देने की कोशिश की है. बिहार में राजस्थान के लाखों लोग रहते हैं. इनमें जोधपुर, पाली, चूरू, झुंझुनूं और सीकर के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. गहलोत अपने अनुभव और छवि के जरिए बिहार में कांग्रेस को लाभ दिला सकते हैं.
कांग्रेस के संकटमोचक हैं गहलोत
राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत कांग्रेस आलाकमान के करीबी हैं. गहलोत उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, असम आदि राज्यों के प्रभारी एवं आब्जर्वर रह चुके हैं. राजस्थान का कोई दूसरा नेता इतने राज्यों का प्रभारी नहीं रहा. 2024 में अमेठी लोकसभा सीट का सीनियर ऑब्जर्वर बनाया और गांधी परिवार की इस परंपरागत सीट पर बीजेपी की स्मृति ईरानी को हरवाकर कांग्रेस की वापसी कराई.
2024 लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 10 में से 5 सीटों पर कांग्रेस को जीत दिला एक दशक का सबसे श्रेष्ठ प्रदर्शन किया. 2014 में पार्टी सिर्फ रोहतक सीट जीत पाई थी और 2019 में वह भी गंवा दी थी. 2017 में प्रभारी रहते गुजरात में बीजेपी को 99 सीटों पर रोकने में कामयाब रहे. 2009 में गहलोत के प्रभारी रहते राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़े और जीते. कांग्रेस ने 21 सीटें जीतीं. 2004 के लोकसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश का स्टेट प्रभारी बनाया था और कुल चार में से कांग्रेस ने तीन सीटों पर विजयश्री हासिल की. अब देखना ये होगा कि तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को संजीवनी दे पाते हैं या फिर नहीं.



























