केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री रह चुके कुशवाहा वैसे तो एक हारे हुए राजनीतिक जुआरी हैं लेकिन बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाह एक बड़ा नाम है. 2018 में एनडीए का साथ छोड़ महागठबंधन में पहुंचे और मौसम देखकर फिर से एनडीए के पाले में आने वाले राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाह पर एक बार फिर बीजेपी मेहरबान है. कोइरी समाज से आने वाले कुशवाहा को भारतीय जनता पार्टी राज्यसभा भेजने की तैयारी कर रही है. दो बार लगातार लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी उन्हें इतनी तव्जो देना एनडीए के गठबंधन साथियों के गले नहीं उतर रहा है लेकिन ऐसा करना बीजेपी की मजबूरी बन गया है.
समाज के लिए किया पार्टी का गठन
बिहार में कोइरी जाति प्रदेश की दूसरी सबसे ज्यादा निवास करने वाली जाति है. उपेंद्र कुशवाहा इसी जाति से आते हैं. 2009 में कुशवाहा ने कोइरी समुदाय को उसका हक दिलाने के लिए राष्ट्रीय समता पार्टी का गठन किया था. हालांकि जल्द ही अपनी पार्टी का नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में विलय कर दिया. बाद में मनमुटाव के चलते उनसे अलग हो गए. कुछ सालों बाद राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाई और 2014 में बीजेपी से गठबंधन कर लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे.
लव-कुश समीकरण के सूत्रधार
बिहार की सियासत में कभी नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशावहा ने मिलकर लव-कुश समीकरण गढ़ा था और पटना में लव-कुश रैली का आयोजन किया था. दोनों नेताओं ने मिलकर राज्य में कुर्मी-कोइरी समुदाय को लामबंद किया था. उस समय उपेंद्र कुशवाहा अपना नाम ‘उपेंद्र सिंह’ लिखा करते थे. नीतीश के सुझाव पर उन्होंने अपना नाम उपेंद्र सिंह से उपेंद्र कुशवाहा कर लिया था. धीरे-धीरे कुशवाहा कोइरी समुदाय के नेता बनकर उभरने लगे. लालू यादव के खिलाफ दोनों ने मिलकर समता पार्टी भी बनाई थी लेकिन नीतीश के मुख्यमंत्री बनते ही दोनों में खटपट शुरू हो गई.
दो लगातार चुनाव हार चुके कुशवाहा
उपेंद्र कुशवाहा 2019 और 2024 में लगातार काराकाट लोकसभा सीट से चुनाव हार चुके हैं. 2014 में वे एनडीए गठबंधन में शामिल थे और लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे. तब काराकाट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. फिर केंद्र में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री बनाए गए थे. 2018 में एनडीए का साथ छोड़ते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से इस्तीफा दे दिया और महागठबंधन की गोद में जा बैठे. 2014 में फिर से एनडीए का दामन थामा लेकिन भोजपुरी स्टार पवन सिंह ने उनका खेल बिगाड़ दिया और लगातार दूसरी बार संसद पहुंचने से चूक गए.
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इससे पहले 2021 में कुशवाहा को अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जेडीयू में विलय करना पड़ा था लेकिन नीतीश से कभी दूर, कभी पास रहने वाले कुशवाहा ने 2023 में फिर से जेडीयू से अलग होते हुए फरवरी में राष्ट्रीय लोक मोर्चा नाम से नई राजनीतिक पार्टी बना ली और एनडीए के बैनर तले लड़ा. हालांकि करारी हार का सामना करना पड़ा.
बीजेपी क्यों है कुशवाहा पर मेहरबान
कुशवाहा पर मेहरबानी की सबसे बड़ी वजह नीतीश कुमार हैं. कुशवाहा और नीतीश दो दशकों से साथ रहे हैं. दोनों के बीच खट्टे-मीठे सियासी रिश्तों की कहानी है. लव-कुश समीकरण के दूसरे खंभे के रूप में चर्चित कुशवाहा को बीजेपी प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ सेफ्टी वॉल्व के रूप में इस्तेमाल करना चाह रही है. इसके अलावा कुशवाहा को अपने पाले में कर बीजेपी नीतीश कुमार संग सौदेबाजी का रास्ता खोलना चाह रही है.
वहीं उपेंद्र कुशवाहा सभी गठबंधनों में स्वीकार्य हैं. इसकी वजह उनकी जाति है जो बिहार में यादवों के बाद दूसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जाति है. कुछ साल पहले तक कुशवाहा को कोइरी समाज का सर्वाधिक लोकप्रिय चेहरा समझा जाता था लेकिन अब सभी दलों ने उसमें सेंधमारी करने के लिए कई चेहरों को आगे बढ़ाया है. बीजेपी ने सम्राट चौधरी को तो राजद ने आलोक मेहता को आगे बढ़ाया. हालिया चुनावों में लालू और तेजस्वी ने कई कुशवाहा चेहरों को टिकट दिया और चुनाव में कोइरी मतदाताओं के बीच घुसपैठ करने में कुछ हद तक कामयाबी हासिल की है. आगामी विधानसभा चुनावों में इस खेल को खेलने के लिए बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा के रूप में एक ट्रंप कार्ड खेलने की कोशिश कर रही है. बता दें कि राज्य में दो सीटों पर राज्यसभा का निर्वाचन होना है. बीजेपी के राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर और राजद की मीसा भारती के लोकसभा जाने की वजह से ये दोनों सीटें खाली हुई है.